डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: अर्थव्यवस्था को यथार्थवादी दृष्टिकोण से देखना जरूरी

By डॉ एसएस मंठा | Published: November 5, 2020 03:07 PM2020-11-05T15:07:55+5:302020-11-05T15:15:07+5:30

हम लगातार सुनते आ रहे हैं कि अर्थव्यवस्था पर गति पकड़ने की वाली है लेकिन तस्वीर इसके उलट है. वर्ष 2015-16 में GDP 8.1 प्रतिशत थी, इसके बाद के वर्षो में 7.62, 7.04, 6.12 प्रतिशत और वर्ष 2019-20 में 4.2 प्रतिशत ही रह गई. इसके क्या मायने हैं.

Dr. SS Mantha's blog It is necessary to look at Indian economy from a realistic perspective | डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: अर्थव्यवस्था को यथार्थवादी दृष्टिकोण से देखना जरूरी

खराब अर्थव्यवस्था से उबरने का रास्ता क्या है (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsसाल-दर-साल गिरावट के साथ अब इस साल महामारी ने अर्थव्यवस्था को तबाह कर दियावित्त मंत्रलय ने सितंबर में कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बुरा दौर खत्म हो गया है, क्या इस पर भरोसा किया जा सकता है

‘‘जब सीखना उद्देश्यपूर्ण होता है, तो रचनात्मकता खिलती है. जब रचनात्मकता खिलती है, तो सोच पैदा होती है. जब सोच पैदा होती है, तो ज्ञान पूरी तरह से जगमगा उठता है. जब ज्ञान जगमगाता है, तो अर्थव्यवस्था फलती-फूलती है’’ यह कथन है ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का, जो उन्होंने अपनी पुस्तक ‘इंडॉमिटेबल स्पिरिट’ में लिखा है. तब अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए क्या आवश्यक है जो कि गिरावट की ओर जा रही है? 

क्या यह उद्देश्य, रचनात्मकता, सोच या ज्ञान की कमी है? क्या हम साल-दर-साल यह नहीं सुनते आ रहे हैं कि अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार बस होने ही वाला है? जबकि जीडीपी केवल नीचे की ओर ही जा रही है? वर्ष 2015-16 में यह 8.1 प्रतिशत थी, इसके बाद के वर्षो में 7.62, 7.04, 6.12 प्रतिशत और वर्ष 2019-20 में 4.2 प्रतिशत ही रह गई. वर्ष 20-21 में तो इसके ऋणात्मक होते हुए -10.2 प्रतिशत होने की भविष्यवाणी की गई है. यह किस बात का सूचक है? 

सांख्यिकी विभाग ने 2015 में संयुक्त राष्ट्र के मानकों को पूरा करने के लिए जीडीपी को मापने के तरीके को बदल दिया, जिसमें आधार वर्ष और डेटाबेस- दो चीजें बदल गईं. लेकिन जिस देश में 90 प्रतिशत अर्थव्यवस्था असंगठित क्षेत्र में है, क्या संयुक्त राष्ट्र के मानक भारतीय परिस्थितियों के लिए उपयुक्त हैं?

साल-दर-साल गिरावट आने के साथ, 2020 में महामारी ने अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया. करोड़ों नौकरियां खो गईं और व्यवसाय बंद हो गए. प्रवासी श्रमिकों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया. फिर भी, वित्त मंत्रलय ने सितंबर में कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बुरा दौर खत्म हो गया है और यह वी-आकार के आर्थिक सुधार के रास्ते पर है. क्या यह हकीकत है या फिर एक उम्मीद कि अब इससे बुरा और कुछ नहीं हो सकता? 

इस बात का इंतजार ही किया जा सकता है कि 2021 की सुर्खियां क्या होंगी. आशावाद अच्छी चीज है लेकिन उसे व्यावहारिक उम्मीदों को पूरा करने वाला होना चाहिए. सभी शक्तियों और निर्णय प्रक्रिया का केंद्रीकरण केवल घातक ही सिद्ध होगा. राज्यों को आगे बढ़ने, अपने लक्ष्य स्वयं निर्धारित करने और उन्हें पूरा करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए.

Web Title: Dr. SS Mantha's blog It is necessary to look at Indian economy from a realistic perspective

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