सुकरात को जब उनके शिष्य ने चुपके-चुपके आईना देखते हुए पकड़ा और उसकी हंसी छूट गई!
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 15, 2020 02:03 PM2020-01-15T14:03:53+5:302020-01-15T14:03:53+5:30
यूनान के महान दार्शनिक और पश्चिमी दर्शन के जनक में से एक सुकरात से जुड़ी कई ऐसी कहानियां हैं जो आज भी प्रेरणा देने का काम करती हैं।
यूनान के महान दार्शनिक सुकरात दिखने में अच्छे नहीं थे। एक दिन वह अपने कमरे में बैठकर आईने में अपना चेहरा बहुत गौर से देख रहे थे। इसी दौरान उनका एक शिष्य कमरे में आ गया और उसने सुकरात को बहुत देर तक खुद को निहारते देखा। सुकरात जब बहुत देर तक खुद को आईने में देखते रहे तो उसे हंसी आ गई।
सकुरात ने जब हंसी की आवाज सुनी और उनका ध्यान बंटा। साथ ही वे ये भी समझ गये कि उनके शिष्य के दिमाग में क्या चल रहा है। सुकरात ने पलट कर कहा- 'मैं तुम्हारी हंसी का मतलब खूब समझता हूं। तुम यही सोच रहे होगे कि मुझ जैसा कुरूप शख्स इतनी देर तक आईने में क्या देख रहा है।'
सुकरात की बात सुन शिष्य शर्मिंदा हो गया और उनसे माफी मांगने लगा। सुकरात ने तब पूछा- क्या तुम जानते हो मैं आईने में इतने गौर से क्या देख रहा था? शिष्य कुछ नहीं बोला। सुकरात ने इसके बाद कहा, 'मैं रोज आईने में अपनी कुरूपता देखता हूं और विचार करता हूं कि हमेशा अच्छे कर्म करूं। ताकि मेरे अच्छे कर्म मेरी कुरूपता को ढक सकें।'
शिष्य ने जब ये बात सुनी तो वह सुकरात से काफी प्रभावित हुआ। हालांकि, साथ ही उसके मन में एक सवाल भी उठ खड़ा हुआ। उसने पूछा, 'अगर ऐसा है तो फिर भला सुंदर लोग आईना क्यों देखते हैं?'
सुकरात ने कहा, 'सुंदर लोगों को भी आईना जरूर देखना चाहिए। ऐसा कर उन्हें अपना सुंदर मुख देखते हुए ये सोचना चाहिए कि वे जितने सुंदर हैं, उतने ही सुंदर और अच्छे कर्म करें। ऐसा इसलिए कि बुरे कर्म कहीं उनकी सुंदरता को न ढंक दे और वे अपने कर्म के कारण कुरूप न कहलाए जाएं।'