मकर संक्रांति के साथ झारखंड में मनाया जाता है टुसू पर्व, जानें क्या है इसका महत्व, इसके पीछे की कहानी
By एस पी सिन्हा | Published: January 12, 2021 06:34 PM2021-01-12T18:34:26+5:302021-01-12T18:35:35+5:30
15 दिसंबर को अगहन संक्रांति की स्थापना कर 14 जनवरी को मकर संक्रांति के साथ झारखंड में टुसू पर्व मनाया जाता है. पश्चिम बंगाल व ओडिशा में भी यह पर्व मनाया जाता है.
रांचीः हिन्दुस्तान में तो वैसे अनगिनत पर्व-त्योहार मनाये जाते हैं. लेकिन झारखंड में मनाया जाने वाला टुसू पर्व के बारे में शायद ही लोग जानते होंगे!
झारखंड के खासकर कुडमी व आदिवासी समाज में टुसू पर्व का खास महत्व है. फसल कटने के बाद पौष मास में एक माह तक चलने वाली यह पर्व कुंवारी कन्याओं द्वारा मनाया जाता है. बता दें कि टुसू का शाब्दिक अर्थ कुंवारी होता है. 15 दिसंबर को अगहन संक्रांति की स्थापना कर 14 जनवरी को मकर संक्रांति के साथ झारखंड में टुसू पर्व मनाया जाता है. पश्चिम बंगाल व ओडिशा में भी यह पर्व मनाया जाता है.
बताया जाता है कि अगहन संक्रांति के दिन कुंवारी कन्याओं के द्वारा अपने घर-आंगन में टुसू की स्थापना मिट्टी के बर्तन (सरवा) में दिनी के धान से स्थापित की जाती है. हर दिन एक टुसा फूल (प्रतिदिन अलग-अलग फूलों की कली) का चढ़ावा के साथ धूप, धुना, अगरबत्ती दिखाई जाती है. साथ ही टुसू के गीत गाये जाते हैं.
टुसू पर्व को लेकर गांव-गांव में इसकी तैयारी जोरों से चल रही है
प्रत्येक 8 दिनों में अठकोलैया (8 प्रकार के अन्न जैसे- चावल, मकई, कुरथी, चना, जौ, मटर, बादाम, लाहर) का भोग लगाया जाता है. 30वें दिन टुसू महोत्सव मनाई जाती है व रात्रि जागरण होता है. रातभर टुसू के गीत, संगीत व नृत्य चलता है. सुबह टुसूमणी को चौडल पर बैठा कर ढोल-ढांसा के साथ जलाशयों में इसकी विदाई की जाती है.
बताया जाता है कि टुसू पर्व को लेकर गांव-गांव में इसकी तैयारी जोरों से चल रही है. हरेक मुहल्ला व घर में प्रत्येक शाम को टुसू के गीत सुनाई दे रही है. इसको लेकर कुंवारी कन्याओं में विशेष उत्साह देखने को मिल रहा है. सभी अलग-अलग दल बनाकर टुसू महोत्सव को मनाने व इस मौके पर आयोजित होने वाले प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए उत्साहित हैं. अलग-अलग दलों द्वारा एक से बढ़कर एक चौडल बनाये जा रहे हैं व गीत- संगीत का अभ्यास भी किया जा रहा है.
झारखंड के विभिन्न इलाकों में टुसू पर्व का आयोजन किया जाता
प्राप्त जानकारी के अनुसार झारखंड के विभिन्न इलाकों में टुसू पर्व का आयोजन किया जाता है, जिसमें आसपास के कुंवारी कन्याओं का दर्जनों दल भाग लेती है. झारखंडी संस्कृति से जुडा झुमर व नटुआ नाच का आयोजन किया जाता है. इस पर्व के बारे मेम जानकार बताते हैं कि टुसूमणी का जन्म पूर्वी भारत के एक कुर्मी परिवार में हुआ था.
झारखंड की सीमा से सटे ओडिशा के मयूरभंज की रहने वाली टुसूमणी गजब की खूबसूरत थी. बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के कुछ सैनिकों द्वारा उसका अपहरण कर लिया गया था. नवाब को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने सैनिकों को कडी सजा दी एवं टुसूमणी को ससम्मान वापस घर भेजा दिया.
समाज ने उसके पवित्रता पर प्रश्न उठाते हुए अपनाने से इंकार कर दिया
लेकिन तत्कालीन रूढ़िवादी समाज ने उसके पवित्रता पर प्रश्न उठाते हुए अपनाने से इंकार कर दिया. ऐसे में जलसमाधि लेकर अपनी जान दे दी थी. इस दिन मकर संक्रांति थी. तभी से कुडमी समाज अपनी बेटी के बलिदान के याद में टुसू पर्व मनाते हैं.
एक अन्य कथाओं के अनुसार टुसू एक गरीब कुडमी परिवार के घर जन्मीं अत्यंत खूबसूरत कन्या थीं. हर जगह उसकी खूबसूरती की चर्चा होने लगी. तत्कालीन एक क्रूर राजा तक यह बात पहुंची. राजा उस खूबसूरत कन्या को पाने के लोभ में षडयंत्र रचना शुरू कर दिया. उन दिनों राज्य में अकाल पडने पर किसान लगान देने की स्थिति में नहीं थे.
वहीं, राजा ने लगान दोगुना कर दिया व जबरन वसूली का आदेश सैनिकों को दे दिया. ऐसे में किसान व सैनिकों के बीच युद्ध छिड़ गया. काफी संख्या में किसान मारे गये. इस बीच टुसू सैनिकों के पकड में आने ही वाली थी कि उसने जलसमाधि लेकर शहीद हो गई. तभी से टुसू समाज के लिए एक मिसाल बन गई. अब कहानी चाहे जो भी हो, लेकिन झारखंड में कुंवारी कन्याओं के द्वारा यह पर्व बडे ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है.