क्या कप्तान और कोच की टीम चयन में सीधी भूमिका हो?, अयाज मेनन का ब्लॉग
By अयाज मेमन | Published: July 11, 2021 02:00 PM2021-07-11T14:00:29+5:302021-07-11T14:03:02+5:30
भारत जैसे देशों में कप्तान और कोच से सुझाव लिए जाते हैं. ऐसे में कौनसी प्रक्रिया उचित है? यह कहना कठिन ही होगा. चयन प्रक्रिया में कोच और कप्तान की सीधी भूमिका नहीं होने से कई बार परेशानी भी होती है.
टीम के चयन में कोच और कप्तान की भूमिका को लेकर अलग-अलग देशों में भिन्न-भिन्न पैमाने हैं. जैसे, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड (हाल के दिनों) में कप्तान चयन प्रक्रिया का हिस्सा हैं.
मिसबाह को कोच और मुख्य चयनकर्ता बनाकर पाकिस्तान ने नई परंपरा डाली है. भारत जैसे देशों में कप्तान और कोच से सुझाव लिए जाते हैं. ऐसे में कौनसी प्रक्रिया उचित है? यह कहना कठिन ही होगा. चयन प्रक्रिया में कोच और कप्तान की सीधी भूमिका नहीं होने से कई बार परेशानी भी होती है.
जैसे वर्ष 1989 में मोहिंदर अमरनाथ टीम की जरूरत थे लेकिन उनके द्वारा की गई ‘जोकरों के समूह’ की टिप्पणी के कारण चयनकर्ता इसके पक्ष में नहीं थे. जाहिर है, चयन में केवल भाईचारे की भावना ही अहम नहीं होती. चयनकर्ताओं को चाहिए कि वह उस खिलाड़ी की टीम के लिए उपयोगिता पर भी गौर करे.
कभी-कभी, अप्रत्याशित घटनाक्रमों के कारण दोनों पक्षों के बीच अनबन उत्पन्न हो सकती है, जैसा कि इंग्लैंड के वर्तमान दौरे पर टीम प्रबंधन और चयनकर्ताओं के बीच है. न्यूजीलैंड के खिलाफ डब्ल्यूटीसी फाइनल के बाद शुभमन गिल के चोटिल होने के साथ, टीम प्रबंधन ने पृथ्वी शॉ और देवदत्त पिडक्कल के लिए बैकअप ओपनर के लिए अनुरोध किया, जिसे चेतन शर्मा के नेतृत्व वाली चयन समिति ने ठुकरा दिया. टीम प्रबंधन की बेचैनी काफी हद तक समझी जा सकती है. कोविड जैसी स्थितियों में (खिलाड़ियों के घायल होने, बीमार पड़ने, फॉर्म खोने) विकल्प मिल पाना कठिन हो जाता है.
मसलन, इंग्लैंड में उतरने के बाद भारतीय टीम को 10 दिन के लिए आइसोलेट करना पड़ा. फिर भी मेरे अनुसार चयनकर्ताओ की भूमिका ही योग्य थी. कोरोना के दौर में टीम प्रबंधन भले ही टीम हित में सोच रही है लेकिन इसके लिए चयन समिति को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.
कोरोना के खतरे को ध्यान रखकर ही टीम में रोहित समेत मयंक अग्रवाल, लोकेश राहुल और अभिमन्यु ईश्वरन को बतौर ओपनर लिया गया है. महज ओपनर्स जोड़ने से चयन के दौरान गैरजरूरी दबाव भी बढ़ता है. यदि शॉ और पड़िक्कल बेहतर विकल्प हैं तो फिर शुरुआत से ही उन्हें क्यों टीम में रखा नहीं गया. यह चयनकर्ताओं को बेवकूफ बनाने जैसी बात होगी. चोट और बीमारी के चलते खिलाड़ियों को टीम से दूर रहना पड़ता है. ऐसी स्थितियों में अन्य खिलाड़ियों को भी कुछ कर दिखाने का अवसर मिलता है.
पंत-सिराज ने भी मौके को भुनाया था
ऑस्ट्रेलिया दौरे में ऋषभ पंत और मो. सिराज इसी तरह मैच विनर के रूप में उभरकर सामने आए हैं. इंग्लैंड दौरे में मयंक अग्रवाल और राहुल को टेस्ट में स्थापित होने का मौका है. अभिमन्यु भी टेस्ट क्रिकेट में शानदार अगाज कर सकते हैं. ऐसे में टीम प्रबंधन ने हवा में तीर मारने के बजाय उपलब्ध खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने की जरूरत है.