बैसाखी स्पेशल: एक पूर्ण सिख की पहचान हैं ये पांच ककार, जानें इन्हें धारण करने का महत्व

By गुलनीत कौर | Published: April 14, 2018 08:09 AM2018-04-14T08:09:23+5:302018-04-14T09:05:56+5:30

एक ‘अमृतधारी सिख’ इन पांच ककारों को धारण करता है- कंघा, कड़ा, कच्छहरा (कच्छा), किरपान (कृपाण), केस यानी बाल।

Vaisakhi 2018: Meaning and significance of 5 kakar of sikhism | बैसाखी स्पेशल: एक पूर्ण सिख की पहचान हैं ये पांच ककार, जानें इन्हें धारण करने का महत्व

बैसाखी स्पेशल: एक पूर्ण सिख की पहचान हैं ये पांच ककार, जानें इन्हें धारण करने का महत्व

13 अप्रैल, सन् 1699... बैसाखी के उपलक्ष्य पर पहली बार सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद  सिंह जी ने 'खालसा पंथ' की स्थापना की। 'पांच प्यारों' को अमृत छका कर सिख से सिंह बनाया और उन्हें ‘पांच ककार’ धारण कराये। यह एक पूर्ण सिख द्वारा धारण किए जाते हैं। एक ऐसा सिख जिसने गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा प्रदान किए गए ‘खंडे बाटे’ का अमृत पान किया हो और नियमानुसार सिख धर्म का पालन कर रहा हो। आइए जानते हैं गुरु गोबिंद सिंह जी के पांच ककारों के बारे में...

सिख धर्म में अमृत चखने वाले सिख को ‘अमृतधारी सिख’ भी कहा जाता है। ऐसा सिख खास नियमों का पालन करता है और साथ ही धारण करता है ये पांच ककार- कंघा, कड़ा, कच्छहरा (कच्छा), किरपान (कृपाण), केस यानी बाल।

1. कंघा

पांच ककारों में प्रथम है कंघा। एक अमृतधारी सिख साधारण प्लास्टिक का नहीं, बल्कि लकड़ी के कंघे का इस्तेमाल करता है और इसे अपने बालों में पगड़ी के नीचे धारण भी करता है। अमृत पान कराने के बाद ही लकड़ी का एक कंघा दिया जाता है। यह 5 ककारों में अहम माना गया है। कहते हैं कि जब लकड़ी का यह कंघा बालों और स्कैल्प पर इस्तेमाल किया जाता है तो यहां रक्त का प्रवाह बढ़ता है। इसके अलावा बालों का टूटना, रूखापन, आदि भी कम होता है।

2. कड़ा

आम लोगों की नजर में भले ही यह एक लोहे की या अन्य धातु की बनी चूड़ी जैसा हो, लेकिन एक सिख के लिए ये किसी सम्मान से कम नहीं है। यह कड़ा दाहिने हाथ में पहना जाए और केवल एक ही कड़ा पहना जाए, यह नियम है। सिख धर्म में लोहे के कड़े को सुरक्षा का प्रतीक माना गया है। कहते हैं यह कड़ा एक सिख को कठिनाईयों से लड़ने की हिम्मत प्रदान करता है, सिख को किसी प्रकार का कोई भय नहीं होने देता।

3. कच्छहरा

साधारण जिस तरह के अंदरूनी वस्त्र आम लोग पहनते हैं, यह कच्छहरा उससे काफी अलग है। परंपरा है कि यह कच्छहरा सूती कपड़े का ही होना चाहिए। इस कच्छहरे को एक खास उद्देश्य से बनाया गया था। उस जमाने में जब सिख योद्धा युद्ध के मैदान में जाते थे तो घुड़सवारी करते समय या युद्ध करते समय उन्हें एक ऐसी चीज की जरूरत थी जो तन को भी ढके और परेशानी भी ना दे। तब कच्छहरा पहनने की रीति बनाई गई। आज के समय में भी एक अमृतधारी सिख कच्छहरा पहनता है। इसकी सहायता से आसानी से चला जा सकता है, यह बेहद आरामदायक होता है और ‘सेवा’ करते समय भी कोई परेशानी नहीं होती।

4. केश

केश या बाल, सिख धर्म में होने की पहचान है। गुरु गोबिंद सिंह जी के अनुसार केश ‘अकाल पुरख’ द्वारा एक सिख को दी गई देन है, एक सम्मान है जिसे कभी भी खुद से अलग नहीं करना चाहिए। इसलिए एक अमृतधारी सिख या कायदे से किसी भी सिख को अपने बाल नहीं कटवाने चाहिए। यहां केश केवल सिर के बाल नहीं, वरन् पूरे शरीर के बाल हैं। सिर के, दाढ़ी के या शरीर के जिस भी भाग पर बाल हैं, उन्हें काटने या हटाने की मनाही है।

5. किरपान

शायद कभी आपने ध्यान भी दिया हो, एक अमृतधारी सिख हर समय अपने कमर की बाईं ओर एक छोटी सी किरपान या कटार पहने रखता है। यह पांच ककारों में से ही एक ककार है, जिसे 24 घंटे पहने रखना जरूरी होता है, यहां तक कि सोते समय भी। अगर स्नान किया जा रहा है, तो उस समय इस किरपान को सिर पर पगड़ी के साथ बांध लिया जाता है, लेकिन कभी भी अपने तन से अलग नहीं किया जाता। गुरु गोबिंद सिंह जी के वचन अनुसार उनके सिख को 'बुराई' से लड़ने के लिए हर समय तैयार रहना चाहिए। और यह किरपान उसका हथियार है जिसे सिर्फ और सिर्फ अहिंसा पर जीत पाने के लिए ही इस्तेमाल करें।

फोटो: फ्लिकर, पिक्सा-बे, विकिमीडिया कॉमन्स

Web Title: Vaisakhi 2018: Meaning and significance of 5 kakar of sikhism

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