संस्कृत व्याकरण की 2500 साल पुरानी गुत्थी सुलझी, कैंब्रिज विश्वविद्यालय में भारतीय छात्र ने किया कमाल

By विनीत कुमार | Published: December 16, 2022 10:49 AM2022-12-16T10:49:23+5:302022-12-16T11:17:29+5:30

कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे एक भारतीय छात्र ने संस्कृत व्याकरण से जुड़ी 2500 साल पुरानी गुत्थी को सुलझाने का अनूठा काम किया है। यह गुत्थी संस्कृत के महान विद्वान पाणिनी से जुड़ी है।

2500 years old mystery of Sanskrit grammar solved by Indian student in Cambridge University | संस्कृत व्याकरण की 2500 साल पुरानी गुत्थी सुलझी, कैंब्रिज विश्वविद्यालय में भारतीय छात्र ने किया कमाल

संस्कृत व्याकरण की 2500 साल पुरानी गुत्थी भारतीय छात्र ने सुलझा ली

लंदन: दुनिया के सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक संस्कृत की सदियों पुरानी एक पहेली को आखिरकार सुलझा लिया गया है। संस्कृत के विद्वानों के लिए 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व से यह पहेली अबूझ बनी हुई थी, लेकिन कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे एक भारतीय छात्र ने इसका हल निकाल लिया। 

संस्कृत के व्याकरण से जुड़ी इस गुत्थी को 27 साल के भारतीय छात्र ऋषि राजपोपट ने सुलझाया है। ऋषि सेंट जॉन कॉलेज से जुड़े हैं। उन्होंने कई प्रयासों के बाद संस्कृत भाषा के विद्वान पाणिनी द्वारा लिखित एक नियम को डिकोड किया।

कंप्यूटर को पढ़ाया जा सकेगा पाणिनी का व्याकरण

ऋषि की नई खोज ने अब ये संभव कर दिया है कि पाणिनी के 'भाषा मशीन' से कोई भी संस्कृत शब्द निकाला जा सकता है और इसके जरिए लाखों व्याकरणिक रूप से सही शब्दों को बनाया जा सकता है। 

कई संस्कृत विशेषज्ञों ने भी राजपोपट की खोज को 'क्रांतिकारी' बताया है और अब इसका मतलब यह भी हो सकता है कि पाणिनि का व्याकरण पहली बार कंप्यूटर को सिखाया जा सकता है।

पाणिनी के संस्कृत व्याकरण की हजारों साल पुरानी गुत्थी

ऋषि राजपोपट की पीएचडी थिसिस 15 दिसंबर, 2022 को प्रकाशित हुई है। इस शोध के बाद पाणिनी के 'लैंग्वेज मशीन' का सही और ठीक इस्तेमाल संभव हो सकेगा।

दरअसल, पाणिनी के 4000 नियमों का विस्तार से वर्णन उनकी किताब 'अष्टध्यायी' में है। माना जाता है कि इसे करीब 500 ईसा पूर्व में लिखा गया। व्याकरण से जुड़े नियमों की यह किताब एक तरह से मशीन की तरह है।

इसे ऐसे समझा जा सकता है कि एक शब्द के आधार और प्रत्यय का इस्तेमाल करें और नियमों के अनुरूप चलने पर यह व्याकरणिक रूप से सही शब्द और वाक्य में बदल जाएगा। आसान भाषा में कहें तो यह गणित के किसी फॉर्मूले की तरह है या किसी एल्गोरिथ्म की तरह काम करता है।

व्याकरण के नियमों को लेकर थी उलझन 

पाणिनी के बताए नियमों को लेकर अभी तक एक बड़ी समस्या रही है। अक्सर, पाणिनि के दो या दो से अधिक नियम एक ही चरण में एक साथ लागू होते हैं, जिससे विद्वान इस बात को लेकर असमंजस में पड़ जाते हैं कि किसे चुनना है या क्या सही माना जाए।

ऋषि राजपोपट ने इसी उलझन को सुलझाने का काम किया है। ऋषि के शोध के अनुसार पाणिनी के बनाए मेटारूल को पिछले कई सालों से गलत समझा गया और उनकी गलत व्याख्या की गई। मेटारूल असल में एक ऐसे नियम को कहते हैं जो यह बताता है कि इससे जुड़े अन्य दूसरे नियमों का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है।

ऋषि के अनुसार पिछले 2,500 वर्षों से कई विद्वानों ने इस मेटारूल की गलत व्याख्या की है जिसका नतीजा हुआ कि वे अक्सर एक व्याकरणिक रूप से गलत परिणाम तक पहुंचे।

इस समस्या को ठीक करने के प्रयास में कई विद्वानों ने कई अन्य मेटारूल्स विकसित कर लिए लेकिन डॉ. राजपोपट के अनुसार नए मेटारूल्स न केवल मौजूदा समस्या को हल करने में विफल हैं, बल्कि सभी कई सारे अपवाद भी उत्पन्न करते हैं, जो पूरी तरह से अनावश्यक भी हैं। राजपोपट कहते हैं कि पाणिनि की 'लैंग्वेश मशीन' या नियम अपने आप में काफी है।

ऋषि राजपोपट की खोज में क्या कहा गया है?

अमूमन विशेषज्ञ यह मानते रहे कि समान शक्ति के दो नियमों के बीच संघर्ष की स्थिति में व्याकरण के क्रमिक क्रम में बाद में आने वाला नियम पुख्ता है। ऋषि के अनुसार हालांकि यह अक्सर व्याकरण की दृष्टि से गलत नतीजे देता है।

राजपोपट ने कहा कि पाणिनी का नियम यह कहता है कि शब्द के बाएं और दाएं पक्ष में से दाएं पक्ष पर लागू होने वाले नियम का चयन किया जाए। ऐसा करने पर पाणिनि की 'भाषा मशीन' ने लगभग बिना किसी अपवाद के व्याकरणिक रूप से सही शब्दों का निर्माण किया।

'कैंब्रिज में मेरे लिए था वह यूरेका पल'

अपनी खोज को लेकर राजपोपट ने कहा, 'कैंब्रिज में मेरे पास एक यूरेका पल था.. 6 महीने तक गुत्थी को हल करने की कोशिश के बाद मैं इसे करीब-करीब छोड़ देने की तैयारी में था। मैं इसे हल करते हुए कहीं पहुंचता नजर नहीं आ रहा था। इसके बाद मैंने एक महीने के लिए किताबें बंद कर दीं और बस गर्मियों का आनंद लिया। इस दौरान मैंने तैराकी, साइकिल चलाना, खाना बनाना, प्रार्थना और ध्यान आदि काम किए। आखिरकार मैं फिर बड़े बेमन से काम पर वापस लौटा और मिनटों में, जैसे ही मैंने पन्ने पलटे, ये सभी पैटर्न मेरे सामने उभरने लगे और सब समझ में आने लगा।'

उन्होंने कहा, 'और भी बहुत काम करना था लेकिन मुझे पहेली का सबसे बड़ा हिस्सा मिल गया था। अगले कुछ हफ्तों तक मैं बहुत उत्साहित था, मैं सो नहीं पा रहा था और आधी-आधी रात तक लाइब्रेरी में घंटों समय बिताता था। यह सबकुछ यह जाँचने के लिए कर रहा था कि कि मैंने क्या पाया और इससे संबंधित पहेली का भी हल निकाल लिया जाए। इन सब काम में और ढाई साल लग गए।'

Web Title: 2500 years old mystery of Sanskrit grammar solved by Indian student in Cambridge University

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