नीतीश सरकार की जीत! बिहार में 'जातीय जनगणना' जारी रहेगी, पटना हाईकोर्ट ने इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं को किया खारिज
By विनीत कुमार | Published: August 1, 2023 01:38 PM2023-08-01T13:38:28+5:302023-08-01T14:24:45+5:30
बिहार में जातीय सर्वेक्षण को पटना हाईकोर्ट से मंजूरी मिल गई है। नीतीश कुमार की सरकार की ओर से जातीय सर्वे के पहल को कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इसके खिलाफ पटना हाईकोर्ट में 6 याचिकाएं डाली गई थी। कोर्ट ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया है।
पटना: बिहार के नीतीश कुमार के नेतृत्व सरकार की कोर्ट में बड़ी जीत हुई है। पटना उच्च न्यायालय ने मंगलवार को राज्य सरकार द्वारा बिहार में किए जा रहे 'जातीय गणना' को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट की ओर से इस गणना को 'सर्वे' की तरह कराने की मंजूरी बिहार सरकार को मिली है।
मामले में मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन की अध्यक्षता वाली पीठ का फैसला आने के बाद अदालत के बाहर पत्रकारों से मुखातिब याचिकाकर्ताओं के वकील दीनू कुमार ने कहा कि वह आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख करेंगे।
बिहार में यह जाति सर्वेक्षण दो चरणों में किया जाना है। पहला चरण, जिसके तहत घरेलू गिनती किया गया था, उसे इस साल जनवरी में आयोजित किया गया था। सर्वेक्षण का दूसरा चरण 15 अप्रैल को शुरू हुआ, जिसमें लोगों की जाति और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से संबंधित डेटा इकट्ठा किया जाना था। पूरी प्रक्रिया इस साल मई तक पूरी करने की योजना थी। हालांकि, 4 मई को हाई कोर्ट ने जाति जनगणना पर रोक लगा दी थी।
पटना हाई कोर्ट ने पहले लगाई थी रोक
इससे पहले पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार द्वारा करवाई जा रही जाति आधारित गणना पर 4 मई को यह कहते हुए रोक लगा दी कि राज्य के पास जाति आधारित जनगणना करने की कोई शक्ति नहीं है और ऐसा करना संघ की विधायी शक्ति पर अतिक्रमण होगा। अदालत ने साथ ही इस सर्वेक्षण अभियान के तहत अब तक एकत्र किए गए आंकडों को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया था।
बिहार में जाति सर्वेक्षण का पहला दौर 7 से 21 जनवरी के बीच आयोजित किया गया था। दूसरा दौर 15 अप्रैल को शुरू हुआ था और 15 मई तक जारी रहने वाला था।
बाद में मामला सु्प्रीम कोर्ट भी पहुंचा थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार कोई कोई राहत देने से इनकार किया था। बिहार सरकार ने दलील दी थी मौजूदा कवायद जनगणना नहीं है, बल्कि केवल एक स्वैच्छिक सर्वेक्षण है। बिहार सरकार की ओर से दोनों के अंतर को समझाने की कोशिश करते हुए कहा गया था कि सर्वेक्षण एक निश्चित गुणवत्ता का होता है जो एक निश्चित अवधि के लिए होता है।
बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने दलील दी थी कि उच्च न्यायालय का फैसला त्रुटिपूर्ण है। उन्होंने कहा कि मौजूदा कवायद जनगणना नहीं है, बल्कि केवल एक स्वैच्छिक सर्वेक्षण है। हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार से उच्च न्यायालय के समक्ष मामले पर दलीलों को रखने के लिए कहा था।