श्रम कानून: आवश्यकता और प्रासंगिकता?, ऐतिहासिक बदलाव का दौर शुरू

By देवेंद्र | Updated: December 1, 2025 05:40 IST2025-12-01T05:40:55+5:302025-12-01T05:40:55+5:30

New Labour Codes: ये चार संहिताएं हैं-वेतन संहिता 2019, औद्योगिक संबंध संहिता 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कार्य शर्त संहिता 2020.

Labour Laws Need and Relevance era of historical change begins blog Devendraraj Suthar | श्रम कानून: आवश्यकता और प्रासंगिकता?, ऐतिहासिक बदलाव का दौर शुरू

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Highlightsदेश की श्रम व्यवस्था को आधुनिक युग के अनुरूप ढालने का एक दूरदर्शी प्रयास है. उद्यमियों और श्रमिकों दोनों को परेशानी में डाल रखा था.वेतन संहिता 2019 श्रमिकों के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान लेकर आई है.

New Labour Codes: भारतीय श्रम कानूनों में ऐतिहासिक बदलाव का दौर शुरू हो चुका है. सरकार ने 29 पुराने श्रम कानूनों को चार व्यापक श्रम संहिताओं में समेकित करने का महत्वाकांक्षी कार्य पूरा किया है. ये चार संहिताएं हैं-वेतन संहिता 2019, औद्योगिक संबंध संहिता 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कार्य शर्त संहिता 2020.

यह सुधार केवल कानूनी पुनर्गठन नहीं, बल्कि देश की श्रम व्यवस्था को आधुनिक युग के अनुरूप ढालने का एक दूरदर्शी प्रयास है. स्वतंत्रता से पूर्व और उसके तुरंत बाद बने अधिकांश श्रम कानून आज की आर्थिक वास्तविकताओं से मेल नहीं खाते थे. जटिल प्रक्रियाएं, अनेक पंजीकरण, विभिन्न लाइसेंस और असंख्य रिटर्न भरने की व्यवस्था ने उद्यमियों और श्रमिकों दोनों को परेशानी में डाल रखा था.

नई संहिताओं का उद्देश्य व्यवसाय करने में सुगमता लाना, रोजगार सृजन को बढ़ावा देना और साथ ही श्रमिकों के अधिकारों तथा कल्याण की सुरक्षा सुनिश्चित करना है. यह संतुलन साधना आसान नहीं था, परंतु नई व्यवस्था में इसका प्रयास स्पष्ट दिखाई देता है. वेतन संहिता 2019 श्रमिकों के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान लेकर आई है.

यह मजदूरी भुगतान, न्यूनतम मजदूरी, बोनस भुगतान और समान पारिश्रमिक से संबंधित चार पुराने कानूनों को समाहित करती है. इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है सार्वभौमिक न्यूनतम मजदूरी की अवधारणा. अब संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों के सभी कर्मचारियों को न्यूनतम मजदूरी मिलना सुनिश्चित होगा.

राष्ट्रीय स्तर पर एक न्यूनतम वेतन सीमा निर्धारित की गई है, जिससे नीचे कोई वेतन नहीं दिया जा सकता. यह प्रावधान लाखों असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए वरदान साबित होगा. सार्वभौमिक मूल वेतन की अवधारणा भी महत्वपूर्ण है, जिसमें पहले 24000 रुपए की सीमा हटा दी गई है.

अतिरिक्त समय के काम के लिए सामान्य दर से दोगुना भुगतान अनिवार्य किया गया है. निरीक्षकों की जगह अब 'निरीक्षक-सह-सुविधाकर्ता' की व्यवस्था होगी, जो केवल नियमों का पालन सुनिश्चित करने के साथ-साथ व्यवसायियों का मार्गदर्शन भी करेंगे. यह दृष्टिकोण दंडात्मक से सहयोगात्मक की ओर एक सकारात्मक बदलाव है.

Web Title: Labour Laws Need and Relevance era of historical change begins blog Devendraraj Suthar

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