इस घर का किचेन एक देश में और बेडरूम दूसरे देश में है, एक बार जरूर करें इस गांव की सैर
By मेघना वर्मा | Published: March 21, 2018 04:57 PM2018-03-21T16:57:02+5:302018-03-21T16:57:02+5:30
जनसंख्यां की बात करें तो ये मोन जिले का सबसे बड़ा गांव है।
भारत एक ऐसा देश है जहां सभ्यताओं और परम्पराओं का पूरा संगम दिखता है। प्यार की निशानी ताज महल हो या दिल्ली का लाल किला, पर्यटन की दृष्टि से ये देश हमेशा सैलानियों की विश लिस्ट में होता है। सिर्फ ऐतिहासिक स्थल ही नहीं भारत में कुछ ऐसे अजीबो-गरीब जगह भी हैं जो आज भी विदेशी पर्यटकों के लिए अचम्भे का विषय बना हुआ है। आज हम आपको देश के ऐसे ही गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें लगभग हर घर के कमरे अलग-अलग देशों में अर्थात किसी का किचेन भारत में हैं तो बेडरूम किसी दूसरे देश में। आप भी जानिए ऐसे गांव के बारे में जहां लोगों के पास एक नहीं बल्कि दो देशों की नागरिकता हासिल है।
नागालैंड की राजधानी कोहिमा से लगभग 300 किलोमीटर दूर स्थित गांव लौंगवा भारत की पूर्व दिशा के बॉर्डर पर बसा है ये गांव अपने आप में अनोखा है। इस गांव के बीचोबीच से होकर जाता है भारत और म्यांमार का बॉर्डर। हैरान करने वाली बात है की इस बॉर्डर ने इस गांव को बीच से बांटा नहीं बल्कि यहां के लोगों को दो देशों यानी भारत और म्यांमार की नागरिकता दे दी गयी है।
1970-71 में हुआ था बटवारा
भारत और म्यांमार के इस बॉर्डर का निर्माण 1970-71 में हुआ था जब भारत से म्यांमार अलग हुआ था। जनसंख्यां की बात करें तो ये मोन जिले का सबसे बड़ा गांव है। अजीब बात ये है की गांव एक ही हैं लौंगवा लेकिन ये म्यांमार में भी आता है और भारत में भी। 2011 जनगणना की बात करें तो इस गांव में कुल 5132 लोग रहते हैं। इस गांव के लोग कोनयाक नागा समुदाय के हैं जो नागालैंड के 16 सबसे बड़े नागा समुदाय में सबसे बड़ा समुदाय है।
राजा के घर से होकर जाती म्यांमार और भारत का बॉर्डर
इस समुदाय के मुखिया को 'अंघ' कहा जाता है। लौंगवा गांव के मुखिया का घर ही है जिसके बीच से गुजर कर भारत और म्यांमार का ये बॉर्डर गुजरता है। घर के बीचो-बीच से निकलने वाले इस बॉर्डर के कारण इनका आधा घर भारत में और आधा घर म्यांमार में पड़ता है। हालांकि इस घर के बीच कोई दीवार या कोई बॉर्डर जैसा नहीं है लेकिन फिर भी यह एक घर दो देशों के अंतर्गत आता है। समुदाय के मुखिया का शासन कुछ ऐसे गांव पर भी है जो म्यांमार में आता है। लौंगवा गांव एक उदाहरण हैं बिना सरहदों के जिन्दगी जीने का।
जॉब और दूसरे कामों के लिए दोनों देशों में आते हैं लोग
इस गांव के युवा या यहां के लोग काम करने या व्यापार करने दोनों देशों में जाते हैं। दो देशों के बीच रहकर भी यहां के लोग किसी सीमा में बंधे हुए नहीं है। इस गांव को देखकर और समझ कर यही बात समझ आती है कि बॉर्डर या अलगाव सिर्फ इंसानी सोच और दिमाग की उपज है लेकिन दिल सब के साथ मिलकर ही रहना चाहता है।