4 जून 1989 को चीन के थियानमेन चौक पर मारे गए थे 10 हजार नौजवान!

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: June 4, 2019 04:26 PM2019-06-04T16:26:49+5:302019-06-04T17:09:38+5:30

ग़ैर-सरकारी आंकड़ों के अनुसार चार जून 1989 को थियानमेन चौक पर कई हजार प्रदर्शकारियों की बर्बर हत्या की गयी थी। कुछेक दावों में मारे जाने वालों की संख्या 10 हजार से ज्यादा बतायी जाती है। 

China 1989 Tiananmen Square protests history in hindi | 4 जून 1989 को चीन के थियानमेन चौक पर मारे गए थे 10 हजार नौजवान!

चीन के थियानमेन चौक पर एक आदमी सेना के टैंक के खड़ा हो गया था। उसकी तस्वीर इस प्रतिरोध का प्रतीक बन चुकी है। (Pic Courtesy: Agencies)

मंगलवार (4 जून) को अमेरिका ने चीन से थियानमेन चौक (Tiananmen Square) नरसंहार की सार्वजनिक रूप से जिम्मेदारी लेने की अपील की है। जवाब चीन ने इसे अपने आतंरिक मामले में हस्तक्षेप करार देते हुए धमकी भरे अंदाज में कहा है कि जो उसके अंदरूनी मामले में दखल देगा वह राख हो जाएगा। 

चार जून को थियानमेन चौक नरसंहार की 30वीं बरसी है। चीनी इतिहास के सबसे बड़े ख़ूनी धब्बों में एक थियानमेन चौक नरसंहार में चीन की कम्युनिस्ट सरकार आधिकारिक तौर पर लोकतांत्रिक सरकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया की आज़ादी की माँग कर रहे 241 प्रदर्शनकारियों को टैंकों और मशीनगनों से भूनकर हत्या कर दी गयी थी। मरने वालों में ज्यादातर कॉलेज-यूनिवर्सिटी के छात्र एवं अन्य नौजवान थे। 

ग़ैर-सरकारी आंकड़ों के अनुसार चार जून 1989 को थियानमेन चौक पर कई हजार प्रदर्शकारियों की बर्बर हत्या की गयी थी। कुछेक दावों में मारे जाने वालों की संख्या 10 हजार से ज्यादा बतायी जाती है। 

नीचे पढ़ें 1989 के थियानमेन चौक नरसंहार की पूरी टाइमलाइन-

1 जून 1921- रूस में व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व में सफल कम्युनिस्ट क्रांति होने के करीब साढ़े तीन साल बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) की स्थापना हुई।

1 अक्टूबर 1949- माओ त्सेतुंग के नेतृत्व में हुई क्रांति के बाद चीन में भी कम्युनिस्ट पार्टी का सत्ता पर कब्जा हो गया। चीन में एक पार्टी की अधिनायकवादी सरकार की स्थापना हुई।

9 सितम्बर 1976- माओ त्सेतुंग का निधन। माओ के निधन के बाद सीपीसी के सर्वोच्च पद के रूप में चेयरमैन का पद ख़त्म कर दिया गया और उसकी जगह जनरल सेक्रेटरी पार्टी का सर्वोच्च नेता बन गया।

दिसम्बर 1978- देंग शियाओ पिंग चीन के नए सर्वमान्य नेता बनकर उभरे। 

1986- अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में एस्ट्रोफीजिक्स के प्रोफेसर के तौर पर सेवाएं देकर चीन लौटे फांग लीझी ने देश भर में घूम-घूम कर लोकतांत्रिक स्वतंत्रता, मानवाधिकार और सत्ता के विकेंद्रीकरण के समर्थन में कई व्याख्यान दिए। 

सितम्बर 1986- छात्रों ने फांग के गृह प्रांत हेफेई लोकतांत्रिक सुधारों की माँग को लेकर प्रदर्शन करने शुरू कर दिए। 

16 जनवरी 1987- चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख ह याओबैंग (जनरल सेक्रेटरी) को उनके पद से हटने के लिए मजबूर कर दिया गया। उन पर लोकतंत्र समर्थकों के प्रति नरमी बरतने का आरोप था।

