पाकिस्तान में सेना और कोर्ट की आलोचना करने पर होगी पांच साल की सजा
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: February 20, 2022 02:08 PM2022-02-20T14:08:07+5:302022-02-20T14:15:48+5:30
इमरान सरकार की संघीय कैबिनेट ने एक अध्यादेश के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक अपराध निवारण अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दी और जैसे ही इस अध्यादेश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलेगी, यह कानूनी शक्ल ले लेगा।
इस्लामाबाद: इमरान खान सरकार की संघीय कैबिनेट ने इलेक्ट्रानिक मीडिया पर नकेल कसने के लिए शनिवार को उस अध्यादेश को मंजूरी दे दी। जिसके तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिये पाकिस्तानी सेना, कोर्ट और अन्य सरकारी संस्थान की आलोचना करने पर पांच साल की सजा का प्रावधान होगा।
जानकारी के मुताबिक इमरान सरकार ने इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक क्राइम प्रिवेंशन एक्ट में संशोधन किया है। पाकिस्तान के एक निजी समाचार चैनल की रिपोर्ट के अनुसार संघीय कैबिनेट ने एक अध्यादेश के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक अपराध निवारण अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दी और जैसे ही इस अध्यादेश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलेगी, यह कानूनी शक्ल ले लेगा।
इस मामले में जियो न्यूज को पाक सरकार के सूत्रों ने बताया कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के मामले में पारित अध्यादेश के साध ही संघीय कैबिनेट ने पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) की आचार संहिता में भी संशोधन किया है। जिसके तहत मंत्रियों और सांसदों के लिए देश में अपने पसंदीदा उम्मीदवारों के चुनाव अभियान चलाने का रास्ता आसान हो जाएगा।
सूत्रों ने इस मामले में यह भी कहा कि चुनाव आयोग के द्वारा लागू आचार संहिता से इसके केवल सत्ताधारी पार्टी इमरान खान की पार्टी ही नहीं बल्कि सभी राजनीतिक दलों को परेशानी थी। यही कारण है कि सरकार ने राष्ट्रपति के अध्यादेश के जरिए चुनाव आयोग की आचार संहिता में भी संशोधन करने का फैसला किया है।
इस बीच पाकिस्तान के सूचना एवं प्रसारण मंत्री चौधरी फवाद हुसैन ने शनिवार को कहा कि दो महत्वपूर्ण विधेयकों को मंजूरी के लिए संघीय कैबिनेट के पास भेजा गया था। मंत्री ने बताया कि पहले प्रस्ताव के तहत सांसदों को चुनाव प्रचार में भाग लेने की अनुमति दी जाएगी। वहीं दूसरी के तहत सोशल मीडिया पर सेना, कोर्ट और सरकारी संस्थाओं के बारे में अपमानजनक टिप्पणी को दंडनीय अपराध बना दिया गया है।
फवाद ने बताया कि प्रस्तावित कानून के तहत सोशल मीडिया पर किसी अन्य की गरिमा का अपमान करने के मामले में कोर्ट को छह महीने के भीतर फैसला करना होगा। कानूनी पहलूओं पर बात करने के बाद फवाद चौधरी ने इमरान खान के रूसी दौरे के बात करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान की आगामी रूस यात्रा से 'दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साबित होंगे और यह दोनों मुल्कों के लिए 'गेम-चेंजर' साबित होगा। करार दिया।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के लिए यह बेहद ही फक्र की बात है कि 23 साल बाद रूस ने किसी पाकिस्तानी नेता को मास्को आमंत्रित किया है। इससे प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व क्षमता को विश्वस्तर पर बल मिलता है। उन्होंने कहा कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने पीएम इमरान खान को जो सम्मान दिया है, वो शायद ही किसी अन्य पाक नेता को मिला हो।
फवाद ने कहा कि प्रधानमंत्री इमरान खान के ऊंचे कद को हमेशा विश्वस्तर पर स्वीकार किया गया है, चाहे वह इस्लामोफोबिया, क्षेत्रीय या फिर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की बात हो। फवाद ने सभी राजनीतिक विरोधियों मसलन मौलाना फजल-उर-रहमान, बिलावल भुट्टो जरदारी, मरियम सफदर और शहबाज शरीफ को इमरान खान के सामने 'बौना' करार देते हुए कहा कि इस वक्त मुल्क में इमरान खान के कद का कोई नेता नहीं है।
उन्होंने कहा कि देश और विदेश में पाकिस्तान के विपक्षी नेताओं की भ्रष्ट छवि के कारण कोई विश्वसनीयता नहीं रह गई है और कोई भी मुल्क उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है।
इस मामले में बात करते हुए फवाद ने मरियम सफदर से कहा कि अगर वह मुल्क की खैरख्वाह हैं तो परिवार द्वारा लूटे गई दौलत को वापस कर दें। फवाद ने कहा, "हमने आईएमएफ से एक अरब डॉलर लिए हैं और लंदन में मरियम के भाई हसन नवाज के मालिकाना हक वाले अपार्टमेंट की कीमत भी उतनी है, अगर वह उस पैसे को मुल्क में वापस लाती हैं तो इससे हमारी चुनौतियों को दूर करने में बड़ी मदद मिलेगी।"
मंत्री ने कहा, "विपक्ष के पास प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का कोई साहस और नैतिक बल नहीं है। जो लोग हमारे खिलाफ अविश्वास लाने की कोशिश कर रहे हैं, उनके पास अपने ही परिवार का भरोसा नहीं है।"
इस बीच विपक्ष ने उन खबरों पर कड़ी आपत्ति जताई है जिसमें सरकार अध्यादेश के माध्यम से कानून बनाने की बात कर रही है। विपक्षी दलों ने इलेक्ट्रानिक मीडिया को खबरों के लिए दंड देने के प्रावधान और सांसदों को चुनाव अभियान में भाग लेने की अनुमति देगा को लोकतंत्र के लिए घातक बताते हुए विरोध दर्ज कराया है।
विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति के अध्यादेश को हथियार की संज्ञा देते हुए कहा कि महत्वपूर्ण कानूनों को बनाने के लिए संसद की अनदेखी करना लोकतांत्रिक परंपराओं और संसद का अपमान है।
विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार द्वारा जानबूझकर संसद की अनदेखी करना और अध्यादेश की घोषणा के लिए एक विशेष माहौल बनाना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। इस मामले में प्रतिक्रिया देते हुए इरफान सिद्दीकी ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर अध्यादेश लाना किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए बेहद नकारात्मक कदम है।
उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री और मंत्री चुनाव प्रचार करेंगे तो वे अपने उम्मीदवार की सफलता सुनिश्चित करने के लिए राज्य के अधिकार का इस्तेमाल करेंगे जबकि विपक्ष के पास ऐसा अधिकार नहीं है।
पूर्व सीनेट अध्यक्ष सीनेटर मियां रज़ा रब्बानी ने सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि मौजूदा सरकार ने संसद को निरर्थक बना दिया गया है क्योंकि इसके दो ही मुख्य कार्य हैं, जिनमें पहला है कानून बनाना और दूसरा है कानूनों का संसदीय परीक्षण करना। उन्होंने कहा, "इस सरकार ने संसद के जरिये कानून न बनाने की जगह अध्यादेशों के शासन या कानूनों के बुलडोजर से काम चला रही है।"