पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: जलवायु परिवर्तन के चलते कहर ढा सकती है लू

By पंकज चतुर्वेदी | Published: April 27, 2024 08:32 AM2024-04-27T08:32:35+5:302024-04-27T08:33:26+5:30

भारतीय मौसम विभाग ने कहा है कि देश के अधिकांश इलाकों में अधिकतम तापमान धीरे-धीरे बढ़ने की संभावना है, जिससे आने वाले 45 दिन अलग-अलग इलाके लू की चपेट में होंगे.

Heat wave can wreak havoc due to climate change | पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: जलवायु परिवर्तन के चलते कहर ढा सकती है लू

पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: जलवायु परिवर्तन के चलते कहर ढा सकती है लू

Highlightsहमारा तंत्र भलीभांति जानता है कि आने वाले दिनों में गर्मी और लू का प्रकोप बढ़ना ही है.जिस तरह से मौसम का मिजाज बदल रहा है उसके कारण मौसम का अनियमित और चरम स्वरूप, तापमान में वृद्धि को झेलना ही है.जिन इलाकों में लू से मौतें हो रही हैं, वहां गंगा और अन्य विशाल जल निधियों का जाल है.

बीते दो हफ्तों से हालांकि अल नीनो असर के कारण रह-रह कर बरसात और तेज आंधी के दौर चल रहे हैं लेकिन इसकी आड़ में जानलेवा लू का समय से बहुत पहले आ जाना देश के लिए बड़े खतरे की निशानी है. भारतीय मौसम विभाग ने कहा है कि देश के अधिकांश इलाकों में अधिकतम तापमान धीरे-धीरे बढ़ने की संभावना है, जिससे आने वाले 45 दिन अलग-अलग इलाके लू की चपेट में होंगे.

हमारा तंत्र भलीभांति जानता है कि आने वाले दिनों में गर्मी और लू का प्रकोप बढ़ना ही है. विदित हो कि चार साल पहले भारत सरकार के केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा तैयार पहली जलवायु परिवर्तन मूल्यांकन रिपोर्ट में आगाह किया गया था कि 2100 के अंत तक, भारत में गर्मियों (अप्रैल-जून) में चलने वाली लू या गर्म हवाएं 3 से 4 गुना अधिक हो सकती हैं. 

इनकी औसत अवधि भी दुगुनी होने का अनुमान है वैसे तो लू का असर सारे देश में ही बढ़ेगा लेकिन घनी आबादी वाले भारत-गंगा नदी बेसिन के इलाकों में इसकी मार ज्यादा तीखी होगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्मियों में मानसून के मौसम के दौरान सन्‌ 1951-1980 की अवधि की तुलना में वर्ष 1981–2011 के दौरान 27 प्रतिशत अधिक दिन सूखे दर्ज किए गए. 

इसमें चेताया गया है कि बीते छह दशक के दौरान बढ़ती गर्मी और मानसून में कम बरसात के चलते देश में सूखा-ग्रस्त इलाकों में इजाफा हो रहा है. खासकर मध्य भारत, दक्षिण-पश्चिमी तट, दक्षिणी प्रायद्वीप और उत्तर-पूर्वी भारत के क्षेत्रों में औसतन प्रति दशक दो से अधिक अल्प वर्षा और सूखे दर्ज किए गए.

रिपोर्ट में संभावना जताई है कि जलवायु परिवर्तन की मार के चलते न केवल सूखे की मार का इलाका बढ़ेगा, बल्कि अल्प वर्षा की आवृत्ति में भी औसतन वृद्धि हो सकती है. 

यह तय है कि जिस तरह से मौसम का मिजाज बदल रहा है उसके कारण मौसम का अनियमित और चरम स्वरूप, तापमान में वृद्धि को झेलना ही है. गौर करने वाली बात है कि जिन इलाकों में लू से मौतें हो रही हैं, वहां गंगा और अन्य विशाल जल निधियों का जाल है. इसके बावजूद वहां लू की मार है. एक तो इन इलाकों में हरियाली कम हो रही है, दूसरा, तालाब, छोटी नदियों जैसी जल निधियां या तो उथली हैं या फिर लुप्त हो गई हैं. 

कांक्रीट के जंगल ने भी गर्म हवाओं की घातकता को बढ़ाया है. यदि लू के प्रकोप से बचना है तो एक तरफ तो कस्बा- ग्राम स्तर पर परिवेश को पर्यावरण अनुकूल बनाने के प्रयास करने होंगे, दूसरा सरकारी या खेत में काम के समय को सुबह दस बजे तक और फिर शाम को पांच बजे से करने की योजना बनानी होगी.

सबसे बड़ी बात मेहनतकश और खुले में काम करने के लिए मजबूर लोगों के लिए शेड, पंखे आदि की व्यवस्था के साथ-साथ बेहतर स्वास्थ्य सेवा की योजना जरूरी है.

Web Title: Heat wave can wreak havoc due to climate change

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