प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल का ब्लॉग: श्रेष्ठ समाज के निर्माण का केंद्र होता है शिक्षक
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 5, 2020 02:19 PM2020-09-05T14:19:16+5:302020-09-05T14:19:16+5:30
शिक्षक का महत्व हमेशा से और हर समाज में सबसे अधिक रहा है. हालांकि, समय के साथ शिक्षा और शिक्षक दोनों बदले हैं. नतीजा ये है कि ज्ञान के नवनवोन्मेष का केंद्र आज विश्वविद्यालय व महाविद्यालय न हो करके कॉरपोरेट जगत हो गया है.
समग्र शिक्षा मानव में अंतर्निहित सद्गुणों की अभिव्यक्ति है तो उच्च शिक्षा मूल्य संरचना, सद्गुणों की पहचान तथा भावी पीढ़ी के लिए ज्ञान के नवनवोन्मेष का साधन है. उच्च शिक्षा का संबंध उत्पादकता एवं प्रयोजन-परकता से न हो कर ज्ञान के उपार्जन से प्राप्त मूल्य बोध एवं आनंद से रहा है. यही नवीन शोध एवं नई संभावनाओं के दरवाजे खोलता है.
भारत में इस दृष्टि से अविद्या एवं विद्या, तकनीक-विज्ञान, शिल्प तथा ज्ञान का भेद-अभेदपूर्वक स्वीकार किया गया है. शुद्ध विज्ञान, कला, दर्शन, इतिहास इत्यादि का विवेचन अध्ययन एवं अध्यापन धर्म के रूप में प्रतिस्थापित करते हुए भारतीय परंपरा ने इसकी अपरिहार्यता एवं सापेक्षिक श्रेष्ठता का प्रतिवाद किया है. किंतु यह 1835 से 1986 के मध्य पश्चिमी ढांचे में ढलने के बाद धीरे-धीरे लक्ष्य से भी भटकी हुई है.
1990 के बाद भारतीय शिक्षा विशेषत: उच्च शिक्षा ने नई करवट ली है. आज के समाज में शिक्षा का पूर्णतावादी निदर्श समाप्त हो गया है तथा प्रयोजनमूलक अर्थ क्रियावाद ने शिक्षा को व्यक्ति निर्माण के स्थान पर श्रेष्ठतम मानव संसाधन निर्माण को शिक्षा के आदर्श के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया है.
इसका परिणाम यह हुआ कि सांस्कृतिक विद्याएं, कला इत्यादि हाशिये पर आ गए हैं. शुद्ध विज्ञान भी आज अध्ययन के चुनाव में द्वितीय, तृतीय क्रम पर आ गया है. तकनीक तथा प्रबंध का विज्ञानों के साम्राज्य में उदय होने और शनै:-शनै: सम्राट की भूमिका प्राप्त कर लेने के कारण शिक्षा व्यापार के रूप में उभर कर के आई है.
शैक्षिक संस्थान सेवा प्रदाता हो गए हैं तो शिक्षक मानव संसाधन तथा छात्र उपभोक्ता की भूमिका में हैं. तकनीक जब शिक्षा का केंद्रीय तत्व हो गया है तो ज्ञान की अपेक्षा कौशल एवं शिल्प का ग्रहण ही शिक्षा का लक्ष्य हो गया है. इन परिस्थितियों के परिवर्तन के कारण शिक्षक की भूमिका समाज के निर्माता के रूप में नहीं बन पा रही है. अपितु शिक्षक समाज के लिए सुखोत्पादक वस्तुओं के प्रस्तुतकर्ता के प्रशिक्षक की स्थिति में आ गया है.
यह नए प्रकार की शिक्षा है जिसमें उपभोक्ता या प्रशिक्षु केंद्रित उत्पाद या माड्यूल प्रस्तुत करना शिक्षक का दायित्व है. इसने शिक्षा को उद्योग बना दिया है. विश्व व्यापार संगठन ने शिक्षा को सेवा क्षेत्र में शामिल कर इसके व्यापारिक विस्तार के नए आयाम भी प्रस्तुत किए हैं. ज्ञान केंद्रित समाज में ज्ञान का अर्थ सद्गुण नहीं है, अपितु सूचनाएं हैं.
परिणामत: शिक्षक सद्गुणों के विकास की अपनी केंद्रीय भूमिका से दूर हटकर सूचनाओं के स्रोत एवं अन्तरक की भूमिका में आ गया है. इस नए अवतार में शिक्षक न तो समाज में सर्वोच्च सम्मान का हकदार है, न तो भविष्य का निर्माता अपितु उसकी भूमिका एक ऐसे प्रबंधक की है, जो युवाओं को कौशल संपन्न बनाने के लिए जिम्मेदार है. इसका परिणाम है कि ज्ञान के नवनवोन्मेष का केंद्र आज विश्वविद्यालय व महाविद्यालय न हो करके कॉरपोरेट जगत हो गया है.
राजाश्रय में रहकर आश्रयदाता से अलग नहीं सोचा जा सकता है. शिक्षक भी नियोजकों के क्रीतदास की स्थिति में आ गया है. उसकी स्वतंत्र एवं निर्भीक सोच तथा जड़ता विहीन कार्यपद्धति को परावलंबी शिक्षा जगत के प्रभाव ने कुंद कर दिया है. इसका परिणाम हुआ है, शिक्षक समूह में सृजनात्मक कल्पना समाप्त हो गई है.
यह सृजनात्मक कल्पना देश एवं काल के साथ शिक्षा को समंजित करते हुए अनागत काल के अनुरूप दृष्टि निर्माण करती है. इसके लिए नई विश्व व्यवस्था के अनुरूप शिक्षा के प्रतिरूप का विकास करना होगा. साथ ही साथ शिक्षक समाज की जिम्मेदारी है कि इस अनुकूल परिस्थिति के निर्माण के लिए नैतिक नेतृत्व करने की अपनी इतिहाससिद्ध भूमिका को पुन: स्वीकार करे.
नैतिकता एवं जीवन मूल्यों के संरक्षण संवर्धन का कार्य शिक्षक का प्राथमिक दायित्व है. समाज के श्रेष्ठतम आदर्श को अपने जीवन में उतार कर युवा पीढ़ी को प्रेरणा देने वाले शिक्षक की भूमिका कालजयी है. इस भूमिका से शिक्षक विचलित होता है तो समाज पद दलित हो जाता है. मानव जाति के निरंतर विकास की प्राथमिक भूमिका शिक्षक की है.
इस भूमिका को उसे सर्वदा बना करके रखना ही होगा. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इस दिशा में एक सकारात्मक संकेत है. मैकाले की नीति के 185 वर्ष बाद एक ऐसी शिक्षा नीति आई है जो शिक्षकों को समाज में सम्मानित स्थान दिलाने के लिए प्रतिबद्धता की घोषणा करती है. शिक्षक सेवक नहीं राष्ट्र निर्माता है. इस मूल भावना को प्रतिपादित करती शिक्षा नीति 2020 शिक्षक के कार्यभार की शर्तों को गरिमायुक्त बनाने का निर्देश कर रही है.