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नेपाल की शीर्ष अदालत ने देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का आदेश दिया, भंग निचले सदन को बहाल किया

By भाषा | Updated: July 12, 2021 18:20 IST

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(शिरीष बी प्रधान)

काठमांडू, 12 जुलाई नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को निर्देश दिया कि नेपाली कांग्रेस के प्रमुख शेर बहादुर देउबा को मंगलवार तक प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाए और पांच महीनों में दूसरी बार भंग प्रतिनिधि सभा को बहाल कर दिया।

प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा के नेतृत्व वाली उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की अनुशंसा पर राष्ट्रपति भंडारी का निचले सदन को भंग करने का फैसला असंवैधानिक कृत्य था। इसे वयोवृद्ध कम्युनिस्ट नेता के लिये बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है, जो समय पूर्व चुनावों की तैयारी कर रहे थे।

पीठ ने मंगलवार तक देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का परमादेश जारी किया। देउबा (74) इससे पहले चार बार- पहली बार 1995-1997, दूसरी बार 2001-2002, तीसरी बार 2004-2005 और चौथी बार 2017-2018 तक- प्रधानमंत्री रह चुके हैं। फिलहाल वह सदन में नेता विपक्ष हैं। अदालत ने प्रतिनिधि सभा का नया सत्र 18 जुलाई की शाम पांच बजे बुलाने का भी आदेश दिया है।

प्रधान न्यायाधीश राणा ने कहा कि पीठ इस नतीजे पर पहुंची है कि जब सांसद संविधान के अनुच्छेद 76(5) के तहत नये प्रधानमंत्री के निर्वाचन के लिये मतदान में हिस्सा लेते हैं, तब पार्टी व्हिप लागू नहीं होता।

संविधान पीठ में उच्चतम न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश- दीपक कुमार करकी, मीरा खडका, ईश्वर प्रसाद खातीवाड़ा और डॉ. आनंद मोहन भट्टराई - शामिल थे। पीठ ने पिछले हफ्ते मामले में सुनवाई पूरी की थी।

राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली की अनुशंसा पर 275 सदस्यीय निचले सदन को 22 मई को पांच महीने में दूसरी बार भंग कर दिया था और 12 व 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव की घोषणा की थी। चुनावों को लेकर अनिश्चितता के बीच निर्वाचन आयोग ने पिछले हफ्ते मध्यावधि चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा की थी।

शीर्ष अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी-यूएमएल के नेता माधव कुमार नेपाल ने कहा कि फैसला सराहनीय है।

उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने सराहनीय काम किया है। इसने मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था को बचाया है। क्योंकि अदालत ने सीधे देउबा को नया प्रधानमंत्री नियुक्त करने को कहा है] ऐसे में हमारे लिए कोई भूमिका नहीं बचती।”

माधव नेपाल के नेतृत्व में यूएमएल के 23 सांसदों ने प्रधानमंत्री पद के लिये देउबा के दावे के पक्ष में हस्ताक्षर किये थे। माधव नेपाल ने यह भी कहा कि संसद अब सभी फैसले करेगी। उन्होंने कहा, “संसद बहाल हो गई है। अब हम संसद जाएंगे। अब सभी फैसले संसद द्वारा किए जाएंगे। अदालत के फैसले ने ओली के कृत्यों को लेकर नैतिक सवाल भी खड़े किए हैं।”

इसबीच, सत्ताधारी सीपीएन-यूएमएल से जुड़़े युवाओं और छात्रों समेत प्रधानमंत्री ओली के समर्थकों ने 69 वर्षीय कम्युनिस्ट नेता के खिलाफ आए शीर्ष अदालत के फैसले के विरोध में सड़कों पर प्रदर्शन किया। सीपीएन-यूएमएल से संबद्ध नेशनल यूथ फोर्स के कार्यकर्ताओं ने न्यायालय परिसर के निकट मैतीघर मंडल पर एकत्र होकर फैसले के खिलाफ नारेबाजी की। प्रदर्शनकारियों ने एक बैनर ले रखा था जिस पर लिखा था, “हम उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए सभी आदेशों को स्वीकार करने के लिये बाध्य नहीं हैं, सावधान।” मीडिया में आई खबरों के मुताबिक ओली के विश्वस्त और पूर्व मंत्री महेश बसनेत भी प्रदर्शन में मौजूद थे।

नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन द्वारा दायर याचिका समेत करीब 30 याचिकाएं राष्ट्रपति द्वारा सदन को भंग किए जाने के खिलाफ दायर की गई थीं। विपक्षी दलों के गठबंधन की तरफ से भी एक याचिका दायर की गई थी, जिस पर 146 सांसदों के हस्ताक्षर थे और इसमें संसद के निचले सदन को फिर से बहाल करने तथा देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त किये जाने की मांग की गई थी।

नेपाल पिछले साल 20 दिसंबर को तब सियासी संकट में घिर गया था, जब सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) में वर्चस्व को लेकर मची खींचतान के बीच प्रधानमंत्री ओली की अनुशंसा पर राष्ट्रपति भंडारी ने संसद के निचले सदन को भंग कर दिया था और 30 अप्रैल तथा 10 मई को नए चुनाव कराने की घोषणा की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने 23 फरवरी को प्रधानमंत्री ओली को झटका देते हुए भंग की गई प्रतिनिधि सभा को बहाल करने के आदेश दिए थे।

सदन में विश्वास मत हारने के बाद ओली फिलहाल अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने प्रतिनिधि सभा को भंग करने के अपने कदम का बार-बार बचाव करते हुए कहा कि उनकी पार्टी के कुछ नेता “समानांतर सरकार” बनाने का प्रयास कर रहे थे।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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