प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था विकसित करने का समय

By प्रमोद भार्गव | Updated: April 9, 2020 14:44 IST2020-04-09T14:44:23+5:302020-04-09T14:44:23+5:30

Pramod Bhargava's blog: Time to develop a village based economy | प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था विकसित करने का समय

लोकमत फाइल फोटो

Highlightsजिन यूरोपीय वैश्विक महाशक्तियों के उत्पाद खपाने के लिए आर्थिक उदारीकरण की रचना की गई थी, वे शक्तियां इस अदृश्य महामारी के सामने नतमस्तक हैं. भारत वर्तमान में जिस आर्थिक नीति को लेकर औद्योगिक विकास में लगा है, वह अभारतीय अर्थशास्त्नी एडम स्मिथ की देन है.

आर्थिक उदारीकरण के बाद दुनिया तेजी से भूमंडलीय गांव में बदलती चली गई. यह तेजी इसलिए विकसित हुई, क्योंकि वैश्विक व्यापारीकरण के लिए राष्ट्र व राज्य के नियमों में ढील देते हुए वन व खनिज संपदाओं के दोहन की छूट दे दी गई. इस कारण औद्योगीकरण व शहरीकरण तो बढ़ा, लेकिन पारिस्थितिकी तंत्न कमजोर होता चला गया.

ग्रामों से शहरों की ओर पलायन बढ़ा. नदियां दूषित हुईं. विकास के लिए तालाब नष्ट कर दिए गए. राजमार्गो, बड़े बांधों औद्योगिक इकाइयों और शहरीकरण के लिए लाखों-करोड़ों पेड़ काट दिए गए. नतीजतन वायु प्रदूषण बढ़ा और इसी अनुपात में बीमारियां बढ़ीं. परंतु अब कोरोना संकट ने हालात पलटने की स्थितियों का निर्माण किया है. सभी तरह के आवागमन के साधनों पर ब्रेक लग गया है. अंतर्राष्ट्रीय व अंतर्राज्यीय सीमाएं प्रतिबंधित हैं. सामाजिक आचरण में दूरी अनिवार्य हो गई है.

कोरोना के समक्ष चिकित्सा विज्ञान ने हाथ खड़े कर दिए हैं. जिन यूरोपीय वैश्विक महाशक्तियों के उत्पाद खपाने के लिए आर्थिक उदारीकरण की रचना की गई थी, वे शक्तियां इस अदृश्य महामारी के सामने नतमस्तक हैं. सबसे बुरा हाल इटली, स्पेन, जर्मनी, अमेरिका के साथ उस ईरान का है, जो प्राकृतिक संपदा तेल से कमाए धन पर इतराता था. जो चिकित्सक हर मर्ज की दवा देने का दावा करते थे, वे मनुष्य को मनुष्य से दूर रहने और प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाने के लिए फल, सब्जी व दाल-रोटी खाने की सलाह देकर अपने ज्ञान को विराम दे रहे हैं.

भारत वर्तमान में जिस आर्थिक नीति को लेकर औद्योगिक विकास में लगा है, वह अभारतीय अर्थशास्त्नी एडम स्मिथ की देन है. ‘वेल्थ ऑफ नेशन’ नामक पुस्तक के लेखक स्मिथ को 18वीं सदी के आधुनिक अर्थशास्त्न का पिता माना जाता है. इसी के विचार ने मनुष्य को आर्थिक मानव अर्थात संसाधन माना. इसके विपरीत भारतीय चिंतक गांधी, आंबेडकर व रवींद्रनाथ टैगोर ने सनातन भारतीय चिंतन परंपरा से ज्ञान अर्जित कर मनुष्य समेत संसार के सभी प्राणियों के कल्याण की सीख ली. इनका तत्व चिंतन व्यक्तिगत, जातिगत, समुदायगत और राष्ट्र व राज्य की सीमाओं तक सीमित न रहते हुए विश्व-कल्याण के लिए था.

परिणामत: इनके चिंतन में शोषण के उपायों को तलाशने और फिर उनको नष्ट करने के विधि-विधान अंतर्निहित हैं. पूंजीवाद के पोषण के लिए समूची दुनिया की प्रकृति को संकट में डाल दिया गया है. भयावह कोरोना संकट इसी दोहन से सह-उत्पाद के रूप में उपजा घातक विषाणु है. लिहाजा अब जरूरी हो गया है कि मानव को संसाधन बनाने वाले इस दर्शन से मुक्ति पाने के क्रमबद्ध नीतिगत उपाय किए जाएं. ग्राम, कृषि और लघु उद्योग आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जाए.

 

Web Title: Pramod Bhargava's blog: Time to develop a village based economy

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