हैवानियत पर अंकुश के लिए बरतनी होगी कड़ाई
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 12, 2019 01:21 PM2019-06-12T13:21:37+5:302019-06-12T13:21:37+5:30
ऐसा कौन सा इंसान होगा जिसे अलीगढ़ के टप्पल थाना क्षेत्न की ढाई वर्ष की मासूम के साथ हुई हैवानियत ने अंदर से हिला नहीं दिया होगा.
(लेखक-अवधेश कुमार)
ऐसा कौन सा इंसान होगा जिसे अलीगढ़ के टप्पल थाना क्षेत्न की ढाई वर्ष की मासूम के साथ हुई हैवानियत ने अंदर से हिला नहीं दिया होगा. देश जिस ढंग से उबला है और सोशल मीडिया पर लाखों प्रतिक्रियाओं के साथ जगह-जगह सड़कों पर लोग पीड़ाजनित आक्र ोश प्रकट कर रहे हैं उससे पता चलता है कि इसका कैसा मनोवैज्ञानिक असर है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक हैवानियत की सभी हदें पार करने वाले दोनों अपराधी पकड़े जा चुके हैं. उन पर योगी आदित्यनाथ सरकार ने रासुका लगाने का आदेश दे दिया. एक विशेष जांच दल का गठन हो चुका है. तो उम्मीद करनी चाहिए कि फास्ट ट्रैक न्यायालय में मामला चलाकर जल्दी ही इन अपराधियों को न्यायालय उचित सजा देगा.
किंतु यहां मामला खत्म नहीं होता. बेशक, पुलिस की भूमिका ऐसे अपराधों के बाद आरंभ होती है, लेकिन वह भूमिका निभाए ही नहीं तो अपराधियों का हौसला बढ़ता है. बच्ची 30 मई को गायब हो जाती है. परिवार थाने में रपट लिखवाना चाहता है लेकिन पुलिस लिखती ही नहीं. परिवार थक-हार कर फिर आता है तो 31 मई को गुमशुदगी रिपोर्ट लिखने की औपचारिकता पूरी होती है. परिवार की प्रार्थना पर भी पुलिस छानबीन के लिए तैयार नहीं होती है.
अगर अपराधियों ने अपने ही घर के आसपास शव कूड़े में दबाने की बजाय 40-50 किमी बाहर फेंका होता तो क्या होता? बच्ची का शव मिलने के बाद भी जिस तरह पुलिस को सक्रिय होना चाहिए था नहीं हुई. लापरवाही के आरोप में इंस्पेक्टर समेत पांच पुलिसकर्मी निलंबित किए गए हैं. किंतु वह भी लोगों के भारी विरोध के बाद 6 जून को. निलंबन पुलिस में रूटीन प्रक्रि या है. 2 जून को बच्ची का शव आरोपी के घर के बाहर कूड़े के ढेर में पाया गया. महिला सफाईकर्मी ने कूड़े के ढेर से कपड़े के एक बंडल को कुत्ताें को खींचते हुए देखा. उसने शोर मचाया तो लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई. कपड़े की गठरी खोलकर देखी गई तो उसमें बच्ची का क्षत-विक्षत शव मिला. सूचना पर पहुंची टप्पल पुलिस ने सीधे शव को गाड़ी में लादा और यह कहकर चल दी कि पोस्टमार्टम करना होगा. लोग भड़क गए, क्योंकि शक यकीन में बदल गया था कि यह किसकी करतूत है और इसके पीछे मानसिकता क्या है.
यह उत्तर प्रदेश सरकार के लिए विचार करने की बात है कि आखिर इतने कड़े निर्देशों के बावजूद पुलिस का रवैया बदल क्यों नहीं रहा? बच्चियों के साथ जघन्य अपराधों की घटनाएं लगातार सामने आने के बावजूद उसने इसे गंभीरता से क्यों नहीं लिया? शव मिलने के साथ ही अपराधियों तक पहुंचने के लिए डॉग स्क्वाड की मदद क्यों नहीं ली? लोग दबाव नहीं डालते तो हो सकता है कि अभी तक अपराधी पकड़ में नहीं आते. निलंबन के कोई मायने नहीं हैं. इनके खिलाफ मुकदमा चलना चाहिए.