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लगातार गलतियां: विश्व के वन्यजीवों की सुरक्षा की योजना क्यों कारगर नहीं

By भाषा | Updated: July 18, 2021 19:56 IST

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(मिशल लिम, सीनियर लेक्चरर मैक्यूरो यूनिवर्सिटी)

सिडनी,18 जुलाई (द कन्वर्शेसन) यह किसी से छिपा नहीं है कि विश्व के वन्य जीव बहुत ही बुरी स्थिति का सामना कर रहे हैं। नए आंकड़ों यह पता चलता है कि प्रशांत उत्तर-पश्चिम में गर्म हवाओं के कारण जून में एक अरब से अधिक समुद्री जीव मारे गए। वहीं, ऑस्ट्रेलिया में 2019-2020 में झाड़ियों में लगी आग में तीन अरब जंतु मारे गए और विस्थापित हुए। इस बीच, पूरी दुनिया में एक अरब प्रजातियां विलुप्त होने की स्थिति का सामना कर रही हैं।

ये आंकड़ें बड़े हैं लेकिन गंभीर वैश्विक प्रतिबद्धताओं से स्थिति को पलटा जा सकता है।

इस सप्ताह जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में नयी दस वर्षीय वैश्विक योजना का एक मसौदा जारी किया। नई योजना को जैव विविधता के पेरिस समझौते के रूप में माना जाता है, इसका उद्देश्य 2050 तक ‘‘प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने वाली’’ दुनिया को प्राप्त करने संबंधी कार्रवाई को तेजी से बढ़ाना है।

लेकिन अगर यह योजना अपने वर्तमान स्वरूप में आगे बढ़ती है, तो यह हमारी प्राकृतिक दुनिया के अजूबों की रक्षा करने में विफल हो जाएगी,और ऐसा इसलिए है क्योंकि यह कानूनी रूप से राष्ट्रों को इसके लिए बाध्य नहीं करती है और इससे पिछली दस-वर्षीय योजना की गलतियां ही दोहराई जाने का खतरा है।

बाध्यकारी दायित्वों का आभाव

जैव विविधता पर सम्मेलन एक महत्वपूर्ण वैश्विक समझौता है और लगभग सभी देश इसमें पक्षकार हैं। इसमें ऑस्ट्रेलिया भी शामिल है, जिसका यूरोपीय उपनिवेशीकरण के बाद से सबसे बड़ी संख्या में स्तनपायी जन्तुओं के विलुप्त होने का रिकॉर्ड रहा है। हालांकि, इसमें बाध्यकारी दायित्वों का आभाव है। कन्वेंशन में जैव विविधता को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए वर्ष 2000 से गैर बाध्यकारी लक्ष्य निर्धारित किए। लेकिन इनका कोई फायदा नहीं निकला है।

क्या यह वास्तव में पेरिस शैली का समझौता है?

मैं उम्मीद करता हूं। योजना को पेरिस-शैली का समझौता कहने से लगता है कि इसमें कोई कानूनी दम है,लेकिन ऐसा नहीं है।

जैव विविधता योजना और पेरिस समझौते के बीच मूलभूत अंतर यह है कि पेरिस समझौते का एक प्रमुख घटक हैं बाध्यकारी प्रतिबद्धताएं। ऐसा इसलिए है क्योंकि पेरिस समझौता कानूनी रूप से बाध्यकारी क्योटो प्रोटोकॉल का उन्नत रूप है।

किस तरह के बदलाव की जरूरत है?

बाध्यकारी समझौतों के अलावा, सम्मेलन की योजना के कई अन्य पहलू भी हैं जिनमें बदलाव की जरूरत है। स्थानीय लोगों में जागरुकता लाने, विज्ञान की समझ पैदा करने आदि की भी जरूरत है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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