डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉगः शिक्षा का लगातार बढ़ता बाजार और अंकों के पीछे भागते विद्यार्थी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 9, 2019 07:52 AM2019-06-09T07:52:15+5:302019-06-09T07:52:15+5:30

शिक्षा से अपेक्षा होती है कि वह छात्रों में तार्किक ढंग से सोचने-समझने की क्षमता को बढ़ाएगी. क्या आज की शिक्षा विद्यार्थियों में इस क्षमता को बढ़ा रही है? या वे सिर्फ अंकों के पीछे ही भाग रहे हैं?

Continuous rising market of education and students fleeing behind marks | डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉगः शिक्षा का लगातार बढ़ता बाजार और अंकों के पीछे भागते विद्यार्थी

डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉगः शिक्षा का लगातार बढ़ता बाजार और अंकों के पीछे भागते विद्यार्थी

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की कक्षा बारहवीं की परीक्षा में वर्ष 2008 में 400 से भी कम विद्यार्थियों को 95 प्रतिशत से ज्यादा अंक मिले थे. इसके छह वर्ष बाद यह संख्या 23 गुना बढ़ कर वर्ष 2014 में 9000 तक पहुंच गई. 2018 में यह वृद्धि 38 गुना तक हो गई और 14900 विद्यार्थियों के अंक 95 प्रतिशत के ऊपर आए. यही स्थिति राज्य शिक्षा मंडल की बारहवीं की परीक्षा में भी दिखाई देती है. यह एक तरफ जहां खुशी की बात है, वहीं दूसरी तरफ आत्मनिरीक्षण करने की भी जरूरत है. इस नाटकीय वृद्धि की कैसे व्याख्या की जा सकती है? क्या आज की पीढ़ी अपने पूर्ववर्तियों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान है?

शिक्षा से अपेक्षा होती है कि वह छात्रों में तार्किक ढंग से सोचने-समझने की क्षमता को बढ़ाएगी. क्या आज की शिक्षा विद्यार्थियों में इस क्षमता को बढ़ा रही है? या वे सिर्फ अंकों के पीछे ही भाग रहे हैं? आज बच्चों को मिलने वाली शिक्षा कितनी गुणवत्तापूर्ण है? क्या विद्यार्थी सिर्फ परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों का अनुमान लगाकर पढ़ाई करते हैं? विज्ञान विषय को तो छोड़िए, भाषा के पर्चे में भी छात्रों को 90 प्रतिशत से ज्यादा अंक मिलने लगे हैं. इसलिए प्रश्नपत्रों के मूल्यांकन के तरीके पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है. ऐसा लगता है कि शिक्षकों से लेकर स्कूल में सभी लोग छात्रों को अधिक से अधिक अंक लाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं ताकि उनके स्कूल को अधिकाधिक अनुदान मिले, ज्यादा विद्यार्थी प्रवेश लें और स्कूल का फंड बढ़े.

देश के लगभग 16 लाख स्कूलों में से गिनती के कुछ अच्छे स्कूलों को छोड़कर, अन्य स्कूलों में व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक छात्र पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है और कहीं-कहीं तो बिल्कुल ही नहीं दिया जाता. मानव संसाधन विकास मंत्रलय के अनुसार देश में सरकारी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों के 18 प्रतिशत तथा माध्यमिक स्कूलों में 15 प्रतिशत पद रिक्त हैं. जहां माता-पिता दोनों नौकरीपेशा होते हैं वहां बच्चे के ऊपर घर में भी ध्यान देने वाला कोई नहीं होता. इसलिए कोचिंग क्लास का बाजार तेजी से बढ़ रहा है. 

अनुमान है कि 2020 तक यह बाजार 30 बिलियन डॉलर का हो जाएगा. नेशनल सैंपल सव्रे के अनुसार प्रत्येक चार विद्यार्थियों में से एक कोचिंग क्लास में जाता है. कोचिंग क्लास के भी कई-कई रूप दिख रहे हैं, जैसे क्लासरूम कोचिंग, स्टडी सर्कल, होम टय़ूशन, ऑनलाइन शिक्षण आदि. हालांकि 96 प्रतिशत कोचिंग आमने-सामने की ही होती है. ऑनलाइन कोचिंग व क्लासरूम कोचिंग का बाजार हजारों करोड़ रु. का है. अब ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट के प्रवेश से ऑनलाइन शिक्षा भी बढ़ी है. इस नए बाजार में भी निवेशकों ने रुचि लेनी शुरू की है. 

Web Title: Continuous rising market of education and students fleeing behind marks

पाठशाला से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे