अयाज मेमन की कलम से: प्रेरित करती है सूर्यकुमार यादव की क्रिकेट कहानी

By अयाज मेमन | Published: March 21, 2021 12:55 PM2021-03-21T12:55:31+5:302021-03-21T12:56:45+5:30

चौथे टी-20 में शानदार प्रदर्शन से ही यादव का चयन वनडे टीम में तत्काल हुआ। हालांकि टेस्ट टीम में उनका चयन होगा कह पाना मुश्किल है लेकिन किसे पता कि वनडे टीम में उनका प्रदर्शन शायद चयनकर्ताओं को प्रभावित करें।

ayaz memon column about suryakumar yadav outstanding debut against england | अयाज मेमन की कलम से: प्रेरित करती है सूर्यकुमार यादव की क्रिकेट कहानी

सूर्यकुमार यादव। (फोटो सोर्स- ट्विटर)

चौथे टी-20 अंतरराष्ट्रीय मुकाबले में सूर्यकुमार यादव की धमाकेदार एंट्री की चर्चा मैदानी अंपायर के विवादास्पद 'सॉफ्ट सिग्नल' फैसले के कारण कुछ फीकी रही। जोफ्रा आर्चर की पहली गेंद पर छक्का जड़ने वाले सूर्यकुमार ने महज 31 गेंदों में 57 रन की बेजोड़ पारी खेली। हालांकि यादव को दूसरे टी-20 के लिए अंतिम एकादश में शामिल किया गया था लेकिन उन्हें बल्लेबाजी का मौका नहीं मिल पाया। 

अगले मैच में वह टीम में जगह नहीं बना पाए। ऐसा सवाल पूछा जाने लगा कि क्या कई युवा प्रतिभावान खिलाडि़यों की तरह दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से ऐसे ही खत्म हो जाएगा? आखिरकार उनके भाग्य का दरवाजा खुला और ईशान किशन के चोटिल हो जाने से उन्हें बल्लेबाजी क्रम में मौका मिल गया। कप्तान कोहली ने उन्हें तीसरे क्रम पर बल्लेबाजी को भेजा जिसे भुनाते हुए यादव ने आकर्षक अंदाज में अर्धशतक जड़ दिया। 

यह सत्र विविध फॉर्मेट में देश की नुमाइंदगी करने वाले युवा खिलाडि़यों के लिए यादगार रहा। जैसे, मोहम्मद सिराज और वाशिंगटन सुंदर ने ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट में मुश्किल और जरूरत के मौकों पर अपनी योग्यता साबित की। इंग्लैंड के खिलाफ टी-20 सीरीज के दौरान ईशान किशन और सूर्यकुमार ने धमाकेदार अंदाज में अपना आगाज किया। 

इन चार में से तीन (सिराज, वाशिंगटन और ईशान किशन) 'युवा ब्रिगेड' की नुमाइंदगी करते हुए यह दर्शाया कि देश में दमदार खिलाडि़यों की बड़ी फौज मौजूद है। यादव 30 साल के ग्रुप में आते हैं। भारतीय क्रिकेट में इस आयु में टीम में जगह बनाकर रोचक कहानी को जन्म दिया है। भारत (और उपमहाद्वीप) यह मान्यता है कि 25 के पार पहुंचे खिलाड़ी होड़ से बाहर माने जाते हैं। 

आमतौर से 18-23 के युवाओं पर ही ज्यादा फोकस किया जाता है। 25-27 उम्र के बहुत कम खिलाडि़यों को मौका मिलता है। 30 के बाद तो इसकी संभावना बेहद क्षीण हो जाती है। यादव वर्ष 2010 से प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेल रहे हैं। कुछ सीजन उनके लिए शानदार रहे। ऊच्च तकनीक और योग्यता के बावजूद प्रदर्शन में निरंतरता के चलते वह चयनकर्ताओं को प्रभावित नहीं कर पाए। 

आमतौर पर 30 साल की उम्र में पैसा कमाने पर ज्यादा जोर दिया जाता है। उन्होंने स्वीकार किया कि आईपीएल ने उन्हें स्थापित करने में कााफी मदद की। दो सीजन में, खासतौर से 2020 में यूएई में कराई गई लीग में धमाकेदार प्रदर्शन कर अपनी दावेदारी पेश की। हालांकि उन्हें ऑस्ट्रेलिया दौरे ही मौका मिलना चाहिए था। इसके बावजूद निराश न होते हुए उन्हें मौके का इंतजार किया और जब मौका आया तो उसे बेहतरीन अंदाज में भुनाया। 

सूर्यकुमार ने यह जानते हुए कि 20-22 आयु वर्ग के खिलाडि़यों की तुलना में मौके सीमित हैं कड़ी मेहनत की। सबसे अहम उन्होंने यह मानसिकता बना ली कि अब नहीं तो कभी नहीं। समय के साथ दौड़ते हुए अवसरों को भुनाया और इंडिया कैप अर्जित कर ली। प्रथम श्रेणी क्रिकेट में कई साल बीत जाने के बाद खिलाड़ी की अहमियत केवल लेखक और चयनकर्ता की रह जाती है। यादव ने इसी आयु में चयनकर्ताओं को प्रभावित किया है। 

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