चलती-फिरती लाइब्रेरी था यह शख्स, 30 साल में 10 गांवों के लोगों को पढ़ाई किताबें

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 8, 2019 06:38 PM2019-03-08T18:38:42+5:302019-03-08T18:39:29+5:30

बांग्लादेश के इस शख्स का बचपन मुफलिसी के अंधेरे में बीता लेकिन इस दौरान किताबें पढ़ने का नशा उनके सिर पर हावी हो चुका था। मौका मिला तो गांव-गांव में बच्चों को मुफ्त किताबें बांटकर ज्ञान की रौशनी फैलाने लगे।

Polan Sarkar Known as Walking Library Of Bangladesh dies at 98, made ten village read books | चलती-फिरती लाइब्रेरी था यह शख्स, 30 साल में 10 गांवों के लोगों को पढ़ाई किताबें

(Image Source: Facebook/Polan Sarkar)

Highlightsगरीबी के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा लेकिन हजारों बच्चों की पढ़ाई का जरिया बनेपोलन सरकार ने 30 वर्षों तक गांव-गांव टहलकर बच्चों को मुफ्त पढ़ाई किताबें

''मैंने देखा है कि लोग भोजन और कपड़े दान करते हैं लेकिन कोई ज्ञान दान करने के बारे में कभी नहीं सोचता है।'' यह सोचने, कहने और करने वाली चलती-फिरती लाइब्रेरी दुनिया से रुख्सत हो गई। बांग्लादेश के सबसे बड़े नागरिक सम्मानों में से एक एकुशे अवॉर्ड पाने वाले 98 वर्षीय पोलन सरकार 10 गांवों की करीब 5000 लोगों में किताबों के जरिये ज्ञान की अलख जगाकर दुनिया से अलविदा हो गए। 

बांग्लादेश के नाटौर गांव में 9 सितंबर 1921 को जन्मे पोलन सरकार ने बचपन घोर गरीबी में गुजारा। उनके बचपन का नाम हरेन उद्दीन था लेकिन वह फेमस पोलन सरकार के नाम से हुए। यह नाम उनकी मां ने रखा था। किताबें लेकर गांव-गांव घूमकर लोगों को शिक्षित करने के कारण वह एलर फेरीवाला यानी रौशनी का फेरीवाला के तौर पहचाने और सम्मानित किए जाने लगे।

एफर्ट्स फॉर गुड्स वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक पोलन के जन्म के पांच महीने बाद उनके पिता चल बसे। पिता के देहांत के बाद परिवार मुफलिसी के समंदर में डूब गया। गरीबी का दंश ऐसा लगा कि पोलन को छठीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा लेकिन तब तक वह एक नशा पाल चुके थे और वह था किताबें पढ़ने का नशा। 

यंग एज में पोलन ने फोक थिएटर ग्रुप ज्वाइन किया और छोटे कॉमिक रोल प्ले करना शुरू किया। पढ़ने के प्रति उनकी गहरी लगन के कारण वह प्ले की स्क्रिप्ट लिखने से लेकर बैक स्टेज का काम संभालने तक अपने काम की सभी साहित्यिक जरूरतों का ख्याल रखते थे। 

नए नाटकों और स्किट्स को कलमबद्ध करते हुए, पोलन को क्षेत्रीय साहित्य का खजाना मिला, जिसने पुस्तकों के लिए उनके प्यार में इजाफा किया। इस बीच, उनके परिवार को एक संपन्न रिश्तेदार से वित्तीय सहायता मिल रही थी लेकिन जल्द ही उसने जायदाद खो दी और पोलन का परिवार एक बार फिर बेबसी की हालत में पहुंच गया। पोलन एक समिति के चौकीदार की नौकरी पाने में सफल रहे। इसमें उन्हें टैक्स इकट्ठा करने के लिए गांव -गांव जाना पड़ता था। 

इस काम के साथ उन्होंने गांव के बच्चों को किताब बांटकर उनमें शिक्षा की अलख जगाना भी शुरु कर दिया। वह बच्चों को मुफ्त में किताबें बांटते थे। बाद में पोलन ने अपना एक सकूल भी खोल लिया। पोलन के प्रयास के बाद आसपास के स्कूलों में बच्चों के पढ़ने के अभ्यास में खासी तब्दीली दर्ज की गई।1990 में पोलन को डायबिटीज डायग्नोस हुई। डॉक्टर ने उन्हें रोज टहलने की सलाह दी। डॉक्टरों की इस सलाह ने उन्हें अंत तक टहलते रहने का उद्देश्य दे दिया था। 

एक बार पोलन सरकार ने कहा था, ''मेरे गांव में लोग पढ़ाई नहीं करते हैं। समय ही कहां है। भूख के कारण उन्हें पूरे दिन कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। मैंने सोचा कि क्यों न उनके पढ़ने की पहल का मैं भी हिस्सा बन जाऊं।'' वास्तव में पोलन सरकार के जैसी इच्छाशक्ति वाले लोगों की जरूरत आज पूरी दुनिया को है।

Web Title: Polan Sarkar Known as Walking Library Of Bangladesh dies at 98, made ten village read books

विश्व से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे