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संपादकीयः कानून व्यापारियों के हितों के अनुकूल होने चाहिए

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: November 22, 2022 14:03 IST

अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि जीएसटी के दंडात्मक प्रावधानों का कुछ अधिकारी घोर दुरुपयोग करते हैं। इससे व्यापारियों को न केवल मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक परेशानी होती है बल्कि समाज में उनकी छवि भी धूमिल होती है। समाज उन्हें अपराधी समझ लेता है।

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वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को ज्यादा सरल तथा व्यापारियों के हितों के अनुरूप बनाने के लिए सरकार सतत प्रयत्नशील है। इसी कारण जीएसटी कानून में बार-बार संशोधन करने से भी केंद्र सरकार ने परहेज नहीं किया। जल्दी ही इस कानून में व्यापारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए एक महत्वपूर्ण संशोधन करने के प्रस्ताव पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है। सरकार जीएसटी कानून के प्रावधानों में शामिल ऐसे दंडात्मक अपराधों को जीएसटी से बाहर कर सकती है, जिनके लिए पहले से ही भारतीय दंड संहिता (भादंवि) की विभिन्न धाराओं के तहत कार्रवाई व सजा का प्रावधान है। इन प्रावधानों से ऐसा आभास होता है कि जीएसटी कानून देश में तर्कसंगत समान कर ढांचा लागू करने वाला नहीं बल्कि व्यापारियों को कठोर सजा देने वाला भादंवि जैसा कोई सख्त प्रावधान है। फर्जी बिल जैसे अपराधों में जीएसटी कानून के तहत कठोर प्रावधानों को लेकर व्यापारियों में जबर्दस्त असंतोष चला आ रहा है। 

अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि जीएसटी के दंडात्मक प्रावधानों का कुछ अधिकारी घोर दुरुपयोग करते हैं। इससे व्यापारियों को न केवल मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक परेशानी होती है बल्कि समाज में उनकी छवि भी धूमिल होती है। समाज उन्हें अपराधी समझ लेता है। व्यापारियों का सबसे ज्यादा रोष जीएसटी कानून की धारा 132 तथा उसकी उपधाराओं के तहत किए गए विभिन्न प्रावधानों को लेकर है। इस धारा के तहत जीएसटी अधिकारियों को व्यापारियों की गिरफ्तारी का अधिकार मिल जाता है। धारा 132 के तहत दो करोड़ रुपए से ज्यादा की कर चोरी पर व्यापारियों की गिरफ्तारी का प्रावधान है। इसे जमानती तथा गैरजमानती दोनों तरह का अपराध माना गया है। दो से पांच करोड़ रुपए तक की कर चोरी में गिरफ्तार व्यापारी को जमानत दी जा सकती है। पांच करोड़ रुपए से ज्यादा की कर चोरी को गैरजमानती अपराध माना गया है। गिरप्तारी के बाद की सारी प्रक्रियाएं वही हैं, जो भादंवि (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तार आरोपी से जुड़ी रहती हैं मसलन गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेशी, परिजनों या मित्रों को गिरफ्तारी की जानकारी देने का अधिकार, वकील से आरोपी को मुलाकात या चर्चा करने की अनुमति आदि। इस कानून के एक और प्रावधान पर व्यापारियों को आपत्ति रही है और वह गोदाम पर छापा मारने के अधिकार से संबद्ध प्रावधान है। 

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस प्रावधान को चुनौती दी गई थी। अदालत ने फैसला सुनाया था कि जीएसटी कानून के तहत व्यापारियों के गोदाम पर अफसर छापा नहीं मार सकते। उद्योग-व्यवसाय जगत के सर्वोच्च संगठन भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने 2023-24 के बजट के लिए जो एजेंडा सरकार को सौंपा है, उसमें विभिन्न सुझावों के साथ एक मांग यह भी प्रमुखता से की गई है कि आईपीसी के दायरे में आने वाले अपराधों को जीएसटी कानून से हटा लिया जाए। परिसंघ का कहना है कि जीएसटी कानून में कर चोरी रोकने के पर्याप्त प्रावधान हैं। ऐसे में गिरफ्तारी जैसे प्रावधानों की कोई जरूरत नहीं है। जीएसटी कानून वर्षों के मंथन के बाद बनाया गया है। इसका उद्देश्य कर संबंधी जटिलताओं तथा विसंगतियों को दूर कर एक ऐसा ढांचा तैयार करना था जिससे पूरे देश में वस्तुओं पर करों की दरें समान रहें। व्यापारियों को कारोबार में सुगमता हो और कर चोरी न हो। आपराधिक कानूनों से जीएसटी कानून के प्रति ऐसी धारणा बन गई कि उसे व्यापारियों को दंडित करने के लिए बनाया गया है। व्यापारी न केवल हमारे समाज के महत्वपूर्ण तथा सम्मानित अंग हैं बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में भी उनका योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहता है। दुर्भाग्य से उनके बारे में यह गलत धारणा फैलाई जाती है कि वे जमाखोरी करते हैं, कालाबाजारी करते हैं तथा कर चोरी में सबसे आगे रहते हैं। यह धारणा बेहद गलत और अफसोसजनक है। व्यापारी एक ऐसा समुदाय है जो न केवल राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में योगदान देने से पीछे नहीं रहता बल्कि वह जरूरतमंदों की सेवा करने में भी सबसे आगे रहता है। देश को जब कभी जरूरत पड़ी, सहायता का हाथ बढ़ाने में व्यापारी समुदाय सबसे आगे रहा है। अगर वह सुगमता से व्यवसाय कर सकेंगे तो राष्ट्र निर्माण में बेहतर योगदान दे सकेंगे। जीएसटी कानून में व्यापारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए आवश्यकतानुसार पर्याप्त संशोधन किए जाने चाहिए।

टॅग्स :जीएसटीAllahabad High Court
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