विश्व टेस्ट चैंपियनशिपः बड़े मैच में बौने साबित हुए धुरंधर, राम ठाकुर का ब्लॉग

By राम ठाकुर | Published: June 25, 2021 06:06 PM2021-06-25T18:06:04+5:302021-06-25T18:07:34+5:30

भारतीय टीम अब तक सीमित ओवरों (50 ओवर में दो बार और टी-20 में एक बार) के प्रारूप में तीन बार विश्व कप जीत चुकी है.

World Test Championship virat kohli india New Zealand by eight wickets big match Ram Thakur's blog | विश्व टेस्ट चैंपियनशिपः बड़े मैच में बौने साबित हुए धुरंधर, राम ठाकुर का ब्लॉग

न्यूजीलैंड ने निर्णायक सत्र में आकर्षक प्रदर्शन के साथ अपने 91 वर्षों के इतिहास में पहली बार विश्व चैंपियन  होने का अवसर प्राप्त किया.

Highlightsलंबे प्रारूप वाले फॉर्मेट में चैंपियन बनना अपने आप में गौरव की बात हो सकती थी.न्यूजीलैंड के हाथों आठ विकेट से करारी हार का सामना करना पड़ा.मुकाबले का अधिकतर खेल वर्षा की भेंट चढ़ गया.

विराट कोहली की कप्तानी में भारत ने फिर विश्व चैंपियन बनने का मौका गंवा दिया. विश्व विजेता बनने का यह ऐतिहासिक अवसर था.

प्रथम विश्व टेस्ट चैंपियनशिप में खिताब जीतकर नया अध्याय रचने का बेहतरीन अवसर था. भारतीय टीम अब तक सीमित ओवरों (50 ओवर में दो  बार और टी-20 में एक बार) के  प्रारूप में तीन बार विश्व कप जीत चुकी है. लंबे प्रारूप वाले फॉर्मेट में चैंपियन बनना अपने आप में गौरव की बात हो सकती थी.

लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और साउथैम्पटन में वर्षा प्रभावित फाइनल में उसे न्यूजीलैंड के हाथों आठ विकेट से करारी हार का सामना करना पड़ा. हालांकि मुकाबले का अधिकतर खेल वर्षा की भेंट चढ़ गया. महज ढाई से तीन दिन के भीतर मुकाबले में केन विलियम्सन की अगुवाई में न्यूजीलैंड ने निर्णायक सत्र में आकर्षक प्रदर्शन के साथ अपने 91 वर्षों के इतिहास में पहली बार विश्व चैंपियन  होने का अवसर प्राप्त किया. बात महज हार-जीत की नहीं है. जाहिर है, मुकाबला निर्णायक मोड़ पहुंचने के बाद किसी एक टीम का चैंपियन बनना तो तय ही था और यह भी सच है कि जो बेहतर खेलेगा वही चैंपियन बनेगा.

न्यूजीलैंड की टीम सभी  मोर्चो पर भारतीय टीम पर ‘बीस’ साबित हुई. विश्व टेस्ट चैंपियनशिप और अन्य सीमित ओवरों की विश्व कप स्पर्धाओं के भेद को समझने की जरूरत है. सीमित ओवरों के प्रारूप का सीधा ताल्लुक ज्यादा-से-ज्यादा रन बनाते हुए विपक्षी टीम को मुश्किल लक्ष्य पेश करना होता है और जो टीम ऐसा करने में सफल होती है उसके चैंपियन बनने के आसार बढ़ जाते हैं.

लेकिन विश्व टेस्ट चैंपियनशिप इससे बिल्कुल अलग है. यह महज एक दिन का खेल नहीं है. खासतौर से बल्लेबाजों के टेम्परामेंट और  टेकनीक की टेस्ट होती है. भारत में क्रिकेट खिलाड़ी जरूर  शोहरत के लिहाज से पेशेवर बन चुके हैं लेकिन उनका खेल अब भी गैरपेशेवर ही है और यही खामी टीम को ले डूबी. बड़े नामों को देखते हुए भारतीय टीम कागज पर कीवियों से मजबूत ही थी.

खासतौर से बल्लेबाजी में भारत के पास कप्तान विराट कोहली, रोहित शर्मा, चेतेश्वर पुजारा, अजिंक्य रहाणो, ऋषभ पंत जैसे नाम थे, लेकिन ये सारे बड़े नाम बड़े मैच में फिसड्डी साबित हुए. खेल के छठे दिन भारतीय बल्लेबाज महज एक सत्र संयम से खेलकर टीम को हार से बचा सकते थे, लेकिन ‘बिल्कुल ‘आया राम गया राम’ शैली में आउट होकर उन्होंने अवसर गंवा दिया.

वहीं दूसरी ओर केन विलियम्सन और रोस  टेलर ने गजब का संयम दिखाते हुए टीम को चैंपियन बनाया.  न्यूजीलैंड के गेंदबाजों ने भी स्थितियों को बखूबी भुनाया, वहीं भारतीय गेंदबाजी की कमजोरियां उभरकर आईं. इस जीत का श्रेय केन विलियम्सन के नेतृत्व क्षमता को भी दिया जाना चाहिए जिन्होंने बड़े शांत और एकाग्र होकर सही फैसले लिए.

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