Sun Eclipse: सूर्य ग्रहण क्यों लगता है, क्या है इसके पीछे की समुद्र मंथन से जुड़ी पौराणिक कथा
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 1, 2019 12:42 PM2019-07-01T12:42:54+5:302019-07-02T08:14:21+5:30
सूर्य ग्रहण के पीछे की पौराणिक कहानी और भी दिलचस्प है। हिंदू मान्यताओं में सूर्य और चंद्र ग्रहण का कारण राहु-केतु को बताया गया है।
Solar Eclipse July 2019: इस साल का दूसरा सूर्य ग्रहण 2 जुलाई को लगने जा रहा है। भारत में इस समय रात होगी और इसलिए यह यहां नहीं देखा जा सकेगा। भारतीय समय के अनुसार दो और तीन जुलाई की रात को लगने जा रहा सूर्य ग्रहण दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के ब्राजील, अर्जेंटीना, मेक्सिको, पेरू, चिली, उरुग्वे जैसे देशों में देखा जा सकेगा। जहां तक भारत की बात है यहां इसका सूतक नहीं लगेगा।
हालांकि, इसके बावजूद इस समय कुंडली और ग्रहों की स्थिति के कारण कुछ फर्क पड़ सकता है। यह सूर्य ग्रहण लगभग 4 घंटे और 55 मिनट का होगा। ग्रहण 2 जुलाई की रात 11 बजकर 55 मिनट से शुरू होगा और 3 जुलाई की सुबह 3 बजकर 20 मिनट तक रहेगा।
सूर्य ग्रहण क्यों लगता है
विज्ञान के अनुसार जब पृथ्वी और सूर्य के बीच चंद्रमा आ जाता है तो सूर्य ग्रहण होता है। ऐसी परिस्थिति में सूर्य का प्रकाश चंद्रमा के कारण ढक जाता है और पृथ्वी पर नहीं पहुंच पाता है। जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य तीनों ही एक सीध में आ जाते हैं तो उसे ही पूर्ण सूर्य ग्रहण कहते हैं।
वैसे सूर्य ग्रहण के पीछे की पौराणिक कहानी और भी दिलचस्प है। हिंदू मान्यताओं में सूर्य और चंद्र ग्रहण का कारण राहु-केतु को बताया गया है। पौराणिक कथा के मुताबिक समुद्र मंथन के बाद जब अमृत को लेकर देवताओं और असुरों में विवाद हुआ तो भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया। उन्होंने असुरों को अपने मोहजाल में फांसकर देवताओं से अलग बैठाया और एक-एक कर अमृतपान कराने लगीं।
दरअसल, मोहिनी रूप में भगवान विष्णु देवताओं को तो अमृत का पान करा रहे थे लेकिन असुरों को उन्होंने अपनी माया से कोई और पेय पदार्थ पिलाना शुरू कर दिया। स्वभार्नु नाम का असुर ये बात समझ गया और वह रूप बदलकर देवताओं की पंक्ति में जा बैठा। मोहिनी अभी राहु को अमृत पिला ही रही थीं कि सूर्य और चंद्र देव ने उसे पहचान लिया। यह देख भगवान विष्णु ने राहु का सिर अपने सुदर्शन चक्र से उसके धड़ से अलग कर दिया। चूकी राहू अमृत पी चुका था इसलिए उसकी मृत्यु नहीं हो सकी।
कथा के अनुसार उसके सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। अब जबकि सूर्य और चंद्र ने राहु को अमृत पीते हुए पहचान लिया था, इसलिए वह दोनों को अपना दुश्मन मानता है और ग्रहण के समय उन्हें ग्रस लेता है। इस वजह से चंद्र और सूर्य ग्रहण लगते हैं।