क्या आपने की है भारत के "चेस विलेज" की सैर, एशियन रिकार्ड्स में है नाम शामिल
By मेघना वर्मा | Published: April 17, 2018 05:24 PM2018-04-17T17:24:42+5:302018-04-17T17:24:42+5:30
त्रिशुर की पहाड़ियों में बसा ये गांव घूमने के लिए अब बहुत शांत है।लेकिन ये गांव हमेशा से ऐसा नहीं था। 1970-80 के दशक में ये गांव पूरी तरह से नशे की गिरफ्त में था।
आपने अक्सर खाली समय में या दोस्तों और परिवार वालों के साथ शतरंज की पारियां खेली होंगी। हाथी, घोड़ों की चाल चलते हुए अक्सर सामने वाले को चेक एंड मेट दिया होगा लेकिन बहुत कम ही लोग इस खेल में माहिर होते हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक गांव के बार में बताने जा रहे हैं जहां एक नहीं, दो नहीं बल्कि पूरा का पूरा गांव ही शतरंज में चैम्पियन है। समय के साथ इस गांव की ऐसी पहचान बन गई, जिसकी वजह से पर्यटक यहां एक अलग तरह का अनुभव लेने के लिए आते हैं। जिसमें यहां वो गांव के लोगों के साथ शतरंज खेलने का मजा लेने आते हैं। खास बात यह है कि इस गांव का बच्चा या व्यस्क कोई भी चेस के इस खेल में हारता नहीं है या यूं कहें कि इस गांव के सभी लोग शतरंज के चैम्पियन हैं। केरल में त्रिशुर जिले के मरोत्तिचल गांव, जिसे कभी नशे की वजह से जाना जाता था। आज इस जगह को 'चेस विलेज' के नाम से जाना जाता है।
लोगों को लग गयी थी शराब की लत
कहा जाता है कि आज से 30-40 साल पहले इस गांव के सभी पुरुषों को शराब की लत लग गयी थी। परिणाम स्वरुप गांव में शांति नहीं थी। लोग 7 बजे बाद बाहर निकलने से डरते थे।तभी गांव के सी.उन्नीकृष्ण को शतरंज का विचार आया और उन्होंने खुद पहले चेस सिखा और उसके बाद गांव के अन्य लोगों को भी सिखाया। नतीजा ये निकला कि आज गांव के सभी लोग शराब छोड़कर शतरंज के दिवानें हो गए हैं। एक साथ हज़ारो लोगो का शतरंज खेलने के लिए इस गांव को एक एशियन रिकॉर्ड में भी नाम शामिल है।
त्रिशुर की खूबसूरत पहाड़ियां
त्रिशुर की पहाड़ियों में बसा ये गांव घूमने के लिए अब बहुत शांत है।लेकिन ये गांव हमेशा से ऐसा नहीं था। 1970-80 के दशक में ये गांव पूरी तरह से नशे की गिरफ्त में था। शराब और जुए के कारण यहां बदतर हालात थे। शाम होते ही क्या यहां हर उम्र के लोग जुए में डूबकर अपनी जिंदगी बर्बाद करने उतर जाते थे। लेकिन अब यहां आपको लोग चेस खेलते लोग नजर आएंगे।
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फ्री में सिखाया जाता था लोगों को शतरंज
अपने गांव के पास के शहर कल्लुर से चेस की ट्रेनिंग लेकर आए उन्नीकृष्णन ने अपने गांव आकर चाय की दुकान खोली। जहां वो फ्री में लोगों को शतरंज खेलना सिखाने लगे।इसके अलावा वो लोगों को अपने घर में भी ट्रेनिंग दिया करते थे।उन्हें ऐसा करते हुए अब 40 साल से ज़्यादा हो गए। ये एक चमत्कार था।
जैसे-जैसे इस गांव में शतरंज की लोकप्रियता बढ़ती गई, वैसे-वैसे लोगों की जुए और शराब की आदत भी कम होती गई।आज इस गांव का हर एक परिवार शतरंज खेलना जानता है।उन्नीकृष्णन बताते हैं शतरंज उनका पैशन है।एक बार वो खेलना शुरू कर दें, फिर वो सब भूल जाते हैं।ये एक तरह की लत है उनके लिए।