सावन क्यों है शिव को प्रिय, जानिए शिव भक्ति में सावन का महत्व, पूजन की विधि

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: June 30, 2023 01:05 PM2023-06-30T13:05:12+5:302023-06-30T13:14:19+5:30

हिंदू सनातन धर्म के अनुसार शिव संहार के देवता महाकाल हैं, शिव निलकंठ हैं। शिव अविनाशी और अनंत हैं। सावन के महीने में की गई शिव की आराधना या पूजन का इसलिए महत्व है क्योंकि हिंदू पंचाग के अनुसार सावन को सर्वोत्तम मास की संज्ञा दी गई है।

Why Sawan is dear to Shiva, know the importance of Sawan in devotion to Shiva, method of worship | सावन क्यों है शिव को प्रिय, जानिए शिव भक्ति में सावन का महत्व, पूजन की विधि

सावन क्यों है शिव को प्रिय, जानिए शिव भक्ति में सावन का महत्व, पूजन की विधि

Highlightsहिंदू सनातन धर्म के अनुसार शिव संहार के देवता महाकाल हैं, अविनाशी शिव निलकंठ हैंसावन शिव को इस कारण से प्रिय है क्योंकि हिंदू पंचाग के अनुसार सावन सर्वोत्तम मास है सावन में शिव भक्त द्वादश ज्योतिर्लिंगों की आराधना करते हैं, उनकी पूजा-आराधना करते हैं

दिल्ली: सावन का महीना प्रभु शिव को अत्यंत प्रिय है। सावन में निलकंठ महादेव का अभिषेक करने से भक्तों को विशेष कृपा मिलती है। सावन के महीने में सर्वार्थ सिद्धि योग माना जाता है। इस महीने में की गई शिव की आराधना, पूजा या हवन-यज्ञ का महत्व काफी अधिक होता है लेकिन क्यों?

आखिर क्यों हिंदू पंचाग के अनुसार सावन को सर्वोत्तम मास की संज्ञा दी जाती है। आखिर क्यों शिव को सावन ही प्रिय है? यहां हम आपकी जिज्ञासा के लिए उन रहस्यों को उजागर कर रहें और शिव पूजन, सावन का महत्व और महादेव की पूजन विधि को विस्तार से बता रहे हैं।

शिव की महत्ता अनादी काल से इस संसार के लिए अबूझ है। जिस प्रकार इस सारे ब्रह्माण्ड का न कोई अंत है और न ही कोई आरंभ है। ठीक प्रकार देवों के देव कहे जाने वाले त्रिकाल दृष्टा प्रभु शिव का न ही कोई आरम्भ है और न ही अंत। हिंदू मान्यता के अनुसार सम्पूर्ण ब्रह्मांड शिव में समहित है। जब यह जगत नहीं था, शिव तब भी थे। शिव संहार के आदि तत्व हैं, इसलिए इन्हें महाकाल भी कहा जाता है।

सनातन हिंदू धर्म में सावन शिव को इस कारण से समर्पित है क्योंकि मान्यता है कि सावन के आरंभ में भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन हो जाते हैं और इस सारे संसार की सत्ता  संचालन का दायित्व प्रभु शिव के हाथों में होता है। साल 2023 का सावन 04 जुलाई यानी मंगलवार से शुरू होगा और 31 अगस्त दिन गुरुवार को समाप्त होगा। इस साल सावन में कुल आठ सोमवार पड़ेंगे। सावन के सोमवार में भक्त द्वादश ज्योतिर्लिंगों की आराधना करते हैं और पवित्र नदियों के जल से, दुग्ध से, गन्ने के रस से भगवान शिव का अभिषेक करते है।

शिव का अनंत महात्म्य

सत्यम शिवमं सुंदरम अर्थात इस संसार में जो भी सत्य है, वह शिव है और जो शिव है, वह स्वयं में सुंदर है। इसलिए जो भी शिव कृपा पाने की लालसा रखते हैं। उन्हें स्वंय के अहंकार का नाश करना होगा। अपने भीतर शिल की भक्ति ज्योत को प्रज्वलित करना होगा और भक्ति-ध्यान के माध्यम से मन की आखों से शिव को देखने का प्रयास करना होगा।

हिंदू सनातन धर्म में शिव देवों के देव कहे गये हैं। महादेव को वेदों में रूद्र नाम से पुकारा गया है। शिव चेतना के स्वामी हैं और शिव की अर्द्धागिंनी स्वंय मां शक्ति अर्थात पार्वती हैं। शिव के पुत्र कार्तिकेय,अय्यपा और गणेश हैं और अशोक सुंदरी, ज्योति और मनसा देवी इनकी पुत्रियां हैं। शिव के मस्तक में ज्वाल है, जिसे शांत करने के लिए उनके मस्तक पर चन्द्रमा तथा जटाओं में पावन मां गंगा का वास है। शिव के गले में नागदेवता का वास है और इनके हाथों में डमरू और त्रिशूल है।

