अभिलाष खांडेकर
पिछले सप्ताह मैं पुणे में था, जिसे कभी बुजुर्ग पेंशनभोगियों और संगीत प्रेमियों के लिए रहने योग्य व सर्वोत्तम शहरों में से एक माना जाता था. लेकिन अब नहीं! यह अब युवा सूचना प्रौद्योगिकी के पेशेवरों और ‘लालची’ बिल्डरों का शहर बन गया है, जहां दूसरे सभी राज्यों से छात्र उच्च शिक्षा के लिए लगातार आते हैं. यहां बड़ी संख्या में आलीशान शिक्षा संस्थान हैं, जिनमें से ज्यादातर सभी तरह के राजनेताओं के स्वामित्व में हैं. वे क्या शिक्षा दे रहे हैं, इसका हम सिर्फ अनुमान ही लगा सकते हैं. मकान प्रदाय करने वालों और गगनचुंबी इमारतों के अमीर डेवलपर्स की श्रेणी ने पूरे, लगातार बढ़ते इस शहर को खोद डाला है.
ऐसा लगता है कि पुणे नगर निगम के अधिकारियों ने उन सभी लोगों को भवन निर्माण अनुमति देने के लिए बहुत उदार दृष्टिकोण अपनाया है जो नक्शे के अलावा कुछ और ‘रंगीन कागज’ लेकर उनके पास आते हैं. जब मैं वहां था, तो मई के महीने में एक भी धूप भरा दिन नहीं देखा, जो कि गर्मियों का चरम माह माना जाता है.
पूरे हफ्ते बारिश दिन-रात होती रही, जिसने शहर की भयंकर कमियों को उजागर किया, जो कभी बेहतर तरीके से प्रबंधित शहर होने का गर्व करता था. मुख्य सड़कों पर गंदे पानी के गड्ढों के कारण चलना मुश्किल हो गया था. मेट्रो रेल मार्ग के निर्माण ने आम यात्रियों की मदद करने के बजाय नागरिकों की परेशानियों को बेतहाशा बढ़ा दिया है.
आर्थिक ‘समृद्धि’, छात्रों और बाद में उनके अभिभावकों के उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान (बीमारू राज्य) से पलायन और साथ ही उद्योग जगत में तेजी ने पेशवाओं के इस ऐतिहासिक मराठी शहर की सूरत पूरी तरह बदल दी है. मैं आपको बता दूं कि यह बदलाव किसी के लिए भी अच्छा नहीं है, बल्कि बुरा है- कुछ अमीर लोगों को छोड़कर!
एक ऐसा शहर जो साइकिल चालकों का स्वर्ग माना जाता था, जिसकी चौड़ी सड़कें खूबसूरत पेड़ों से लदी हुई थीं और आसपास कुछ साफ नदियां बहती थीं. वहां साइकिलों की जगह मर्सिडीज और इसी तरह की अन्य कीमती गाड़ियों ने ले ली है, जिससे पैदल चलने वालों और साइकिल चालकों का जीवन नरक बन गया है.
पिछले साल की भयावह दुर्घटना को याद करें जिसमें एक बिगड़ैल अमीर युवक ने अपनी मर्सिडीज से तड़के सड़क पर दो छात्रों को मार डाला था, जब वहां कोई भीड़-भाड़ नहीं थी. पुणे में हुई दुर्घटनाओं पर सरसरी नजर डालने से पता चलता है कि कई मर्सिडीज चालक तेज गति से गाड़ी चलाते हैं- सत्ता, पैसे और शराब के नशे में -
और जानबूझ कर लोगों को मार रहे हैं. पुलिस और उसकी यातायात प्रबंधन प्रणाली बिल्कुल भी स्मार्ट नहीं रही है. अन्य शहरों की तरह शहर की नदियां भी पुणे के शिक्षित नागरिकों द्वारा फेंके गए कचरे के दुर्गन्ध का टीला बन गई हैं. और यह सब एक ‘स्मार्ट सिटी’ में हो रहा है! शहर को एक कहावत पर गर्व था, ‘पुणे तेथे काय उणे’ (पुणे में कोई कमी नहीं है), लेकिन अब पुराने पुणेकर, जो कभी रहने योग्य रहे इस शहर से बाहर जाने में असमर्थ हैं, उन्हें लगता है कि प्रसिद्ध पश्चिमी घाट की सुंदरता से घिरा शांत वातावरण वास्तव में अपने आप में अभिशाप बन गया है.
26 मई को मानसून के समय से पहले आने से शहर में हड़कंप मच गया. आधिकारिक एजेंसियां स्पष्ट रूप से इसके लिए तैयार नहीं थीं, जबकि शहर में कई दिनों से मानसून पूर्व की बारिश हो रही थी. शहरीकरण की तीव्र गति और भविष्य की योजना बनाने में सरकारी एजेंसियों की धीमी गति पुणे को नारकीय शहर बना रही है.
जिस शहर ने देश को स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक, प्रतिष्ठित गायक भीमसेन जोशी और उद्योगपति शांतनुराव किर्लोस्कर से लेकर खगोल भौतिक विज्ञानी जयंत नार्लीकर जैसे असाधारण नागरिक दिए, वह आधुनिकता के प्रभाव में बुरी तरह डगमगा रहा है, जिसका असर आम पुणेकर पर पड़ रहा है; वह पूरी तरह से असहाय नजर आ रहा है.
मेरे हिसाब से बिल्डर, होटल व्यवसायी और शिक्षण सम्राट शहर की मदद करने की बजाय उसे नुकसान पहुंचा रहे हैं, सिर्फ अपने मुनाफे के लिए. पुणे अब वह सुंदर, हरा-भरा और रहने योग्य शहर कतई नहीं रहा, जिसे मैंने 1980 के दशक में साइकिल चलाने वाले छात्र के रूप में देखा था. क्या हम और अधिक ‘पुणे’ बनने से अपने शहरों को रोक सकते हैं? शायद नहीं, और यही हमारी विभीषिका होगी.