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तीन दशक पूर्व नरसिंह राव ने रखी थी आर्थिक सुधारों की नींव, अवधेश कुमार का ब्लॉग

By अवधेश कुमार | Updated: July 24, 2021 11:24 IST

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1991 के ऐतिहासिक बजट के 30 साल पूरा होने के मौके पर शुक्रवार को कहा कि कोरोना महामारी के कारण पैदा हुए हालात के मद्देनजर आगे का रास्ता उस वक्त की तुलना में ज्यादा चुनौतीपूर्ण है.

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ठळक मुद्देआज अगर भारत की अर्थव्यवस्था का आकार दुनिया की विकसित 10 अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है.24 जुलाई, 1991 को जब मनमोहन सिंह ने बजट भाषण आरंभ किया तो बदलाव की अपेक्षा थी.अर्थव्यवस्था के आमूल रूपांतरण का दस्तावेज सामने आने वाला है.

जिन्होंने पिछले 30 वर्ष में बदलते भारत को देखा है वे अगर अतीत में जाएं तो स्वीकार करेंगे कि उस समय आज के भारत की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी. कौन सोच सकता था कि भारतीय अर्थव्यवस्था के एकाएक कायाकल्प की ही प्रक्रि या तीव्र गति से शुरू हो जाएगी?

नरसिंह राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्नी नियुक्त कर 1991 से अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से समायोजित करने के साहसी व युगांतकारी बदलाव की प्रक्रिया आरंभ की. अगर नरसिंह राव ने संकल्प के साथ साहस नहीं दिखाया होता तो वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय ढांचे में भारत इस मुकाम पर खड़ा नहीं होता.

आज अगर भारत की अर्थव्यवस्था का आकार दुनिया की विकसित 10 अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है, दुनिया इसे भविष्य की आर्थिक महाशक्ति मान रही है तो इसका नक्शा बनाने से लेकर नींव डालने और स्तंभ, दीवार आदि खड़ा करने का श्रेय नरसिंह राव को देना होगा. निस्संदेह, मनमोहन सिंह वित्त मंत्नी थे लेकिन वे सरकार में शामिल किए जाएंगे इसकी उनको जानकारी भी नहीं थी.

यह नरसिंह राव की दृष्टि थी जिसने उन्हें पहचाना और फोन कर कहा कि आप हमारे वित्त मंत्नी बन रहे हैं, आइए शपथ ग्रहण करिए.  24 जुलाई, 1991 को जब मनमोहन सिंह ने बजट भाषण आरंभ किया तो बदलाव की अपेक्षा थी, लेकिन बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों को भी  भनक नहीं थी कि अर्थव्यवस्था के आमूल रूपांतरण का दस्तावेज सामने आने वाला है.

मनमोहन सिंह ने अपने भाषण के दूसरे पैराग्राफ से ही अर्थव्यवस्था के गहरे संकट का विवरण आरंभ किया. बताया कि राजनीतिक अस्थिरता, भुगतान असंतुलन तथा खाड़ी संकट के कारण हमारी अर्थव्यवस्था के प्रति अंतर्राष्ट्रीय विश्वास काफी कमजोर हुआ है. विदेशी मुद्रा के संकट ने विकास प्रक्रिया को बनाए रखने तथा विकास के कार्यक्र मों को जारी रखने के रास्ते पर बहुत बड़ा अवरोध खड़ा कर दिया है.

जून 1991 में केवल 110 करोड़ डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार हमारे पास था, जिससे सिर्फ 15 दिन का आयात बिल चुकाया जा सकता था. 1990-91 में राजकोषीय घाटा कुल अर्थव्यवस्था के 8 प्रतिशत तक बढ़ा हुआ था. केंद्र सरकार पर केवल आंतरिक कर्ज अर्थव्यवस्था का 55 प्रतिशत था, जिसके ब्याज भुगतान में कुल व्यय का 20 प्रतिशत जाता था.

यह अर्थव्यवस्था का 4 प्रतिशत था. चालू खाते का घाटा 2.5 प्रतिशत से ज्यादा होने के कारण इसे कर्ज लेकर पूरा करना पड़ता था जिसकी किस्त देने में कुल अर्थव्यवस्था का 21 प्रतिशत धन चला जाता था. थोक महंगाई दर 12.1 प्रतिशत तथा खुदरा 13.6 प्रतिशत थी. तीन वर्ष मानसून अच्छा होने और फसलों की पैदावार बेहतर होने के बावजूद आम उपयोग की वस्तुओं के दाम बेतहाशा बढ़ गए थे.

मनमोहन सिंह ने कहा भी कि अर्थव्यवस्था का संकट काफी गहरा एवं तीखा है. आज की स्थिति देखकर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है कि 1991 में हमारे देश में कुल निवेश केवल 13.20 करोड़ डॉलर था जो कुल अर्थव्यवस्था के एक प्रतिशत से भी कम था. लालफीताशाही यानी लाइसेंस और परमिट प्रणाली के कारण किसी को निवेश करने, उद्योग लगाने आदि के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते थे इसकी चर्चा यहां आवश्यक नहीं. यह वही समय था जब नरसिंह राव के पूर्व के प्रधानमंत्नी चंद्रशेखर के कार्यकाल में 67 टन सोना बैंक ऑफ इंग्लैंड में गिरवी रखकर कर्ज लेना पड़ा था.

हालांकि बजट के पहले ही 24 जून, 1991 से लेकर 24 जुलाई, 1991 तक के एक महीने में राव और मनमोहन की जोड़ी ने अर्थव्यवस्था के क्षेत्न में नए अध्याय लिखने आरंभ कर दिए थे. भारतीय रुपए का 20 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ, नई व्यापार नीति की घोषणा हुई, 6 जुलाई से 18 जुलाई तक तीन किस्तों में करीब 45 टन सोना इंग्लैंड भेजा गया जिसके बाद भारत 4000 लाख डॉलर कर्ज लेने की स्थिति में आ गया था. यानी अर्थव्यवस्था की गाड़ी के इंजन को स्टार्ट करने से लेकर उसे चलाने आदि के लिए आवश्यक राशि की व्यवस्था करने के बाद मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई को बजट पेश किया.

यह अर्थव्यवस्था के पुराने अध्याय को बंद कर भविष्य का नया अध्याय लिखने वाला था. बजट के बाद उसी दिन देश की नई औद्योगिक नीति प्रस्तुत की गई. इस तरह गहराई से देखें तो मानना पड़ेगा कि नरसिंह राव के मन में पूरी कल्पना थी जिसे मनमोहन सिंह के साथ मिलकर उन्होंने संकटकाल में भी साहस के साथ निश्चित समयावधि में सामने लाया.

केवल आपात स्थिति संभालने का विचार या कल्पना उनके मन में होती तो ऐसा कतई नहीं हो सकता था. आज अर्थव्यवस्था में संकट तथा विकास की गति धीमी होने के बावजूद अगर विश्व के निवेशकों के लिए भारत चीन के साथ अनुकूल देश बना हुआ है, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं एवं विकसित देश भी जिसकी आर्थिक क्षमता की संभावनाओं को स्वीकार करते हैं तो कहना होगा कि नरसिंह राव द्वारा भविष्य की इमारत के लिए बुने गए नक्शे, डाली गई नींव तथा स्तंभ दीवालों के निर्माण के आधार पर ही यह संभव हुआ है.

टॅग्स :मनमोहन सिंहपी वी नरसिम्हा रावइकॉनोमी
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