रसूख वाले लोग कानून को कैसे तोड़-मरोड़ लेते हैं? 

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: December 31, 2025 05:54 IST2025-12-31T05:54:45+5:302025-12-31T05:54:45+5:30

पुलिस ने उसके पिता को ही झूठे मामले में गिरफ्तार किया और पुलिस हिरासत में ही उनकी मौत हो गई.

How influential people bend law SC stays Delhi HC order granting bail to expelled BJP leader Kuldeep Singh Sengar in Unnao rape case | रसूख वाले लोग कानून को कैसे तोड़-मरोड़ लेते हैं? 

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Highlights सेंगर के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करानी चाही लेकिन पुलिस ने सेंगर का नाम नहीं लिखा.दो मौसियों की मौत हो गई और अपने वकील के साथ लड़की भी घायल हो गई.मामले में भी सेंगर के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ.

बलात्कार के एक मामले में सजा काट रहे भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सजा को दिल्ली उच्च न्यायालय ने जब निलंबित किया तो स्वाभाविक रूप से यह सवाल उठा कि रसूख वाले लोग कानून को कैसे तोड़-मरोड़ लेते हैं? मगर सर्वोच्च न्यायालय ने जब सेंगर के सजा निलंबन के आदेश पर रोक लगा दी तो न्याय के मंदिर के प्रति विश्वास  और गहरा हो गया. सेंगर पर आरोप है कि नौकरी मांगने गई एक लड़की के साथ जून 2017 में सामूहिक बलात्कार किया गया. उसने सेंगर के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करानी चाही लेकिन पुलिस ने सेंगर का नाम नहीं लिखा.

2018 में अंतत: लड़की ने न्यायालय का रुख किया. इधर पुलिस ने उसके पिता को ही झूठे मामले में गिरफ्तार किया और पुलिस हिरासत में ही उनकी मौत हो गई. जब मामला बढ़ा तो सेंगर की गिरफ्तारी भी हुई. अगले साल यानी 2019 में लड़की की कार को एक ट्रक ने कुचलने की कोशिश की जिसमें उसकी दो मौसियों की मौत हो गई और अपने वकील के साथ लड़की भी घायल हो गई.

इस मामले में भी सेंगर के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ. सेंगर बच नहीं पाया और उसे अंतत: आजीवन कारावास और 25 लाख रुपए की सजा सुनाई गई. पिछले छह साल से वह जेल में था लेकिन अचानक दिसंबर 2025 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने उसकी सजा को निलंबित कर दिया.

हालांकि उस सजा निलंबन पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है लेकिन एक बड़ा सवाल पैदा होता है कि ये रसूख वाले लोग कानून को अपने पक्ष में कैसे तोड़-मरोड़ लेते हैं. क्या उस पुलिस वाले के पास जमीर नहीं था जिसके पास वह लड़की रिपोर्ट लिखाने पहुंची थी या फिर वो पुलिस वाला सेंगर के दबाव में था? लड़की के पिता को झूठे आर्म्स एक्ट में गिरफ्तार करने और फिर हिरासत में उसकी मौत का असली दोषी किसे समझा जाए? और उससे भी बड़ी बात कि बलात्कार के एक आरोपी की सजा कोई अदालत कैसे निलंबित कर सकती है? क्या इसके पीछे कोई ठोस कारण है?

यदि हां तो वह ठोस कारण क्या है और सामान्य व्यक्ति उसे कैसे स्वीकार करे? यदि वो लड़की अपने साथ हुए अन्याय की लड़ाई नहीं लड़ती तो क्या सेंगर को सजा हो पाती? चूंकि मामला सत्ता पक्ष से जुड़े पूर्व विधायक की करतूतों का है, इसलिए शंका पैदा होना स्वाभाविक है. किसी भी लोकतांत्रिक देश में इस तरह की शंका पैदा नहीं होनी चाहिए.

हमें पाता है कि कानून सबके लिए एक जैसा है लेकिन जो लोग इसे अपने लिए तोड़-मरोड़ लेते हैं और ऐसा करने में जो साथ देते हैं, क्या उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? ऐसे कई सवाल हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि इन सवालों के जवाब मिलेंगे. अभी एक और मामला गंभीर सवाल पैदा कर रहा है.

मध्य प्रदेश के सतना जिले के एक नेता अशाोक सिंह पर आरोप है कि उसने एक लड़की को धमका कर कई बार बलात्कार किया. उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज होने में पांच दिन लग गए. हालांकि वह गिरफ्तार हो चुका है लेकिन सवाल वही है कि रिपोर्ट दर्ज होने में जब इतना वक्त लग गया तो उसे सजा मिलने में कितना वक्त लगेगा? 

Web Title: How influential people bend law SC stays Delhi HC order granting bail to expelled BJP leader Kuldeep Singh Sengar in Unnao rape case

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