ब्लॉग: जैविक दूध से पूरी हो सकेगी दुग्ध उत्पादन की कमी

By प्रमोद भार्गव | Updated: September 12, 2024 10:46 IST2024-09-12T10:42:04+5:302024-09-12T10:46:07+5:30

आईटी क्रांति की तरह जैविक दूध और खाद्य सामग्री अभी भले ही लोगों को एक चौंकाने वाली बात लग रही हो, लेकिन भविष्य की जरूरतें इसी से पूरी होंगी। यह दूध केवल जैविक उत्पादों से तैयार होगा। इसमें रसायन का प्रयोग कतई नहीं होगा।

Shortage of Milk production will be recover from Organic Milk | ब्लॉग: जैविक दूध से पूरी हो सकेगी दुग्ध उत्पादन की कमी

फोटो क्रेडिट- (एक्स)

Highlightsपशुधन के बिना मिलने वाला यह जैविक दूध, दूध की कमी पूरा करने के साथ पौष्टिक भी होगाकेंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस ई-3 नीति को जारी कियायह नई औद्योगिक क्रांति, जैव तकनीक और बायो मैन्युफेक्चरिंग क्षेत्र में होगी

जैविक तकनीक के क्षेत्र में भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार अब इस क्षेत्र में नवाचार करने जा रही है। सरकार ने इस सिलसिले में देश में पहली बार ई-3 (इकोनॉमी एनवायरनमेंट, एम्प्लॉयमेंट) नीति जारी की है। इसके तहत दूध, खाद्यान्न, पर्यावरण सहित आम जनजीवन के सामने खड़ी होने वाली प्रत्येक चुनौती से निपटने की तैयारी है। इस क्षेत्र में फिलहाल जनता को सबसे बड़ा लाभ जैविक दूध के रूप में मिलने वाला है।

पशुधन के बिना मिलने वाला यह जैविक दूध, दूध की कमी पूरा करने के साथ पौष्टिक भी होगा। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस ई-3 नीति को जारी करते हुए कहा कि यह नई औद्योगिक क्रांति, जैव तकनीक और बायो मैन्युफेक्चरिंग क्षेत्र में होगी।आईटी क्रांति की तरह जैविक दूध और खाद्य सामग्री अभी भले ही लोगों को एक चौंकाने वाली बात लग रही हो, लेकिन भविष्य की जरूरतें इसी से पूरी होंगी। यह दूध केवल जैविक उत्पादों से तैयार होगा। इसमें रसायन का प्रयोग कतई नहीं होगा।

भारत दूध उत्पादन में दुनिया में पहले सोपान पर पहले से ही है और विश्व के कुल दूध उत्पादन में 24 प्रतिशत का योगदान दे रहा है. बीते 9 वर्षों में देश में दूध का उत्पादन लगभग 57 प्रतिशत बढ़ा है. नतीजतन प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 2022-23 में 459 ग्राम प्रतिदिन हो गई है. 9 वर्ष पहले यह उपलब्धता महज 300 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन थी जबकि कुछ साल पहले दुग्ध उत्पादों के आयात की संभावना जताई जाने लगी थी. 

किंतु अब पशु संवर्धन के लिए किए गए प्रयास रंग दिखाने लगे हैं. बीते एक दशक में दूध के उत्पादन एवं उत्पादकता में आजादी के बाद से सर्वाधिक वृद्धि हुई है. दूध की उपलब्धता बढ़ी तो भारतीयों के खानपान की आदत में दूध और उसके उत्पादों का सेवन व खपत भी बढ़ गई. अब प्रत्येक भारतीय दुनिया में औसत खपत में से 65 ग्राम अधिक दूध पीने लगा है. बिना किसी सरकारी मदद के बूते देश में दूध का 70 फीसदी कारोबार असंगठित ढांचा संभाल रहा है. 

इस कारोबार में ज्यादातर लोग अशिक्षित हैं लेकिन पारंपरिक ज्ञान से न केवल वे बड़ी मात्रा में दुग्ध उत्पादन में सफल हैं, बल्कि इसके सह-उत्पाद दही, मट्ठा, घी, मक्खन, पनीर, मावा आदि बनाने में मर्मज्ञ हैं. दूध का 30 फीसदी कारोबार संगठित ढांचा, मसलन डेयरियों के माध्यम से होता है. देश में दूध उत्पादन में 96 हजार सहकारी संस्थाएं जुड़ी हैं. 14 राज्यों की अपनी दुग्ध सहकारी संस्थाएं हैं. देश में कुल कृषि खाद्य उत्पादों व दूध से जुड़ी प्रसंस्करण सुविधाएं महज दो फीसदी हैं, किंतु वह दूध ही है जिसका सबसे ज्यादा प्रसंस्करण करके दही, मट्ठा, घी, मक्खन, मावा, पनीर आदि बनाए जाते हैं. इस कारोबार की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इससे आठ करोड़ से भी ज्यादा लोगों की आजीविका जुड़ी है.

Web Title: Shortage of Milk production will be recover from Organic Milk

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