Shravan 2019: देवघर के वैद्यनाथ मंदिर के पंचशूल का अनोखा है रहस्य, जानिए क्या है इस प्रसिद्ध मंदिर की कहानी
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 6, 2019 01:06 PM2019-07-06T13:06:59+5:302019-07-06T13:06:59+5:30
देवघर में सभी 22 मंदिरों पर लगे पंचशूलों को साल में एकबार शिवरात्रि के दिन नीचे उतारा जाता और फिर विशेष पूजा के बाद वापस स्थापित कर दिया जाता है।
Shravan 2019:सावन के महीने के साथ ही झारखंड के देवघर स्थित वैद्यनाथ धाम मंदिर जाने वाले भक्तों की भीड़ काफी बढ़ जाती है। यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कहा जाता है कि जहां-जहां महादेव साक्षात प्रकट हुए वहां ये ज्योतिर्लिंगों स्थापित हुए। कहते हैं देवघर आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं भगवान शिव जरूर पूरी करते हैं। इसलिए यहां स्थापित शिवलिंग को 'कामना लिंग' भी कहा जाता है। हालांकि, यहां सबसे रहस्य का विषय मंदिर के शीर्ष पर लगा 'पंचशूल' है। आमतौर पर भगवान शिव के मंदिर के ऊपर त्रिशूल लगा रहता है लेकिन यहां ऐसा नहीं है।
Shravan: देवघर मंदिर में पंचशूल का रहस्य
इस पंचशूल को लेकर अलग-अलग मत हैं। कई धर्म के जानकार इसे सुरक्षा कवच कहते हैं। एक मत के अनुसार त्रेतायुग में रामायण काल में रावण की लंका नगरी के प्रवेश द्वार पर भी ऐसा ही पंचशूल लगा हुआ था। इसलिए भगवान राम को भी लंका में प्रवेश करना मुश्किल हो रहा था। इसके बाद विभीषण की युक्ति से वे लंका में प्रवेश कर सके। मान्यता है कि पंचशूल के कारण ही देवघर में आज तक मंदिर पर किसी प्राकृतिक आपदा का असर नहीं हुआ।
देवघर में सभी 22 मंदिरों पर लगे पंचशूलों को साल में एकबार शिवरात्रि के दिन नीचे उतारा जाता और फिर विशेष पूजा के बाद वापस स्थापित कर दिया जाता है। इस पंचशूल को मंदिर से नीचे लाने और फिर से उसे स्थापित करने का अधिकार एक ही परिवार को हासिल है।
देवघर मंदिर से जुड़ा पौराणिक कथा
इस मंदिर के स्थापित होने की कहानी बेहद ही रोचक है। एक पौराणिक कथा के अनुसार दशानन रावण ने एक बार शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर कठोर तप किया। वह शिव को प्रसन्न करने के लिए एक-एक अपने सिर काटता जा रहा था। जैसे ही उसने 10वां सिर काटना चाहा, भगवान शिव प्रकट हो गये और उससे वर मांगने को कहा।
ऐसे में रावण ने 'कामना लिंग' को अपने साथ लंका ले जाने का वर मांग लिया। रावण ने इच्छा जताई कि शिव कैलाश छोड़ लंका में वास करे। भगवान शिव के लिए दुविधा वाली स्थिति थी। वह रावण को टाल भी नहीं सकते थे। इसलिए वे उसके साथ चलने के लिए तैयार हो गये। साथ ही भगवान शिव ने ये शर्त रख दी कि वह रास्ते में कभी भी उन्हें जमीन पर नहीं रखेगा, अगर ऐसा होता है तो वे वहीं विराजमान हो जाएंगे। रावण ने यह बात माल ली।
देवघर में स्थापित हो गये भगवान शिव
भगवान शिव के कैलाश छोड़ने की बात सुन सभी देवता चिंतित हो गये और भागे-भागे भगवाण विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु ने जब ये बात सुनी तो उन्होंने एक माया रची और वरुण देव को आचमन के जरिये रावण के पेट में घुसने को कहा। रावण जब याचमन कर भगवान शिव को लंका ले जाने लगा तो श्रीविष्णु की माया के कारण देवघर के पास उसे लंघुशंका लग गई।
रावण के लिए खुद को रोक पाना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में उसने एक ग्वाले को देखा। उसने शिवलिंग को उस ग्वाले को थोड़ी देर पकड़ने के लिए कहा और स्वयं लघुशंका के लिए चला गया। कथा के अनुसार रावण कई घंटों तक लघुशंका करता रहा जो आज भी एक तालाब के रूप में देवघर में मौजूद है। इधर ग्वाला रूप में खड़े भगवान विष्णु ने शिवलिंग धरती पर रखकर वहीं स्थापित कर दिया।
रावण जब लौटा तो वह सारा माजरा समझ चुका था। उसने इसके बाद शिवलिंग को उठाने की कई बार कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सका। इसे देख वह क्रोधित हो गया और अपने अंगूठे से शिवलिंग को और धरती के अंदर दबा दिया और वहां से चला गया। कहते हैं कि इसके बाद से ही भगवान शिव 'कामना लिंग' के रूप में यहां विराजमान हैं।