तो सवाल है कि बच्चों का हत्यारा आखिर था कौन ?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 21, 2025 07:21 IST2025-11-21T07:21:51+5:302025-11-21T07:21:56+5:30

जो अपराध हुए वो बहुत डरावने थे और जिन परिवारों ने अपने बच्चे खोए, उनकी तकलीफ शब्दों में नहीं बयां की जा सकती.

Nithari massacre So the question is who was the killer of the children | तो सवाल है कि बच्चों का हत्यारा आखिर था कौन ?

तो सवाल है कि बच्चों का हत्यारा आखिर था कौन ?

निठारी हत्याकांड में सबसे ताजा सवाल यह है कि यदि सुरिंदर कोली भी हत्यारा नहीं था तो हत्यारा था कौन. इस मामले में एक और प्रमुख अभियुक्त मोनिंदर सिंह पंधेर पहले ही आरोपों से बरी हो चुका है. साल 2005 से 2006 के बीच दिल्ली से सटे नोएडा के निठारी गांव में एक के बाद एक कई बच्चे और बच्चियां गायब हो गए थे. परिजनों ने पुलिस से शिकायत की लेकिन शुरुआत में पुलिस ने शिकायतों की अनदेखी की. जब दबाव बना तो पुलिस ने जांच शुरू की और मोनिंदर सिंह पंधेर नाम के व्यक्ति के घर के पीछे के नाले से 19 कंकाल मिले. पुलिस को 40 ऐसे पैकेट मिले जिनमें बच्चों के अंगों को भरकर नाले में फेंक दिया गया था.

पुलिस ने बलात्कार और हत्या के आरोप में मोनिंदर सिंह पंधेर और उसके नौकर सुरिंदर कोली को गिरफ्तार किया. 2009 में गाजियाबाद की सीबीआई अदालत ने एक मामले में दोनों को फांसी की सजा सुनाई. 11 मामलों में कोली इकलौता अभियुक्त था जबकि और दो मामलों में उसे पंधेर के साथ सहअभियुक्त बनाया गया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2023 में कोली को 12 मामलों में बरी कर दिया. दो मामलों में मोनिंदर सिंह पंधेर भी निर्दोष करार दिया गया.

मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा तो दोनों को ही बरी कर दिया गया. तो सवाल है कि आखिर ऐसा कैसे हो गया कि जिस व्यक्ति के घर के पीछे के नाले से इतने सारे बच्चों के कंकाल मिले, वह बेदाग छूट गया? न्यायालय की टिप्पणी में इसका जवाब समाहित है. न्यायालय ने कहा है कि जांच बेहद खराब तरीके से की गई और सबूत एकत्रित करने के बुनियादी मानदंडों का खुलेआम उल्लंघन किया गया. न्यायालय ने माना कि अभियोजन पक्ष के सबूत समय-समय पर बदलते रहे और अंत में केवल कोली का कबूलनामा ही एकमात्र आधार बच गया.

अगर जांच समय पर, पेशेवर तरीके से और संविधान के नियमों के मुताबिक हो, तो सबसे मुश्किल मामलों में भी सच सामने लाया जा सकता है. लेकिन निठारी मामले में ऐसा नहीं हुआ. लापरवाही और देरी ने पूरी जांच को कमजोर कर दिया और उन रास्तों को भी बंद कर दिया जहां से असली अपराधी तक पहुंचा जा सकता था. जो अपराध हुए वो बहुत डरावने थे और जिन परिवारों ने अपने बच्चे खोए, उनकी तकलीफ शब्दों में नहीं बयां की जा सकती. लेकिन इतनी लंबी जांच के बाद भी असल अपराधी कौन है, यह पक्के सबूतों के साथ साबित नहीं हो पाया है.

न्यायालय ने बिल्कुल सही कहा है कि केवल शक के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन सवाल यह है कि क्या उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए जिनके कारण एक बेहद डरावने अपराध के आरोपियों तक पहुंचने के रास्ते बंद हुए? 19 बच्चों के कातिलों तक पुलिस का नहीं पहुंच पाना पूरे देश के लिए प्रशासनिक और न्यायिक विफलता है.

इस मामले को फिर से खोला जाना चाहिए और उन पुलिस अधिकारियों की पहचान की जानी चाहिए जिन्होंने जांच के रास्ते में अवरोध पैदा किए. एक बार तय हो जाए कि वो कौन से पुलिस अधिकारी हैं तो फिर मुकदमा उनके खिलाफ शुरू होना चाहिए. उन्हें भी हत्यारा क्यों न माना जाए?

Web Title: Nithari massacre So the question is who was the killer of the children

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