अमेरिकी प्रशासन ने कहा कि फिलहाल एच-1बी वीजा में किसी बदलाव की योजना नहीं है। इससे भारत के करीब साढ़े सात लाख कामगारों को बड़ी राहत मिली है। इसे मोदी सरकार की कूटनीतिक सफलता के तौर पर भी देखा जा रहा है। यूएस सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज (यूएससीआईएस) ने यह घोषणा उस रिपोर्ट के बाद की है जिसमें कहा गया कि एच-1 बी वीजा के लिए अमेरिका में एक विधेयक प्रस्तावित है। आईटी संगठन नैसकॉम का मानना है कि इस विधेयक में कड़े प्रावधान किए गए हैं। अगर यह लागू कर दिया जाता है तो अमेरिकी नागरिकता की राह देख रहे भारत के सात लाख पचास हजार से ज्यादा प्रोफेशनल्स की वतन वापसी हो जाएगी।
यूएससीआईएस के मीडिया संपर्क के प्रमुख जोनाथन विथिंगटन ने कहा, "यूएससीआईएस अपने नियामक बदलावों पर विचार नहीं कर रही है जो एच1-बी वीजा धारकों को अमेरिका छोड़ने पर मजबूर करता हो। हम अपने एसी-21 की धारा 104 (सी) की भाषा में कोई बदलाव नहीं कर रहे हैं जिसके अंतर्गत इसकी अवधि छह वर्ष से भी ज्यादा बढ़ाई जा सकती है।"
उन्होंने कहा, "अगर ऐसा होता, तो भी इस बदलाव के बाद एच1बी वीजाधारकों को अमेरिका छोड़ने पर मजबूर नहीं होना पड़ता क्योंकि कर्मचारी एसी21 की धारा 106 (ए)-(बी) के तहत इसमें एक साल के विस्तार का अनुरोध कर सकते थे।"
इससे पहले इस संबंध में रिपोर्ट आई थी कि ट्रंप प्रशासन एच-1बी वीजा नियमों को कड़ा करने पर विचार कर रहा है जिससे वहां रह रहे 7 लाख 50 हजार भारतीयों को अमेरिका छोड़ने को मजबूर होना पड़ता।
विथिंगटन ने कहा, "यूएससीआईसी ने कभी भी ऐसे नीतिगत बदलाव पर विचार नहीं किया और यह सोचना पूरी तरह गलत है कि किसी भी दबाव की वजह से यूएससीआईसी ने अपनी स्थिति बदली है।"
केन्सास रिपब्लिकन पार्टी प्रतिनिधि केविन योडर और हवाई से डेमोक्रेट प्रतिनिधि तुलसी गबार्ड ने ट्रंप को पत्र लिखकर, 'स्थायी तौर पर बसने का इंतजार कर रहे एच-1बी वीजाधारकों को यहां से नहीं भेजे जाने का आग्रह किया था।'
दोनों नेताओं ने अपने पत्र में लिखा था, "हम मजबूती से विश्वास करते हैं कि यह कार्रवाई अमेरिकी अर्थव्यवस्था, विश्वसनियता और भारत के साथ संबंध और भारत-अमेरिकी समुदाय के लिए हानिकारक है।"
यूएस चेंबर्स ऑफ कामर्स ने भी चेतावनी देते हुए इसे 'बहुत ही खराब नीति करार दिया जिसके तहत अमेरिका में रह रहे उच्च प्रशिक्षित लोगों को कहा जाएगा कि यहां आपका स्वागत नहीं है।'
क्या है एच-1बी वीजा
एच-1बी अप्रवासियों को दिया जाने वाला वीजा है। यह अमेरिका में काम करने वाली कंपनियों को दिया जाता है ताकि वो ऐसे स्किल्ड प्रोफेशनल्स की भर्ती कर सकें जिनकी अमेरिका में कमी है। इसकी अवधि छह साल होती है। एच-1 बी वीजा धारक पांच साल बाद स्थायी नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। मौजूदा प्रावधान के मुताबिक इसे पाने वाले कर्मचारी की सैलरी कम से कम 60 हजार डॉलर सालाना होनी चाहिए। भारत की आईटी कंपनियां इसका खूब इस्तेमाल करती हैं जिनमें टीसीएस, विप्रो, इंफोसिस और टेक महिंद्रा शामिल हैं।
एच-1बी वीजा से जुड़ी कुछ अन्य जरूरी बातें
- अमेरिका में पिछले कई सालों से इस वीजा को लेकर कड़ा विरोध करते हो रहा है। अमेरिकी लोगों का मानना है कि कंपनियां इस वीजा का गलत तरह से इस्तेमाल करती हैं। इन लोगों का आरोप है कि कंपनियां एच-1बी वीजा का इस्तेमाल कर अमेरिकी नागरिकों की जगह कम सैलरी पर विदेशी कर्मचारियों को रख लेती हैं।
- 2013 में भारतीय आईटी कंपनी इंफोसिस को एच-1 बी वीजा के गलत इस्तेमाल के एक मामले में करीब 25 करोड़ रुपए का जुर्माना देना पड़ा था।
- साल 2016 में हुए चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप ने इसे एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था। ट्रंप ने अपनी कई रैलियों में इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की बात भी कही थी। बीते साल जनवरी में ही इसकी फीस को 2000 से बढ़ाकर 6000 डॉलर कर दिया गया था।
- अमेरिका की लेबर मिनिस्ट्री के अनुसार एच-1 बी वीजा के लिए आवदेन करने वाली कंपनियों में विप्रो, इंफोसिस और टीसीएस का नंबर क्रमश: पांचवां, सातवां और दसवां था।
- हर साल दिए जाने वाले कुल 85000 एच-1बी वीजा में से 60 फीसदी भारतीय कंपनियों को दिए जाते हैं।
- भारत सरकार ने भी अमेरिका से वीजा नियमों में बदलाव की खबर आते ही ट्रंप प्रशासन को अपनी चिंताओं के बारे में सूचित कर दिया है। इस मसले पर केंद्र सरकार और आईटी कंपनियों के अधिकारियों के बीच कई बैठकें भी हो चुकी हैं।
IANS से इनपुट लेकर