इस जगत के कल्याण के लिए शिव शंकर ने विषपान किया था, शिव नीलकंठ हो गये। शिव संहार के देव है। शिव सौम्य भी हैं और रूद्र हैं। इसलिए शिव जी की पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शंकर या महादेव सनातन के सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। शिव त्रिदेवों में एक त्रिपुरारी हैं। कैलाश पर शिव का वास है। शिव स्वयंभू  हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च हैं। शिव इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड के अस्तित्व के आधार हैं।

शिव की आराधना में सावन का महत्व

सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तब भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने मेरे असम्मान से मर्माहत होकर पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था। उससे पहले सती ने हर जन्म में पति के रूप में शिव के वरण का प्रण लिया था।

देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैनाक के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। देवी पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रहकर मुझे पति रूप में वरण करने के लिए कठोर व्रत किया और मुझे प्रसन्न किया था। उसके बाद से ही मेरे लिए सावन मास अत्यंत प्रिय और विशेष हो गया।

सावन शिव को अत्यंत प्रिय है, इसकी एक दूसरी कथा भी सुनने को मिलती है। जिसके अनुसार मरकंडू ऋषि के पुत्र मार्कण्डेय नेअल्पायु पर विजय प्राप्त करने के लिए और लंबी आयु पाने के लिए सावन माह में ही शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया था और शिव कृपा प्राप्त की। शिव तपस्या से मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए और  मार्कण्डेय के प्राण नहीं हर सके।

सावन मास में सबसे अधिक वर्षा होती है, जो शिव जी के गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करती है। महादेव ने स्वंय सावन मास की महिमा बताते हुए कहा है कि मेरे तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बांये चन्द्र और अग्नि मध्य नेत्र है। जब सूर्य कर्क राशि में गोचर करता है, तब सावन महीने की शुरुआत होती है। सूर्य गर्म है जो उष्मा देता है जबकि चंद्रमा ठंडा है, जो शीतलता प्रदान करता है। इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से खूब बरसात होती है। जिससे लोक कल्याण के लिए विष को पीने वाले भोले को ठंडक व सुकून मिलता है। प्रजनन की दृष्टि से भी यह मास बहुत ही अनुकूल है। इसी कारण शिव को सावन प्रिय हैं।

इसके अलावा उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे हिंदीभाषी क्षेत्र में एक किंवदंती प्रचलित है कि सावन मास में ही भगवान शिव जी इस पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। मान्यता है कि शिवजी प्रत्येक वर्ष सावन माह में अपनी ससुराल आते हैं। इसी सावन मास में असुरों और देवताओं ने मिलकर समुद्र मंथन भी किया गया था। इसी समुद्र मथने के निकले विष को शिव ने अपने गले में स्थान दिया अन्यथा इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड का नाश हो जाता। उसी विषपान से शिवजी ‘नीलकंठ” हो गये। देवी-देवताओं ने शिवजी के गले में ठहरे गरल यानी विष के प्रभाव को कम करने के लिए जलार्पण किया । इसी कारण भी सावन में शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में महादेव को जलार्पण करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

शिव को क्यों विशेष प्रिय है सोमवार का दिन

मान्यता है कि शिव का सावन के सोमवार को रखा गया व्रत अत्यंत फलदायी होता है। जिन भी लड़के या लड़कियों के विवाह में परेशानी आती है या उन्हें मनोवांछित वर या कन्या का वरण करना है। उन्हें सामान्य महीने में भी सोमवार और सावन के महीने में विशेषकर सोमवार का व्रत रखना चाहिए और शिव की विशेष आराधना करनी चाहिए। भगवान शिव सावन के महीने में सोमवार के व्रत धारण से अपने भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं और उनके द्वारा किये हर पाप कर्मों को नष्ट कर देते हैं। सोमवार का प्रतिनिधि ग्रह चन्द्रमा है। चन्द्रमा मन का कारक है। इसलिए कहा गया है चंद्रमा मनसो जात।

चंद्रमा का मन के नियंत्रण और नियमन में महत्त्वपूर्ण योगदान है। चन्द्रमा भगवान शिव जी  के मस्तक पर विराजमान है। भगवान शिव  स्वयं साधक व भक्त के चंद्रमा अर्थात मन को नियंत्रित करते हैं। शिव सोमवार का व्रत धारण करने वाले भक्तों के मन को अपने वश में करके तथा उन्हें एकाग्रचित करके अज्ञानता के भाव सागर से बाहर निकालते है। शिव भक्तों को व्रत के दिन सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए तथा व्रती को दिन में सूर्यास्त के बाद एक बार भोजन करना चाहिए।

