अमेरिका ने एलान किया किया कि कुछ देशों को ईरान से तेल आयात में जो छूट दी जा रही थी उसकी अवधि 2 मई को समाप्त होने वाली है और इसके बाद अगर इन देशों ने ईरान से तेल ख़रीदा तो अमेरिकी प्रतिबन्ध इनके ऊपर भी लागू होंगे. इनमें चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और तुर्की शामिल हैं. लेकिन अमेरिका का यह फैसला चीन और भारत के लिए ज्यादा बड़ा झटका है. चीन और भारत ईरान के कच्चे तेल के सबसे बड़े खरीदार हैं.
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ख़राब संकेत
मोदी सरकार के शुरूआती दौर में तेल की कीमतें कम होने से अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली थी. सरकार ने इन पैसों को बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर और सब्सिडी पर खर्च किया. लेकिन जब सऊदी अरब के नेतृत्व में ओपेक देशों ने तेल का उत्पादन घटाया तो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में अप्रत्याशित बढ़ोतरी देखी गई. भारतीय अर्थव्यवस्था इस हैंगओवर से अभी तक पूरी तरह नहीं उबर पायी है.
इसी दौर में भारत ने ईरान के साथ समझौता किया कि वो कच्चा तेल भारतीय मुद्रा में खरीदेगा. जिसके बाद डॉलर के मुकाबले गिरते रुपये की ताप से बचने में सहूलियत मिली थी, लेकिन अब अमेरिकी प्रतिबंधों के कमबैक ने एक बार फिर भारतीय अर्थव्यवस्था को मझधार में डाल दिया है.
ईरान पर कितना निर्भर भारत
भारत में करीब 12% कच्चा तेल सीधे ईरान से आता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष भारत ने ईरान से करीब सात अरब डॉलर के कच्चे तेल का आयात किया था. ईरान के पास मौजूद विशाल प्राकृतिक गैस भंडार और भारत में ऊर्जा की बढ़ती ज़रूरतें भी एक बड़ा फैक्टर है. भारत और ईरान के बीच दोस्ती के मुख्य रूप से दो आधार हैं. एक भारत की ऊर्जा ज़रूरतें हैं और दूसरा ईरान के बाद दुनिया में सबसे ज़्यादा शिया मुस्लिमों का भारत में होना.
भारत ने हाल ही में ईरान में स्थित चाबहार पोर्ट को विकसित करने का जिम्मा उठाया है जिससे भारत को अफगानिस्तान पहुंचने के लिए पाकिस्तान जाने की जरुरत नहीं होगी. ईरान भारतीय मुद्रा में ही बासमती चावल और बड़े पैमाने पर दवाइयों का आयात करता है. इराक और सऊदी अरब के बाद ईरान भारत को कच्चा तेल निर्यात करने वाले देशों में तीसरे स्थान पर आता है.
भारत और ईरान के बीच अमेरिका की दीवार
हाल के वर्षों में अफगानिस्तान में भारत ने अपनी मौजूदगी बढ़ाई है जिसके कारण चाबहार पोर्ट सामरिक रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है. अफगानिस्तान में भारतीय सामरिक हितों के हिसाब से भारत और ईरान के बीच चाबहार पोर्ट को लेकर हुआ समझौता एक बड़ी कूटनीतिक विजय थी. ईरान के चाबहार पोर्ट को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का जवाब बताया जा रहा है जिसे पाकिस्तान चीन की मदद से विकसित कर रहा है.
ईरान और भारत के रिश्ते सामरिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. पाकिस्तान के द्वारा निर्यातित आतंकवाद के जख्म को भी दोनों देश साझा रूप से शेयर करते हैं. ऐसे में भारत और ईरान के सामरिक रिश्तों पर अमेरिकी प्रतिबंधों का असर पड़ सकता है.
डोनाल्ड ट्रंप ने बीते साल ही ईरान के साथ परमाणु समझौता को तोड़ दिया था. जिसका यूरोपीय यूनियन के देशों ने भी विरोध किया था. ट्रंप ईरान के साथ नए तरीके से समझौता करना चाहते हैं. भारत और चीन जैसे अन्य देशों को लेकर ट्रंप का यह रवैया अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में एक बार फिर उथल-पुथल मचा सकता है.