वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार के कारण दक्षिण अफ्रीका एक बार फिर कोविड-19 के प्रकोप का शिकार

By भाषा | Updated: June 30, 2021 14:50 IST2021-06-30T14:50:31+5:302021-06-30T14:50:31+5:30

South Africa once again a victim of Kovid-19 outbreak due to slow pace of vaccination | वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार के कारण दक्षिण अफ्रीका एक बार फिर कोविड-19 के प्रकोप का शिकार

वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार के कारण दक्षिण अफ्रीका एक बार फिर कोविड-19 के प्रकोप का शिकार

शब्बीर ए माधी, वैक्सीनोलॉजी के प्रोफेसर और एसएएमआरसी वैक्सीन्स एंड इंफेक्शियस डिजीज एनालिटिकल रिसर्च यूनिट के निदेशक, यूनिवर्सिटी ऑफ विटवाटरसैंड

जोहानिसबर्ग, 30 जून (द कन्वरसेशन) दक्षिण अफ्रीका कोविड-19 के संक्रमण के एक और दौर से गुजर रहा है। देश का आर्थिक केंद्र गौतेंग प्रांत, जहां 25 फीसदी आबादी रहती है, इस संक्रमण का केंद्र है। लेकिन अन्य प्रमुख प्रांतों में भी संक्रमण दर बढ़ने की आशंका है।

स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव कम करने और संचरण की दर को धीमा करने के लिए, राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने हाल ही में सख्त लॉकडाउन प्रतिबंधों की घोषणा की।

शब्बीर माधी साउथ अफ्रीकन मेडिकल रिसर्च काउंसिल वैक्सीन्स एंड इंफेक्शियस डिजीज एनालिटिक्स रिसर्च यूनिट के निदेशक और विटवाटरसैंड विश्वविद्यालय में अफ्रीकन लीडरशिप इनिशिएटिव फॉर वैक्सीनोलॉजी विशेषज्ञता के सह-संस्थापक और सह-निदेशक हैं। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की स्थिति पर कुछ प्रकाश डालने के लिए द कन्वरसेशन अफ्रीका से बात की।

बीमारी के प्रकोप के सीमित अध्ययन के आधार पर, ऐसा प्रतीत होता है कि वायरस का डेल्टा संस्करण बीमारी के इस ताजा संक्रमण के लिए जिम्मेदार है। नवीनतम शोध के अनुसार, यह पिछले वेरिएंट की तुलना में बहुत अधिक संक्रामक और संभवतः अधिक विषाणुजनित भी है।

कोविड-19 का पिछला प्रकोप, जो जनवरी 2021 में चरम पर था, बीटा संस्करण का परिणाम था।

दक्षिण अफ्रीका में कोविड की ताजा लहर का प्रकोप प्रांत के अनुसार और यहां तक ​​कि एक विशेष प्रांत के भीतर भी अलग है। देश का आर्थिक केंद्र और नौ प्रांतों में से एक गौतेंग आज जो अनुभव कर रहा है वह पश्चिमी केप, पूर्वी केप और क्वाज़ुलु नटाल प्रांतों में संभवत: दो से तीन सप्ताह के बाद दिखाई देगा।

गौतेंग के आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान लहर में कोविड-19 संक्रमण की दैनिक दर पहली या दूसरी लहर के चरम की तुलना में ढाई गुना अधिक है। दुर्भाग्य से, राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा की रविवार को सख्त तालाबंदी उपायों की घोषणा से इस प्रवृत्ति के रूकने की संभावना नहीं है।

ऐसी आशंका है कि गौतेंग में अगले दो से तीन सप्ताह में कोविड-19 से पीड़ित कई और लोग अस्पताल में भर्ती होंगे और अपनी जान गंवाएंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि गंभीर बीमारी आमतौर पर दो से तीन सप्ताह तक समुदाय में संक्रमण फैलाती है।

लेकिन, भारत में प्रकोप के क्रम को देखते हुए, हम उम्मीद कर सकते हैं कि उसके बाद मामलों की संख्या धीरे-धीरे कम होने लगेगी।

यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि लोग नियमों का पालन करते हैं या नहीं, विशेष रूप से ऐसे स्थानों में इनडोर सभाओं से परहेज करना, जहां हवा का आवागमन ठीक न हो और यह सुनिश्चित करना कि वे घर के अंदर या भीड़-भाड़ वाली जगहों पर फेस मास्क पहनें।

हमने दक्षिण अफ्रीका के लोगों को समय पर टीका न लगाकर भी उनके लिए समस्याओं को जन्म दिया है। जो वैक्सीन कार्यक्रम चल रहा है, वह राष्ट्रीय स्वास्थ्य विभाग द्वारा निर्धारित संशोधित लक्ष्यों को भी पूरा करता नजर नहीं आ रहा है।

अभी तक, दक्षिण अफ्रीका के पांच प्रतिशत से कम लोगों को टीका लगाया गया है, जिनमें 60 वर्ष से अधिक उम्र के एक तिहाई से भी कम लोग शामिल हैं, जिन्हें जून 2021 के अंत तक टीका लगाने का लक्ष्य रखा गया था।

टीकों की आपूर्ति में बाधाएं स्पष्ट रूप से एक चुनौती रही हैं। दक्षिण अफ्रीका जैसे देश पर्याप्त संख्या में कोविड-19 टीकों तक पहुंच प्राप्त करने में असमर्थ रहे हैं। यह दुनिया भर में टीकों के असमान वितरण के कारण हुआ है।

हालाँकि, ये विफलताएँ आंशिक रूप से योजना की कमी को भी दर्शाती हैं। दक्षिण अफ्रीका ने दवा कंपनियों के साथ द्विपक्षीय चर्चा करने में देर लगा दी। इसने जनवरी में ही कंपनियों के साथ ईमानदारी से संपर्क करना शुरू किया, जिसकी वजह से वह वैक्सीन हासिल करने वाले देशों की कतार में पिछड़ गया।

लेकिन वैक्सीन तक असमान पहुंच के साथ ही लक्षित वर्ग को टीकाकरण के लिए प्रोत्साहित न कर पाना भी टीकाकरण के विस्तार को रोकने वाले महत्वपूर्ण कारक हैं।

यदि हम वर्तमान प्रकोप की शुरुआत से पहले ही 60 वर्ष से अधिक आयु के उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों के साथ-साथ विभिन्न रोगों के शिकार अन्य लोगों को टीका लगा देते तो कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों की संख्या और मरने वाले लोगों की संख्या काफी कम होती

यह सबसे बड़ी निराशा रही है।

कुछ अन्य गलत अनुमानों की एक श्रृंखला भी थी।

सबसे पहली टीकों के वितरण से जुड़ी थी। लोगों से कहा गया कि वह कोविड-19 का टीका लगवाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक टीकाकरण डेटा प्रणाली के जरिए, एक ऑनलाइन पोर्टल पर पंजीकरण कराएं।

जब स्वास्थ्य सेवा की बात आती है तो यह सब देश में मौजूद असमानता को और बढ़ा देता है। जिन लोगों को टीका लगाया गया है, उनकी जनसांख्यिकी से संकेत मिलता है कि चिकित्सा सहायता योजनाओं से जुड़े (और उच्च सामाजिक-आर्थिक समूहों से संबद्ध) लोगों को टीका लगाए जाने की अधिक संभावना है।

इलेक्ट्रॉनिक डेटा सिस्टम पर पंजीकरण कराने की उनकी अधिक क्षमता के साथ-साथ निजी और सार्वजनिक सुविधाओं में टीकाकरण के अधिक अवसरों को देखते हुए यह थोड़ा आश्चर्य की बात है।

कागज पर तो यह सिस्टम अच्छा लग रहा था, लेकिन यह ज्यादा से ज्यादा लोगों को टीका लगाने के लक्ष्य को पूरा नहीं कर रहा था।

इसके अलावा, ऐसा लगता है कि जून के मध्य तक देश में आए कोविड-19 टीकों में से दो तिहाई से भी कम का उपयोग किया गया है। उसके बाद कुछ लाख और टीके यहां पहुंचने की खबर है।

