अश्विनी महाजन का नजरियाः वैश्विक पटल पर दम दिखाता भारत
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 11, 2019 04:06 AM2019-07-11T04:06:39+5:302019-07-11T04:06:39+5:30
विकसित देश दबाव बना रहे थे कि भारत डाटा के मुक्त प्रवाह के लिए सहमति देते हुए इस समझौते पर आगे बढ़े.
हाल ही में आयोजित जी-20 सम्मेलन में डाटा के मुक्त प्रवाह के संबंध में अमेरिका, जापान एवं अन्य विकसित देशों के दबाव को दरकिनार करते हुए भारत ने इस संबंध में कोई बातचीत न करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि देशहित के मामलों में वह कोई समझौता नहीं करेगा. यह भारत की उभरती ताकत का भी प्रदर्शन है. गौरतलब है कि विकसित देश दबाव बना रहे थे कि भारत डाटा के मुक्त प्रवाह के लिए सहमति देते हुए इस समझौते पर आगे बढ़े.
लेकिन भारत ने दो-टूक यह स्पष्ट कर दिया कि व्यापार के मसलों पर तो बातचीत हो सकती है, लेकिन जहां तक डाटा के मुक्त प्रवाह जैसे मुद्दे हैं, उन्हें भारत मानने वाला नहीं है. गौरतलब है कि आज गूगल, फेसबुक, व्हाट्सएप्प जैसी कंपनियां ही नहीं, कई विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां भी विभिन्न प्रकार की निजी एवं व्यावसायिक जानकारियां (डाटा) भारत में न रखते हुए विदेशी सर्वरों में रखती हैं. यदि वर्तमान व्यवस्था जारी रहती है तो डाटा पर इन कंपनियों का ही स्थायी अधिकार हो जाएगा.
पिछले कुछ समय से भारत ने इन विदेशी कंपनियों पर दबाव बनाया हुआ है कि इस डाटा को भारत में रखें और उसे बाहर न ले जाएं. विदेशी पेमेंट एवं कार्ड कंपनियों पर भारतीय रिजर्व बैंक ने यह शर्त लगाई है कि वे अपना डाटा 24 घंटे के भीतर भारत में वापस लाएं. गौरतलब है कि विदेशी पेमेंट एवं कार्ड कंपनियों के लेन-देन विदेशों में ही प्रोसेस होते हैं. ऐसे में रिजर्व बैंक का कहना है कि वे प्रोसेसिंग विदेशों में करते हुए भी, डाटा वापस भारत लेकर आएं.
इसी प्रकार गूगल समेत अन्य प्लेटफार्मों का भी डाटा भारत में रखने के लिए आदेश दिए जा रहे हैं. प्रस्तावित ई-कॉमर्स पालिसी में भी डाटा का महत्व समझते हुए, विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों पर शिकंजा कसने की तैयारी हो रही है कि वे अपने ग्राहकों का तमाम डाटा भारत में ही रखें ताकि वह डाटा अन्य भारतीय ई-कॉमर्स एवं अन्य फर्मों को एक समान उपलब्ध हो सके और प्रतियोगिता में किसी फर्म को इसलिए फायदा न हो पाए कि उसके पास डाटा है.
गौरतलब है कि ग्राहकों के डाटा पर एकाधिकार होने पर ये कंपनियां अपने प्रतिद्वंद्वियों से बेहतर स्थिति में होती हैं, जिससे प्रतिस्पर्द्धा प्रभावित होती है. भारत सरकार का इस संबंध में स्पष्ट रुख अमेरिका को विचलित कर रहा है क्योंकि इससे उसकी कंपनियों के एकाधिकार को चुनौती मिल रही है.