Sindoor Khela 2019: दशमी पर महिलाएं क्यों लगाती हैं एक-दूसरे को सिंदूर, पढ़िए सिंदूर खेला का महत्व
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 7, 2019 10:09 AM2019-10-07T10:09:42+5:302019-10-07T10:09:42+5:30
हिंदू धर्म में सिंदूर का बहुत बड़ा महत्व होता है। सभी सुहागिन महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर अपने सुहाग की सलामती की दुआ करती हैं।
दुर्गा पूजा का पर्व भारत में पूरे धूम धाम से मनाया जाता है। नवरात्रि और दुर्गा पूजा के दसवें दिन यानी विजय दशमी को पंडालो में सुहागिन महिलाएं दुर्गा मां को सिन्दूर अर्पित करती हैं। साथ ही पान और मिठाई का भोग लगाती हैं। इसके बाद एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। इस शुभ दिन और परंपरा को सिंदूर खेला कहा जाता है।
दशमी पर सिंदूर लगाने की पंरपरा सदियों से चली आ रही है। बंगालियों में सिन्दूर खेला की प्रथा बहुत महत्वपूर्ण है। चलिए हम आपको बताते हैं दशमी पर बंगाल में महिलाएं क्यों खेलती हैं 'सिंदूर खेला' और क्या है इसका महत्व ?
सिंदूर खेला को सुहागिन महिलाओं का त्योहार माना जाता है। इस शुभ दिन पर सुहागिन महिलाएं लाल रंग की साड़ी पहन कर माथे में सिंदूर लगाकर पंडाल पहुंच कर दुर्गा मां को एक विशेष ध्वनी के साथ विदा करती हैं। इस प्रथा में विधवा, तलाकशुदा और किन्नर को शामिल नहीं किया जाता था। हालांकि पिछले कुछ सालों में समाज में बदलाव आ रहा है और अब सिंदूर खेला में सभी महिलाएं शामिल होती है।
ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा साल में एक बार अपने मायके आती हैं और पांच दिन रुकती हैं। जिसको दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। दशमी के दिन मां दुर्गा को मायके से ससुराल के लिए विदा किया जाता है। उस दिन मां दुर्गा को सिंदूर लगाने का बड़ा महत्व है।
सिन्दूर खेला के दौरान सभी सुहागिन महिलायें पान के पत्ते से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श करती है। फिर उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाया जाता है। इसके बाद मां को मिठाई खिलाकर भोग लगाया जाता है।
फिर सभी सुहागिन महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर अपने सुहाग की सलामती की दुआ करती हैं। सिंदूर को मां दुर्गा के शादी शुदा होने का प्रतीक माना जाता है। हिंदू धर्म में सिंदूर का बहुत बड़ा महत्व होता है। मान्यता है कि जो महिलाएं सिंदूर खेला की प्रथा निभाती हैं उनका सुहाग और बच्चे सदा सलामत रहते हैं।