इस सब से यह पता चलता है कि देश में वैक्सीनेशन अभियान को अधिक से अधिक सफल बनाने के लिए उतने प्रयास नहीं किए, जितने किए जाने चाहिए थे।

एक और बड़ा झटका एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की वजह से लगा। जनवरी में एक दक्षिण अफ्रीकी अध्ययन - जिसका मैंने नेतृत्व किया - ने दिखाया कि बीटा संस्करण के कारण वैक्सीन हल्के या मध्यम कोविड-19 से रक्षा नहीं करती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अध्ययन के बाद सभी उपलब्ध आंकड़ों को देखा, और सिफारिश की कि दक्षिण अफ्रीका जैसे देश जहां बीटा संस्करण प्रमुख था, को एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का उपयोग करना जारी रखना चाहिए क्योंकि इससे वायरस के बीटा संस्करण से होने वाली गंभीर बीमारी से बचाव की संभावना थी।

लेकिन सरकार की ओर से विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों की अनदेखी करने का फैसला किया गया और इसका परिणाम यह हुआ कि दक्षिण अफ्रीका ने भारतीय सीरम संस्थान से प्राप्त 15 लाख खुराकों को अफ्रीकी संघ के माध्यम से अन्य देशों को बेचने का फैसला किया।

छह महीने बाद इस बात के और भी सबूत हैं कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन बीटा संस्करण के कारण गंभीर कोविड-19 से संभवत: रक्षा करेगी और डेल्टा संस्करण के खिलाफ बहुत अच्छी तरह से काम करती है।

अध्ययन जिससे यह पता चला था कि बीटा संस्करण वाले वायरस के खिलाफ वैक्सीन हल्के से मध्यम कोविड-19 से रक्षा नहीं करता है, इसका मतलब यह नहीं है कि बीटा संस्करण के कारण वैक्सीन गंभीर कोविड-19 से बचाव नहीं करेगी। यही कारण है कि डब्ल्यूएचओ ने इस संबंध में अपनी सिफारिश दी - एक विचार जिसका मैंने समर्थन किया। सरकार के फैसले ने नाटकीय रूप से देश के टीकाकरण कार्यक्रम को पीछे कर दिया।

जैसा कि हम जानते हैं, अस्पताल में भर्ती होने के जोखिम के संबंध में डेल्टा संस्करण के खिलाफ एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की प्रभावशीलता पहली खुराक के बाद 75 प्रतिशत और दूसरी खुराक के बाद 92 प्रतिशत है। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हम अधिक से अधिक लोगों को जल्द से जल्द टीका लगवाएं।

मेरे विचार से हमें फाइजर के टीके की दूसरी खुराक उन लोगों तक पहुंचाने पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए जिन्हें पहले ही एक खुराक मिल चुकी है। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हम 60 वर्ष से अधिक आयु के अधिक से अधिक लोगों को, और 40 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को, जो अंतर्निहित चिकित्सा स्थितियों से पीड़ित हैं, टीकाकरण करवाएं।

फाइजर वैक्सीन की एक खुराक को डेल्टा संस्करण के कारण अस्पताल में भर्ती होने के जोखिम के खिलाफ 90 प्रतिशत से अधिक सुरक्षा प्रदान करने वाला बताया गया है। जो फाइजर वैक्सीन की दो खुराक के साथ 96 फीसदी तक जाती है।

साथ ही हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हम देश में वैक्सीन की 40 लाख खुराक का उपयोग अगले दो सप्ताह में करें, न कि दो महीने में। उसी पर हमें ध्यान देने की जरूरत है।

दुर्भाग्य से, गौतेंग में कोविड-19 के मौजूदा प्रकोप में अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु को कम करने के लिए जरूरी वैक्सीनेशन में पहले ही बहुत देर हो चुकी है, लेकिन यह अभी भी उन प्रांतों के लिए उपयोगी हो सकता है जो फिलहाल इस प्रकोप के पहले चरण में हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: South Africa once again a victim of Kovid-19 outbreak due to slow pace of vaccination

विश्व से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे