ब्लॉगः निपाह के प्रकोप का बढ़ता खौफ
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 7, 2019 07:17 AM2019-06-07T07:17:58+5:302019-06-07T07:17:58+5:30
निपाह, जिसकी एक बार फिर केरल में साल भर बाद वापसी की पुष्टि हो गई है, से साबित हुआ है कि हमारा स्वास्थ्य तंत्न अभी भी संक्रामक रोगों से बचाव का कोई कारगर तरीका विकसित नहीं कर पाया है.
अभिषेक कुमार सिंह
अरसा पहले एक साइंटिस्ट ने लिखा था- बैक्टीरिया और वायरस इंसान से भी ज्यादा चालाक हैं. जिस तरह इंसान ने पृथ्वी पर हर परिस्थिति और वातावरण में ढलना सीख लिया, उसी प्रकार वायरसों ने एंटीबायोटिक्स से सामंजस्य करना सीख लिया है. कुछ मामलों में तो बैक्टीरिया ने एंटीबायोटिक को नष्ट करने की क्षमता रखने वाले एंजाइम तक बनाने सीख लिए हैं. इसका एक और सच यह है कि ऐसी भीषण बीमारियों का सामना करने वाले कारगर टीके भी अभी मुकम्मल तौर पर विकसित नहीं हो पाए हैं. निपाह, जिसकी एक बार फिर केरल में साल भर बाद वापसी की पुष्टि हो गई है, से साबित हुआ है कि हमारा स्वास्थ्य तंत्न अभी भी संक्रामक रोगों से बचाव का कोई कारगर तरीका विकसित नहीं कर पाया है. अन्यथा जो वायरस एक बार देश की धरती पर हमला कर चुका है, उसे बार-बार सिर उठाने का मौका कैसे मिल जाता है.
इस बार केरल में 4 जून, 2019 को निपाह की वापसी की तसदीक की गई है. केरल में 23 वर्षीय युवक में निपाह वायरस की पुष्टि और 311 लोगों के इस वायरस के संक्र मण से ग्रसित होने के अंदेशे के चलते उन्हें निगरानी में रखा गया है. ध्यान रहे कि कुछ समय पहले मौसम की कुछ भविष्यवाणियों में मानसून के केरल आगमन की संभावित तारीख 4 जून ही बताई गई थी. मानसून की आहट के आसपास निपाह के आ धमकने का फौरी सिलसिला पिछले साल शुरू हुआ था, जब 17 मई 2018 को केरल सरकार ने अपने राज्य में निपाह की मौजूदगी की बात मान ली थी. तो क्या मानसून की आहट से निपाह के आरंभ का कोई सिलसिला जुड़ा है? यदि ऐसा है तो मेडिकल जगत और हमारे स्वास्थ्य तंत्न को इस दिशा में गंभीरता से विचार करना चाहिए.
पर मामला अकेले निपाह का नहीं है. स्थिति यह है कि इबोला, बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू (एच1एन1) जैसे संक्रामक रोग भारत समेत पूरी दुनिया में मौतों का कारण बन रहे हैं. बीच-बीच में कुछ ऐसे अनजाने वायरसों का तूफान भी उठ खड़ा होता है जिनके बारे में दुनिया न तो ज्यादा जानती है और न ही उनसे बचाव के तौर-तरीके विकसित हुए हैं. लेकिन केरल में मोटे तौर पर चमगादड़ों से फैलने वाले वायरस- निपाह के अचानक सनसनीखेज ढंग से सामने आने से सवाल पैदा हुआ है कि आखिर इंसानों को इन वायरसों से निजात कब मिलेगी.
निपाह जैसे वायरस साफ कर रहे हैं कि बढ़ती मेडिकल सुविधाओं के बावजूद संक्रामक वायरसों की रोकथाम आसान नहीं रह गई है. एक बड़ी समस्या है कि इनके वायरस म्यूटेशन (यानी उत्परिवर्तन) का रु ख अपना रहे हैं. इसका मतलब यह है कि मौका पड़ने पर वायरस अपना स्वरूप बदल लेते हैं जिससे उनके प्रतिरोध के लिए बनी दवाइयां और टीके कारगर नहीं रह पाते हैं. इसका एक और सच यह है कि ऐसी भीषण बीमारियों का सामना करने वाले कारगर टीके भी अभी मुकम्मल तौर पर विकसित नहीं हो पाए हैं.