शिव अथवा रूद्र के अभिषेक का महत्व

शिव परम कल्याणकारी हैं। उनकी आराधना से भक्तों के संपूर्ण मनोरथ सिद्ध होते हैं। धर्मशास्त्रों में वर्णित पूजा पद्धति से शिव का अर्चन करने से विशिष्ठ लाभ की प्राप्ति होती हैं। सावन में शिव आराधना और अभिषेक का अनुपम महत्व है। अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है स्नान करना या कराना। इसी क्रम मे अगर हम रुद्राभिषेक की बात करें तो उसका अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों द्वारा अभिषेक करना।

रुद्राभिषेक में मृत्युंजय शिव का जागृत मंत्रों से पूजन किया जाता है। आजकल अभिषेक को ही रुद्राभिषेक मान लेते हैं लेकिन अभिषेक और रुद्राभिषेक में बहुत बड़ा भेद होता है। के रुप में ही ज्यादातर जाना जाता है। अभिषेक के कई प्रकार तथा रुप होते हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका है। रुद्राभिषेक में वर्णित मंत्रों को ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद से लिया गया है।

रुद्राष्टाध्यायी में बताया गया है कि शिव ही रुद्र हैं और रुद्र ही शिव है। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानी रुद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। दरअसल जो दुःख हम भोगते है, उसका कारण कोई अन्य नहीं बल्कि हम स्वयं होते हैं। हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए पाप कर्म हमें दुःख भोगते पर विवश करते हैं।

शिव पालक भी हैं और संहारक भी हैं। इसलिए शिव को काल के साथ-साथ वंशाधार भी कहा जाता है। भक्तों को वंश वृद्धि के लिए गाय के शुद्ध घी से शिव सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। भौतिक सुखों के लिए इत्र से शिव का अभिषेक करने से सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। मानसिक शांति के लिए महादेव का अभिषेक शुद्ध जल से करना चाहिए। शहद से अभिषेक करने पर रोग मुक्ति मिलती है। परिवार में बीमारियों का अधिक प्रकोप नहीं रहता है।

गन्ने के रस की धारा डालते हुये अभिषेक करने से आर्थिक समृद्धि व परिवार में सुखद माहौल बना रहता है। शिव जी को गंगा की धारा बहुत प्रिय है। गंगा जल से अभिषेक करने पर चारो पुरूषार्थ की प्राप्ति होती है। अभिषेक करते समय महामृत्युंजय का जाप करने से फल की प्राप्ति कई गुना अधिक हो जाती है। ऐसा करने से मॉ लक्ष्मी प्रसन्न होती है। सरसों के तेल की धारा डालते हुये अभिषेक करने से शत्रुओं का शमन होता, रूके हुये काम बनने लगते है व मान-सम्मान में वृद्धि होती है।

शिव पूजा में किन पुष्पों का है महत्व

 प्रभु शिव को विल्वपत्र अत्यंत प्रिय है। विल्वपत्र चढ़ाने से जन्मान्तर के पापों व रोग से मुक्ति मिलती है। महादेव को कमल पुष्प चढ़ाने से शान्ति व धन की प्राप्ति होती है। महादेव को कुशा चढ़ाने से मुक्ति की प्राप्ति होती है। दूर्वा चढ़ाने से आयु में वृद्धि होती है। धतूरा अर्पित करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति व पुत्र का सुख मिलता है। वहीं कनेर का पुष्प चढ़ाने से पारिवारिक कलह व रोग से मुक्ति होती है। शमी पत्र चढ़ाने से पापों का नाश होता, शत्रुओं का शमन व भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है।

शिव की पूजा विधि उपयोगी महत्वपूर्ण सामग्री

शिव की आराधना करने वाले भक्तों को सावन महीने में प्रातः उठकर नित्यक्रिया करने के बाद स्नान करके मन, वचन और कर्म से शुद्ध होकर आराधना करनी चाहिए। इसके लिए भक्तों को स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ वस्त्र धारण करना चाहिए। मंदिर में प्रभु शिव की मूर्ति या शिवलिंग के सामने दीप प्रज्वलित करना चाहिए। इसके बाद शिवलिंग का गंगाजल, घी, शहद, दही और दूध से अभिषेक करें।

भगवान शिव को बिल्वपत्र अत्यंत प्रिय हैं। बिल्वपत्र पर लाल चंदन से प्रमु शिव का नाम लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करना चाहिए और पुष्प एवं अक्षत अर्पित करना चाहिए। उसके पश्चात पूरे भक्ति भाव से महादेव की आरती करेनी चाहिए और यथाशक्ति भोग लगाना चाहिए।

महादेव की पूजा में प्रयोग होने वाली सामग्री के रूप में पुष्प, पंच फल, पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगाजल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, जनेऊ, मिष्ठान्न,  भांग, धतूरा, बेर, मंदार पुष्प, गाय का दूध, ईख का रस, कपूर, धूप, दीप एवं चंदन का  प्रावधान है लेकिन इसके साथ ही हिंदू शास्त्रों में यह भी कहा गया है भक्त अपनी यथा शक्ति से ही भगवान की भक्ति करें।

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