15 अप्रैल 1989 - हू याओबैंग की मौत हो गई। प्रदर्शनकारी छात्रों के बीच हू की मृत्यु से जबरदस्त रोष पैदा हआ। हू की मौत के बाद प्रदर्शकारी छात्रों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होने लगी। छात्रों ने विरोध स्वरूप भूक हड़ताल शुरू कर दी।

17 अप्रैल 1989 -  चीन की राजधानी बीजिंग स्थित थियानमेन चौक पर लाखों छात्र हू को श्रद्धांजलि देने के लिए इकट्ठे हो गये। 

18 - 21 अप्रैल 1989- बीजिंग के बाद चीन के दूसरे शहरों और विश्वविद्यालयों में भी विरोध की चिंगारी फैल गयी। छात्र लोकतांत्रिकरण, अभिव्यक्ति की आजादी और मीडिया की स्वतंत्रता बहाल किए जाने की माँग कर रहे थे। छात्रों को दूसरे कामगार तबकों से भी साथ मिलने लगा था। 

22 अप्रैल 1989- बीजिंग के थियानमेन चौक पर स्थित ग्रेट हॉल ऑफ पीपल के सामने एक लाख से ज्यादा छात्र इकट्ठा थे। चीन के किंग साम्राज्य के पुश्तैनी महल फॉरबिडेन सिटी और ग्रेट हॉल ऑफ पीपल दोनों के स्थित होने की वजह से चीनी इतिहास में थियानमेन चौक का प्रतीकात्मक महत्व काफी ज्यादा है। थियानमेन चौक पर स्थित छात्रों ने कम्युनिस्ट सरकार के सामने अपना माँगपत्र पेश किया। छात्र चीन के प्रीमियर ली पेंग से मिलने की माँग कर रहे थे, जो इस माँग को नहीं मान रहे थे। 

23 अप्रैल 1989- चीन के 21 विश्वविद्यालयों के 40 छात्रों ने एक बैठक की और बीजिंग स्टूडेंट ऑटोनॉमस फेडेरेशन का गठन। चीन कानून के अनुसार छात्रों का यह कृत्य गैर-कानूनी था। छात्र नेता जाओ योंगजुन को इस संगठन का प्रमुख चुना गया। वांग डैन और वुअरकैशी भी नेता के तौर पर उभरे।  

26 अप्रैल 1989- चीन के सरकारी अखबार पीपल्स डेली में प्रकाशित संपादकीय में प्रदर्शनकारी छात्रों को देश में अव्यवस्था फैलाने वाला घोषित करते हुए उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की वकालत की गयी। इस संपादकीय में छात्रों के आंदोलन को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी सरकार और समाजवाद सिस्टम के खिलाफ साजिश करार दिया गया।

16 मई 1989- कम्युनिस्ट पार्टी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था पोलित ब्यूरो इस मसले पर दो फाड़ में बँट गया। झाओ जियांग का धड़ा छात्रों के संग नरमी से पेश आने का हिमायती थी, ली पेंग के समर्थक छात्रों के संग कड़ाई से पेश आने के हिमायती थे।

17 मई 1989-  चीन के तत्कालीन सर्वोच्च नेता डेंग जियाओपिंग ने प्रदर्शन का विरोध करने वाले ली पेंग के धड़े की राय पर मुहर लगा दी।

18 मई 1989- ली पेंग ने भूख हड़ताल कर रहे छात्रों से मुलाकात की और उन्हें हड़ताल वापस लेने का अनुरोध किया। ली पेंग ने ग्रेट हॉल ऑफ चीन में छात्रों के संग एक बैठक की जो बेनतीजा रही। उसी शाम सीपीसी के वरिष्ठ नेताओं और पोलित ब्यूरो के सदस्यों की बैठक हुई। डेंग जियाओपिंग और ली पेंग की मौजूदगी में मार्शल लॉ लगाने की मंजूरी दे दी गयी। झाओ जियांग बैठक में नहीं शामिल हुए।

19 मई1989- मार्शल लॉ लागू हो गया। झाओ जियांग ने छात्रों से प्रदर्शन वापस लेने की एक आखिरी अपील की। सैन्य कानून लागू करने से छात्रों का विरोध और भड़क गया और थियानमेन चौक पर पहले से अधिक छात्र एकत्रित हो गये। अंतरराष्ट्रीय मीडिया के अनुसार थियानमेन चौक पर 10 लाख से ज्यादा छात्र इकट्ठा हो चुके थे। उसी शाम ली पेंग ने सरकारी टीवी पर मार्शल लॉ लागू करने की घोषणा की।

