अफगानिस्तान की लोया जिरगा ने ‘तत्काल और स्थायी’ संघर्षविराम की मांग की, राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा, वह सशर्त तैयार

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 3, 2019 04:18 PM2019-05-03T16:18:37+5:302019-05-03T16:18:37+5:30

अशरफ गनी ने कहा कि वह संघर्ष विराम के लिये ‘‘निष्पक्ष एवं जायज मांग’’ को लागू करने को तैयार हैं लेकिन उन्होंने जोर दिया कि यह ‘‘एक पक्षीय नहीं होगा।’’ प्रतिनिधियों ने कहा, ‘‘अफगानिस्तान के इस्लामी गणराज्य की सरकार और तालिबान को रमजान की शुरुआत में पहले दिन से तत्काल एवं स्थायी संघर्षविराम की घोषणा कर देनी चाहिए और इसे लागू करना चाहिए।’’

Afghanis summon for Loya Jirga’ assembly, aims at ways to negotiate peace deal with Taliban. | अफगानिस्तान की लोया जिरगा ने ‘तत्काल और स्थायी’ संघर्षविराम की मांग की, राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा, वह सशर्त तैयार

राजधानी काबुल में आयोजित सम्मेलन में हजारों अफगानिस्तानी प्रतिनिधि और कबायली नेता शामिल हुए थे।

Highlightsअशरफ गनी ने कहा कि वह संघर्ष विराम के लिये ‘‘निष्पक्ष एवं जायज मांग’’ को लागू करने को तैयार हैं।लोया जिरगा पश्तो भाषा के शब्द हैं और इनका मतलब है महापरिषद। सैकड़ों साल पुरानी यह संस्था इस्लामी शूरा या सलाहकार परिषद जैसे सिद्धांत पर काम करती है।

काबुल में शुक्रवार को संपन्न ‘‘लोया जिरगा’’ के ऐतिहासिक शांति सम्मेलन में समूचे अफगानिस्तान से आये प्रतिनिधियों ने ‘‘तत्काल एवं स्थायी’’ संघर्षविराम की मांग की। हालांकि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी का कहना है कि वह इस मांग को लागू करने के लिये सशर्त तैयार है।

अशरफ गनी ने कहा कि वह संघर्ष विराम के लिये ‘‘निष्पक्ष एवं जायज मांग’’ को लागू करने को तैयार हैं लेकिन उन्होंने जोर दिया कि यह ‘‘एक पक्षीय नहीं होगा।’’ सप्ताह भर चले सम्मेलन के आखिर में समापन बयान में प्रतिनिधियों ने कहा, ‘‘अफगानिस्तान के इस्लामी गणराज्य की सरकार और तालिबान को रमजान की शुरुआत में पहले दिन से तत्काल एवं स्थायी संघर्षविराम की घोषणा कर देनी चाहिए और इसे लागू करना चाहिए।’’

राजधानी काबुल में आयोजित सम्मेलन में हजारों अफगानिस्तानी प्रतिनिधि और कबायली नेता शामिल हुए थे। रमजान आगामी दिनों में शुरू होने वाला है। लोया जिरगा अफगानिस्तान की एक अनूठी संस्था है जिसमें सभी पख्तून, ताजिक, हजारा और उज्बेक कबायली नेता एक साथ बैठते हैं। इनमें शिया और सुन्नी दोनों शामिल होते हैं। ये देश के मामलों पर विचार विमर्श कर फैसले करते हैं या फिर किसी उद्देश्य के लिए एकजुट होने का फैसला भी कर सकते हैं।

लोया जिरगा पश्तो भाषा के शब्द हैं और इनका मतलब है महापरिषद। सैकड़ों साल पुरानी यह संस्था इस्लामी शूरा या सलाहकार परिषद जैसे सिद्धांत पर काम करती है। अब तक कबीलों के आपसी झगड़े सुलझाने, सामाजिक सुधारों पर विचार करने और नये संविधान को मंजूरी देने के लिये इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है। 

Web Title: Afghanis summon for Loya Jirga’ assembly, aims at ways to negotiate peace deal with Taliban.

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