अर्थहीन होता डब्ल्यूटीओ
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 7, 2018 07:55 AM2018-08-07T07:55:15+5:302018-08-07T07:55:15+5:30
जो व्यापार तनाव बढ़े हैं उनसे डब्ल्यूटीओ के उद्देश्य व प्रासंगिता पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं।
लोकमित्र
कुछ दिन पहले केंद्रीय वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा था कि भारत दूसरे देशों को अपने निर्यात सब्सिडाइज नहीं करता है। उनका यह बयान इस बढ़ती आलोचना की पृष्ठभूमि में आया कि घरेलू निर्यातकों को भारत सरकार वित्तीय छूट दे रही है, उससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नष्ट हो रहा है। प्रभु ने यह भी चेतावनी दी कि वर्तमान में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) खतरे में है; क्योंकि इस वर्ष के आरंभ से अमेरिका व उसके मुख्य व्यापार सहयोगी जैसे चीन, यूरोपीय संघ, कनाडा व अन्य के बीच व्यापार तनाव बढ़ रहा है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प शेष संसार, विशेषकर चीन के साथ अपने देश के व्यापार घाटे को कम करने का प्रयास कर रहे हैं। व्यापार घाटा उस अंतर को कहते हैं जब किसी देश के आयात का मूल्य उसके निर्यात के मूल्य से बढ़ जाए। अमेरिका का मानना है कि भारतीय निर्यातकों को जो छूट मिलती है, वह अमेरिकी कंपनियों के खिलाफ जाती है जो सब्सिडाइज्ड भारतीय गुड्स के मूल्य का मुकाबला नहीं कर पाते। इससे अमेरिका के व्यापार घाटे की स्थिति बद से बदतर हो जाती है। बहरहाल, सवाल यह है कि डब्ल्यूटीओ खतरे में क्यों है? डब्ल्यूटीओ का गठन 1995 में हुआ था, इस उद्देश्य के तहत कि विभिन्न देशों के बीच जो व्यापार होता है उसका नियमन उचित बुनियादी नियमों के तहत किया जाए। अन्य चीजों के अतिरिक्त इसमें शामिल था कि डब्ल्यूटीओ के सदस्य सभी व्यापारों के संदर्भ में गैर-भेदभाव व्यापार प्रथाएं अपनाएं ताकि सभी को बराबर का अवसर प्राप्त हो।
लेकिन यह बात जितनी कथनी में आसान थी, करनी में उतनी ही कठिन निकली। क्योंकि अब तक का इतिहास गवाह है कि लगभग हर देश ने अपनी घरेलू कंपनियों को ही प्रोत्साहित करने का प्रयास किया है। इससे विभिन्न देशों के बीच जो व्यापार तनाव बढ़े हैं उनसे डब्ल्यूटीओ के उद्देश्य व प्रासंगिता पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं।
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