20 मई 1989- बीजिंग में पीपल्स लिबरेशन आर्मी भेजी गयी। बीजिंग के नागरिकों ने चीन की लाल सेना के राजधानी में प्रवेश का असफल विरोध किया।

24 मई 1989- जनदबाव में चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने बीजिंग से सेना को हटा दिया। 

25 मई - 1 जून 1989- थियानमेन चौक पर विरोध प्रदर्शन जारी रहा। बड़ी संख्या में छात्र वहाँ से हटने को तैयार नहीं थे। 

2 जून 1989- कम्युनिस्ट सरकार ने "क्रांति-विरोधी शक्तियों" को कुचलने के लिए सैन्य शक्ति प्रयोग करने की इजाजत दे दी। दूसरी तरफ चीनी युवा संगीतकार हाऊ डेजियान और तीन अन्य प्रमुख बुद्धिजीवी भूख हड़ताल पर बैठ गये।

3 जून 1989- चीनी सैनिकों ने बीजिंग शहर में प्रवेश शुरू कर दिया। नागरिकों ने इसका विरोध किया। रात करीब 10.30 बजे सैनिकों ने निहत्थे नागरिकों पर एके-47 राइफलों से गोलीबारी शुरू कर दी।

4 जून 1989- दोपहर एक बजे के करीब चीनी सैनिक थियानमेन चौक पर पहुंच गये। सैनिकों को शाम छह बजे तक चौक खाली कराने का आदेश दिया गया था। सैनिकों ने प्रदर्शनकारियों को वहाँ से जाने या अंजाम भुगतने की चेतावनी दी। छात्रों ने इस मसले पर मतदान किया और छात्र नेता फेंग कोंगडे ने नतीजा सुनाते हुए बताया कि ज्यादा वोट थियानमेन चौक खाली करने के पक्ष में पड़े हैं। इसके बाद छात्रों ने चौक खाली कर दिया। लेकिन कुछ ही घंटों बाद कुछ प्रदर्शनकारी दोबारा थियानमेन चौक पर इकट्ठा होने लगे। वापस जाने की चेतावनी की अनदेखी करने के बाद चीनी सैनिकों ने उनपर गोली चली दी। माना जाता है कि कई प्रदर्शनकारी उसी वक़्त मारे गये। उसके बाद अगले कई घंटों तक सैनिकों ने कई राउंड गोलीबारी की। 

चीन के रेडक्रास सोसाइटी ने पहले-पहल मरने वालों की संख्या 2600 बतायी। चीन सरकार के अनुसार सैनिकों समेत 241 लोगों की मौत हुई थी और सात हजार से ज्यादा लोग घायल हुए थे। गैर-सरकारी आंकड़ों के अनुसार मरने वालों की संख्या कुछ हजार से 10 हजार तक थी।

5 जून 1989- चार जून को हुए नरसंहार के बाद पाँच जून को एक अभूतपूर्व घटना घटी। चीनी सेना ने पूरी तरह बीजिंग पर नियंत्रण कर लिया था। बीजिंग में गश्त कर रहे सेना के टैंकों के काफिले के सामने अचानक ही एक निहत्था नौजवान आ खड़ा हुआ। शुरू में कुछ टैंकों ने उसके आजू-बाजू से गुजरना चाहा लेकिन वह युवक फिर-फिर उनके सामने आ डटा। कुछ ही देर बाद नौजवान एक टैंक के ऊपर चढ़ गया उसके ड्राइवर के कान में कुछ कहकर नीचे कूदा और भीड़ में खो गया। अभी तक रहस्य है कि वो नौजवान कौन था और आगे उसका क्या हुआ लेकिन टैंक के सामने निहत्थे खड़े नौजवान की तस्वीर विश्व इतिहास में अमर हो गयी।

English summary :
Around 10,000 students protesters were killed on 4th June 1989 on Tiananmen Square protests in China. Students were demanding Democratic Reforms, Freedom of Press and Freedom of Speech. China's People's Army crushed this protest violently.


Web Title: China 1989 Tiananmen Square protests history in hindi

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