जयंतीलाल भंडारी का नजरियाः देश के लिए लाभप्रद साबित होगा विनिवेश का बड़ा कदम

By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Published: November 24, 2019 07:06 AM2019-11-24T07:06:26+5:302019-11-24T07:06:26+5:30

हाल ही में 20 नवंबर को केंद्र सरकार ने देश में बढ़ती हुई आर्थिक सुस्ती को रोकने और राजकोषीय घाटे की चुनौती के मद्देनजर विनिवेश (डिसइन्वेस्टमेंट) यानी निजीकरण का सबसे बड़ा कदम उठाया है.

Jayantilal Bhandari's view: big step of disinvestment will prove beneficial for the country | जयंतीलाल भंडारी का नजरियाः देश के लिए लाभप्रद साबित होगा विनिवेश का बड़ा कदम

जयंतीलाल भंडारी का नजरियाः देश के लिए लाभप्रद साबित होगा विनिवेश का बड़ा कदम

हाल ही में 20 नवंबर को केंद्र सरकार ने देश में बढ़ती हुई आर्थिक सुस्ती को रोकने और राजकोषीय घाटे की चुनौती के मद्देनजर विनिवेश (डिसइन्वेस्टमेंट) यानी निजीकरण का सबसे बड़ा कदम उठाया है. विनिवेश के लिए किए नए फैसले के अनुसार सरकार भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल), कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (कॉनकॉर), टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन इंडिया लिमिटेड (टीएचडीसीआईएल), शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई) और नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (नीपको) में अपनी हिस्सेदारी बेचेगी. सरकार के द्वारा लिया गया यह निर्णय भी महत्वपूर्ण है कि अब वह चुनिंदा सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी 51 फीसदी से कम करेगी.

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 में 1.05 लाख करोड़ रुपए का विनिवेश लक्ष्य रखा है. सरकार को चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से अक्तूबर 2019 तक 12995 करोड़ रुपए प्राप्त हुए. ऐसे में 20 नवंबर को सरकार ने 5 बड़े सार्वजनिक उपक्र मों के विनिवेश का जो बड़ा कदम उठाया है उससे वर्ष 2019-20 के लिए जो विनिवेश लक्ष्य रखा गया है, वह पूरा होने की संभावना रहेगी. गौरतलब है कि सार्वजनिक यानी सरकारी क्षेत्न की कंपनियों अथवा उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी को बेचने की प्रक्रिया विनिवेश कहलाती है. दरअसल इस प्रक्रिया के तहत सरकार सार्वजनिक क्षेत्न की कंपनियों या उपक्र मों की कुछ हिस्सेदारी को शेयर या बांड के रूप में बेचती है. इस प्रक्रि या के तहत मिलने वाले धन का उपयोग सरकार या तो उस कंपनी को बेहतर बनाने में करती है या किसी अन्य दूसरी योजनाओं में इसको लगाती है. किसी कंपनी के विनिवेश का मकसद कंपनी का प्रबंधन बेहतर बनाना होता है. सार्वजनिक क्षेत्न में करीब एक दर्जन ऐसे उपक्रम हैं जिनमें सरकार की हिस्सेदारी 90 फीसदी और 99 फीसदी के बीच है.

दरअसल विनिवेश की प्रक्रिया और इसकी शुरुआत साल 1991 में नई आर्थिक नीति को लागू किए जाने के बाद सार्वजनिक क्षेत्न के उपक्रमों में सरकार की हिस्सेदारी घटाने अर्थात विनिवेश की शुरुआत की गई. इसकी वजह ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्न के उपक्रमों का लंबे समय से घाटे में जाना रहा है क्योंकि सरकार अपने दम पर इन उपक्र मों पर किया जाने वाला खर्च वहन नहीं कर सकती. दरअसल घाटे में जा रहे सार्वजनिक क्षेत्न के उपक्रमों की वजह से बजट घाटा बढ़ता है जिसका सीधा बोझ सरकारी खजाने पर पड़ता है. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने स्ट्रेटेजिक विनिवेश के तहत कई सार्वजनिक क्षेत्न के उपक्र मों का मालिकाना हक निजी कंपनियों को दिया था. यूपीए सरकार स्ट्रेटेजिक विनिवेश प्रोग्राम को अधिक आगे नहीं बढ़ा सकी. मोदी सरकार ने अपने आने के बाद कोई दस वर्ष से रुके हुए विनिवेश कार्यक्रम को फिर से आगे बढ़ाया. राजकोषीय घाटे को कम करने, सरकारी निवेश को बढ़ाने और बिना कर्ज के पूंजी जुटाने के लिए विनिवेश कार्यक्र म को रफ्तार देना शुरू किया.

निश्चित रूप से 20 नवंबर को सरकार ने विनिवेश की प्रक्रि या को आगे ले जाने तथा नीतिगत निवेश को गति प्रदान करने का प्रशंसनीय कदम उठाया है.  विनिवेश के बड़े कदम से सरकार को पर्याप्त मात्ना में कर्जमुक्त पूंजी प्राप्त हो सकेगी. इससे राजकोषीय घाटा नियंत्रित होने की संभावना रहेगी. राजकोषीय घाटा वर्ष 2019-20 के बजट के तहत निर्धारित किए गए जीडीपी के 3.3 फीसदी तक सीमित रखा जा सकेगा. ऐसा होने पर वित्तीय स्थिरता दिखाई देगी. आर्थिक सुस्ती नियंत्रित होगी. विकास दर बढ़ेगी, देश में विदेशी निवेश में वृद्धि होगी तथा रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे.

Web Title: Jayantilal Bhandari's view: big step of disinvestment will prove beneficial for the country

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