डॉ. विशाला शर्मा का ब्लॉग: फणीश्वरनाथ रेणु और ‘तीसरी कसम’

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 4, 2020 02:04 PM2020-03-04T14:04:14+5:302020-03-04T14:04:14+5:30

जब यह फिल्म रिलीज हुई तो कब आई और कब चली गई, यह मालूम ही न पड़ा. किंतु इस सौ साल के युवा सिनेमा जीवन की एक महत्वपूर्ण फिल्म के रूप में ‘तीसरी कसम’ का नाम अमिट एवं अमर हैं. क्योंकि ‘तीसरी कसम’ शैलेंद्र की आत्मा है और फणीश्वरनाथ रेणु की अमर कृति है.

Dr. Vishala Sharma Blog: Phanishwar Nath 'Renu' and 'Teesri Kasam' | डॉ. विशाला शर्मा का ब्लॉग: फणीश्वरनाथ रेणु और ‘तीसरी कसम’

फिल्म 'तीसरी कसम' का एक दृश्य।

‘तीसरी कसम’ वह फिल्म है जिसने हिंदी साहित्य की एक अत्यंत मार्मिक कृति ‘मारे गए गुलफाम’ को सेल्युलॉइड पर पूरी सार्थकता से उतारा. यह कृति फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखित है. ‘तीसरी कसम’ में राज कपूर ने हीरामन तथा वहीदा रहमान ने हीराबाई की उत्कृष्ट भूमिका अदा की है. निर्देशक बासु भट्टाचार्य, कथा व संवाद फणीश्वरनाथ रेणु, निर्माता शैलेंद्र, संगीतकार शंकर जयकिशन, गीतकार शैलेंद्र, हसरत जयपुरी, पाश्र्वगायक आशा भोसले, मुकेश, लता मंगेशकर, मुबारक बेगम, सुमन कल्याणपुरकर आदि ने फिल्म को अद्वितीय अनंतदृष्टि प्रदान की है.  

यह फिल्म आज भी मूर्तिमान है, आज भी गाड़ीवान है, आज भी जीवन की सहजता लिए लोक गीत हैं, कस्बाई परिवेश है, नौटंकी भी है तथा हीराबाई जैसी नर्तकियां भी हैं. फिल्म की सजीवता के लिए बिहार के पूर्णिया अंचल पर दृष्टि डालें तो फणीश्वरनाथ रेणु के पात्न हीरामन तथा हीराबाई हमारे सामने सहज नजर आ जाते हैं. शैलेंद्र ने लोकजीवन के गीतों को मिथिलांचल की लोकधुनों के द्वारा अपने शब्दों का श्रृंगार कर सजाया है. शैलेंद्र के लिए तेजेंद्र शर्मा लिखते हैं, ‘‘शैलेंद्र के गीतों में फलसफा है. जिंदगी की परिभाषा है और उसके जरिए जीने का ढंग सीखने का मौका मिलता है.’’  सचमुच शैलेंद्र के गीतों में जिंदगी से जूझने का संकेत है, करुणा है तो कई गीत दार्शनिक भावों की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं.  

इस फिल्म के जरिए शैलेंद्र ने राज कपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं. राज कपूर ने अपने अनन्य सहयोगी की फिल्म में उतनी ही तन्मयता के साथ काम किया, किसी पारिश्रमिक की अपेक्षा किए बगैर. शैलेंद्र ने लिखा था कि वे राज कपूर के पास ‘तीसरी कसम’ की कहानी सुनाने पहुंचे तो कहानी सुनकर उन्होंने बड़े उत्साहपूर्वक काम करना स्वीकार कर लिया. पर तुरंत गंभीरतापूर्वक बोले ‘‘मेरा पारिश्रिमक एडवांस देना होगा.’’ शैलेंद्र को ऐसी उम्मीद नहीं थी कि राज कपूर जिंदगी भर की दोस्ती का यह बदला देंगे.

शैलेंद्र का मुरझाया हुआ चेहरा देखकर राज कपूर ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘निकालो एक रुपया, मेरा पारिश्रमिक! पूरा एडवांस.’’ शैलेंद्र राज कपूर की इस याराना मस्ती से परिचित तो थे लेकिन एक निर्माता के रूप में बड़े व्यावसायिक सूझबूझ वाले भी चक्कर खा जाते हैं, फिर शैलेंद्र तो फिल्म-निर्माता बनने के लिए सर्वथा अयोग्य थे. राज कपूर ने एक अच्छे और सच्चे मित्न की हैसियत से शैलेंद्र की फिल्म को असफलता के खतरों से आगाह भी किया. शैलेंद्र को जीवन में कभी-भी संपत्ति और यश की कामना नहीं रही. उन्होंने यह फिल्म आत्मसंतुष्टि के सुख की अभिलाषा को लेकर पूरी की. और इस बात का उन्हें दु:ख था कि इस फिल्म को वितरक नहीं मिल पा रहे थे.

और जब यह फिल्म रिलीज हुई तो कब आई और कब चली गई, यह मालूम ही न पड़ा. किंतु इस सौ साल के युवा सिनेमा जीवन की एक महत्वपूर्ण फिल्म के रूप में ‘तीसरी कसम’ का नाम अमिट एवं अमर हैं. क्योंकि ‘तीसरी कसम’ शैलेंद्र की आत्मा है और फणीश्वरनाथ रेणु की अमर कृति है.

Web Title: Dr. Vishala Sharma Blog: Phanishwar Nath 'Renu' and 'Teesri Kasam'

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