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महिंदा राजपक्षे ने श्रीलंका के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, सत्ता पर परिवार की पकड़ मजबूत हुई

By भाषा | Updated: August 9, 2020 20:51 IST

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ठळक मुद्दे श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने सदियों पुराने बौद्ध मंदिर में रविवार को देश के नये प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लीयह प्रधानमंत्री के तौर पर महिंदा राजपक्षे की चौथी पारी है।

कोलंबो: श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने सदियों पुराने बौद्ध मंदिर में रविवार को देश के नये प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली जिसके बाद द्वीप देश में इस प्रभावशाली परिवार की सत्ता पर पकड़ और मजबूत हो गई है। श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) के 74 वर्षीय नेता को नौंवीं संसद के लिए पद की शपथ उनके छोटे भाई एवं राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने केलानिया में पवित्र राजमाहा विहाराय में नौ बजकर 28 मिनट पर (स्थानीय समयानुसार) दिलाई।

यह प्रधानमंत्री के तौर पर महिंदा राजपक्षे की चौथी पारी है। एसएलपीपी के समर्थकों ने श्रीलंका के 13वें प्रधानमंत्री के रूप में उनके शपथ लेने का जश्न मनाने के लिए पटाखे छोड़े। राजमहा विहाराय जिसे केलानिया मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, वह 2500 वर्ष पुराना मंदिर है। मंदिर की वेबसाइट के मुताबिक, मंदिर को अक्सर श्रीलंका के उत्थान एवं पतन से जोड़ कर देखा जाता है।

ऐसी कहावत है कि जब यह मंदिर उठता है, श्रीलंका का भी उत्थान होता है और जब यह गिरता है तो देश और उसका प्रशासन भी गिरता है। इस मंदिर का देश की राजनीतिक शक्तियों के साथ गहरा नाता है। महिंदा राजपक्षे ने इस साल जुलाई में संसदीय राजनीति में 50 वर्ष पूरे किए। वह 1970 में महज 24 साल की उम्र में सांसद निर्वाचित हुए थे।

उसके बाद से वह दो बार राष्ट्रपति चुने गए और तीन बार प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए। महिंदा राजपक्षे नीत एसएलपीपी ने पांच अगस्त के आम चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल करते हुए संसद में दो तिहाई बहुमत हासिल किया। इस बहुमत के आधार पर वह संविधान में संशोधन कर पाएगी जो शक्तिशाली राजपक्षे परिवार की सत्ता पर पकड़ को और मजबूत बनाएगा।

श्रीलंका के लिए भारत के उच्चायुक्त गोपाल बागले नये प्रधानमंत्री को बधाई देने वाले पहले राजदूत बने जब उन्होंने शनिवार को महिंदा राजपक्षे से मुलाकात की। बागले ने याद किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावों के सफल आयोजन पर श्रीलंका के लोगों और सरकार की सराहना की थी और एसएलपीपी के प्रभावी चुनावी प्रदर्शन को स्वीकारा था।

यहां भारतीय उच्चायोग ने कहा कि उन्होंने श्रीलंका में नयी सरकार और संसद के साथ करीब से काम करने की भारत सरकार की दृढ़ इच्छा एवं प्रतिबद्धता को दोहराया ताकि द्विपक्षीय सहयोग को और मजबूत बनाया जा सके। महिंदा को 5,00,000 से अधिक व्यक्तिगत वरीयता के मत मिले। चुनावी इतिहास में पहली बार किसी प्रत्याशी को इतने मत मिले हैं। एसएलपीपी ने 145 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत दर्ज करते हुए अपने सहयोगियों के साथ कुल 150 सीटें अपने नाम कीं जो 225 सदस्यीय सदन में दो तिहाई बहुमत के बराबर है। कैबिनेट मंत्रियों, राज्य मंत्रियों एवं उपमंत्रियों को इस हफ्ते शपथ दिलाई जा सकती है।

श्रीलंकाई राजनीति में राजपक्षे परिवार का दो दशक से वर्चस्व है। इसमें एसएलपीपी के संस्थापक एवं इसके राष्ट्रीय संयोजक 69 वर्षीय बासिल राजपक्षे भी शामिल हैं जो 71 वर्षीय गोटबाया राजपक्षे और महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई हैं। महिंदा राजपक्षे इससे पहले 2005 से 2015 तक करीब एक दशक तक राष्ट्रपति रहे हैं। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने नवंबर में हुए राष्ट्रपति चुनाव में एसएलपीपी की टिकट पर जीत दर्ज की थी।

संसदीय चुनाव में, वह 150 सीटें प्राप्त करना चाह रहे थे जो संविधान में संशोधन के लिए आवश्यक थीं। इन बदलावों में संविधान के 19वें संशोधन को निरस्त करना शामिल था जो संसद की भूमिका को मजबूत करते हुए राष्ट्रपति की शक्तियों को प्रतिबंधित करता है। द्वीप देश में असहमति और आलोचना के लिए कम होती गुंजाइश से पहले से ही चिंतित कार्यकर्ताओं को भय है कि इस कदम से निरंकुशता न आ जाए। इन चुनावों में सबसे ज्यादा नुकसान पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) को हुआ जिसे केवल एक सीट नसीब हुई।

यूएनपी नेता एवं चार बार के प्रधानमंत्री रहे विक्रमसिंघे 1977 में संसद में प्रवेश करने के बाद से पहली बार अपदस्थ हुए हैं। महिंदा राजपक्षे को 77 प्रतिशत सिंहला बहुसंख्यक समुदाय के बीच उच्च दर्जा प्राप्त है जो उन्हें द्वीप देश में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल इलम (लिट्टे) की 2009 में हार के साथ ही करीब तीन दशक लंबे नृशंस गृह युद्ध को समाप्त करने का श्रेय देते हैं। 

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