वेतन में बढ़ती असमानता है चिंताजनक
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 30, 2018 08:48 PM2018-08-30T20:48:39+5:302018-08-30T20:48:39+5:30
भारत में संगठित क्षेत्र की तुलना में कारपोरेट सेक्टर में उच्च प्रबंध वर्ग और मध्यम प्रबंध वर्ग और मध्यम प्रबंध वर्ग तथा सामान्य कर्मचारियों के वेतन में असमानता दुनिया के विकासशील देशों की तुलना में सर्वाधिक है।
जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते दो दशकों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में औसतन सात फीसदी वार्षिक वृद्धि हुई है, लेकिन भारत में वेतन की असमानता बढ़ी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में संगठित क्षेत्र की तुलना में असंगठित क्षेत्र में औसत दैनिक वेतन 32 फीसदी ही है तथा महिलाएं पुरुषों की तुलना में 34 फीसदी कम कमाती हैं। यह भी कहा गया है कि भारत में कुल श्रम शक्ति का 62 फीसदी अस्थाई कामगार हैं, जिनका औसत दैनिक वेतन महज 247 रुपए है।
यकीनन देश में वेतन असमानता का चिंताजनक परिदृश्य दिखाई दे रहा है। राष्ट्रीय रोजगार और बेरोजगारी सर्वेक्षण तथा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के आंकड़ों पर आधारित इंडिया वेज रिपोर्ट-2018 के अनुसार वर्ष 1993-94 से 2011-12 के बीच देश में जीडीपी चार गुना हुई है, जबकि लोगों का वेतन लगभग दोगुना ही बढ़ा है।
भारत में संगठित क्षेत्र की तुलना में कारपोरेट सेक्टर में उच्च प्रबंध वर्ग और मध्यम प्रबंध वर्ग और मध्यम प्रबंध वर्ग तथा सामान्य कर्मचारियों के वेतन में असमानता दुनिया के विकासशील देशों की तुलना में सर्वाधिक है।
पिछले दिनों देश के प्रमुख शेयर बाजार नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में शामिल कई बड़ी कंपनियों की ओर से जारी वित्त वर्ष 2017-18 की सालाना रिपोर्ट इन कंपनियों के प्रमुख मसलन चीफ एक्सीक्यूटिव आॅफिसर (सीईओ), मैनेजिंग डायरेक्टर और चेयरमैन जैसे उच्च पदाधिकारियों के वेतन और वहां के अन्य कर्मचारियों के वेतन में भारी असमानता की चिंताजनक तस्वीर पेश करती हुई दिखाई दे रही हैं।
रिपोर्ट के अनुसार उच्च प्रबंध वर्ग के वेतन पिछले कुछ वर्षों में छलांगे लगाकर बढ़े हैं। कुछ कंपनियों में तो सामान्य कर्मचारियों की तुलना में सीईओ के वेतन पैकेज 1,200 गुना तक ज्यादा हो चुके हैं।
स्थिति यह भी है कि देश की प्रमुख कंपनियों के सीईओ के वर्तमान वेतन का औसत उन्हें पांच वर्ष पहले दिए गए औसत वेतन की तुलना में लगभग दोगुना हो गए हैं। इतना ही नहीं चौंकाने वाली बात यह भी है कि कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां समान क्षेत्र में काम करने वाली भारतीय कंपनियों के मुकाबले अपने सीईओ को करीब 50 फीसदी कम वेतन का भुगतान करते हुए दिखाई दे रही हैं।
सरकार नौकरियों में भी है असमानता
इतना ही नहीं सरकारी क्षेत्र में शासन की नीतियों को कार्यान्वित करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने वाले सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी सरकार के चीफ सेक्रेटरी और सरकार के तृतीय श्रेणी कर्मचारी के वेतन में निजी क्षेत्र की तरह वेतन की भारी विषमताएं नहीं हैं। मोटे तौर पर शासन के उच्चतम अधिकारी एवं तृतीय श्रेणी कर्मचारी के वेतन के बीच यह अंतर दस गुना से भी कम है।
भारत में उदारीकरण के पिछले 27 वर्षों में निजी क्षेत्र में उच्च प्रबंधकों और सामान्य कर्मचारियों के बीच वेतन-विषमता बढ़कर सीधे दोगुनी हो गई है, वहीं भारत की तरह आर्थिक-सामाजिक प्रवृत्तियां रखने वाले तीन देशों चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में वेतन विषमता पिछले 27 वर्षों में लगातार कम हुई है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि भारत में वेतन असमानता को दूर करने के लिए वेतन कानून को मजबूती से लागू किया जाना चाहिए।
यह भी सुझाव दिया गया है कि देश के सभी कर्मचारियों को कानूनी सुरक्षा (लीगल कवरेज) सुनिश्चित की जाए। साथ ही न्यूनतम वेतन का ढांचा तय करने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएं।
हम आशा करें कि सरकार देश में वेतन में भारी असमानता के चिंताजनक परिदृश्य पर ध्यान देगी तथा सामान्य कर्मचारी को भी उपयुक्त वेतन सुनिश्चित करने के लिए न्यायोचित कदम आगे बढ़ाएगी