विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: टालने से नहीं, मुकाबला करने से दूर होंगी देश की समस्याएं

By विश्वनाथ सचदेव | Published: September 10, 2020 02:53 PM2020-09-10T14:53:08+5:302020-09-10T14:53:08+5:30

देश में पहली बार विकास दर इतना नीचे गिरी है. कई समस्याएं हैं. राज्यों के पास अपने स्टाफ को वेतन देने के लिए पर्याप्त राशि नहीं है. ऐसे में इन्हें टालने से नहीं बल्कि इनका मुकाबला करने से मुश्किलें हल होंगी.

Vishwanath Sachdev's blog: GST and india econmy situation must face problems instead avoiding | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: टालने से नहीं, मुकाबला करने से दूर होंगी देश की समस्याएं

देश की खराब अर्थव्यवस्था से निपटने की जरूरत (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsसारी दुनिया कोरोना से जूझ रही है, लेकिन हमारी लड़ाई शायद सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति में हैकोरोना के चलते रोजगार, भुखमरी, कुपोषण आदि के क्षेत्रों में जो हालात बिगड़े थे, उनमें अभी भी सुधार के संकेत नहीं

देश में शायद पहली बार विकास-दर में करीब चौबीस प्रतिशत की कमी आई है. पिछले पांच-छह महीने में लगभग दो करोड़ नौकरियां छिन गई हैं. देश में काम कर रही एक बड़ी आईटी कंपनी ने घोषणा की है कि आने वाले कुछ महीनों में उसे लगभग दस हजार कर्मचारियों को हटाना पड़ सकता है. राज्यों के पास अपने स्टाफ को वेतन देने के लिए पर्याप्त राशि नहीं है. 

राज्य केंद्र से अपने हिस्से की जीएसटी की मांग कर रहे हैं और केंद्र सरकार राज्यों से कह रही है कि रिजर्व बैंक से ऋण लेकर अपनी आवश्यकता की पूर्ति करें. 

बेरोजगारी का आलम यह है कि रेलवे में लगभग डेढ़ लाख रिक्त स्थानों के लिए एक करोड़ से अधिक युवाओं ने आवेदन किया है- और साल भर लग गया है रेलवे को इन आवेदन पत्रों की छंटाई करने में! जहां तक औद्योगिक उत्पादन का सवाल है, मार्च के महीने में इसमें 17 प्रतिशत की कमी आई थी- पिछले पंद्रह वर्षों में इतनी कमी कभी नहीं हुई.

यूं तो सारी दुनिया कोरोना से जूझ रही है, लेकिन हमारी लड़ाई शायद सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति में है. कोविड से ग्रसित लोगों की संख्या की दृष्टि से कुछ दिन पहले तक हमारा स्थान दुनिया में तीसरा था. भविष्य में यह स्थान पहला होने जा रहा है. हम सिर्फट्रम्प के अमेरिका  के पीछे हैं, और यह दूरी भी अधिक से अधिक महीने भर में पाट ली जाएगी! 

पिछले छह महीनों में कोरोना के चलते रोजगार, भुखमरी, कुपोषण आदि के क्षेत्रों में जो हालात बिगड़े थे, उनमें कोई ठोस सुधार होता दिख नहीं रहा. और देश की वित्त मंत्री इस सब के लिए भगवान को दोषी ठहरा रही  हैं - अंग्रेजी में इसे ‘एक्ट आॅफ गॉड’  कहते हैं. यही कहा है उन्होंने. वह सफाई दे सकती हैं कि उनके कथन का गलत मतलब निकाला जा रहा है. 

अंग्रेजी के इन शब्दों का अर्थ प्रकृति का काम हुआ करता है. होता होगा यह अर्थ, पर इस सारी स्थिति पर जिम्मेदार तत्वों का जो रुख दिखाई दे रहा है, उसका मतलब तो यही निकलता है कि स्थिति को सुधारना हमारे बस का नहीं है. देश हताशा की एक गंभीर स्थिति से गुजर रहा है. स्थितियां लगातार बिगड़ती जा रही हैं और सुधरने के कोई आसार नहीं दिख रहे.

हैरानी और पीड़ा होती है यह देख देखकर कि हमारे मीडिया को देश की बेरोजगारी, खस्ता हाल आर्थिक स्थिति,  युवाओं की निराशा, मजदूरों की त्रासदी, किसानों की बदहाली आदि से जैसे कोई लेना-देना नहीं है. अपवाद हैं कुछ, पर कुल मिलाकर हमारा मीडिया सवाल तो पूछ रहा है. पर सवाल यही है कि सुशांत को किसने मारा. 

एक कलाकार ही नहीं, देश के किसी भी नागरिक की आत्महत्या या हत्या समूची व्यवस्था के लिए एक चुनौती होनी चाहिए. हमारा संविधान हर नागरिक को जीने का अधिकार देता है और इस अधिकार की रक्षा का दायित्व व्यवस्था पर होता है.

ऐसी स्थिति में सवाल तो उठने ही चाहिए, उत्तर भी मिलने चाहिए, पर जब सवाल पूछने वाले अपना संतुलन खोते दिखने लगें और उत्तर देने के लिए जिम्मेदार तत्व इसे लोगों का ध्यान बंटाने की दृष्टि से देखें, तो विवेकशील नागरिकों का दायित्व बनता है कि वे स्थिति की गंभीरता को उजागर करें.

बहरहाल, आज स्थिति गंभीर ही नहीं, डरावनी-सी लग रही है. चीन हमारी उत्तरी सीमा पर आंखें गड़ाए बैठा है, पाकिस्तान कश्मीर में खुराफात करने की फिराक में है, आर्थिक मोर्चे पर हम चुनौतियों को समझ ही नहीं पा रहे- अथवा समझना ही नहीं चाहते; देश के युवा जो हमारी सबसे बड़ी ताकत हैं, निराशा-हताशा के दौर से गुजर रहे हैं. मजदूर भूखा है, किसान परेशान. 

कोरोना के चलते सारा भविष्य अनिश्चित-सा लग रहा है. जिनके कंधों पर बोझ है स्थिति सुधारने का,  वे या तो आंख चुरा रहे हैं या फिर राह भटका रहे हैं.

स्थिति की भयावहता को समझना जरूरी है. कबूतर की तरह आंख बंद करके यह मान लेना आत्महत्या ही होगा कि बिल्ली नहीं है. खतरा सामने है. इससे आंख चुराकर नहीं, इससे आंख मिलाकर इसका मुकाबला करने की आवश्यकता है.

हमारे यहां खतरों को न समझने अथवा टालने की जो प्रवृत्ति काम कर रही है, या लोगों का ध्यान बांटकर अपना हित साधने का जो खेल चल रहा है, उसे समाप्त करना ही होगा. नेतृत्व से यह अपेक्षा की जाती है कि वह समस्याओं को सुलझाने की राह दिखाए, बरगलाए नहीं.

Web Title: Vishwanath Sachdev's blog: GST and india econmy situation must face problems instead avoiding

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