Ramayan: राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए करवाया था ये विशेष यज्ञ, नंगे पैर चलकर गए थे इस महान ऋषि के आश्रम
By मेघना वर्मा | Published: March 28, 2020 10:55 AM2020-03-28T10:55:22+5:302020-03-28T10:55:22+5:30
एक ऐसा ही यज्ञ था जिसे राजा दशरथ ने अपने पुत्रों की प्राप्ति के लिए करवाया था।
सनातन धर्म में यज्ञ का काफी महत्व बताया गया है। युद्ध जीतना हो या कोई मनोकामना की अर्जी भगवान तक पहुंचानी हो राजा-महाराज और ऋषि-मुनि यज्ञ करावाया करते थे। अयोध्या के राजा दशरथ ने भी अपने पुत्रों के लिए यज्ञ करवाया था।
यज्ञ के अपने कई महत्व होते हैं। अलग-अलग काज के लिए अलग-अलग यज्ञ करवाए जाते थे। एक ऐसा ही यज्ञ था जिसे राजा दशरथ ने अपने पुत्रों की प्राप्ति के लिए करवाया था। आइए आपको बताते हैं कौन सा था वो यज्ञ और किस ऋषि ने सम्पन्न करवाया था ये यज्ञ।
पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ
जब सभी देवता एक साथ भगवान विष्णु के पास रावण के बढ़ते उद्दडं की शिकायत लेकर गए तो विष्णु ने कहा कि अब वो रावण के वध के लिए धरती पर अवतार लेंगे। उधर अयोध्या के राजा इस बात से चिंतित थे कि क्या उनका वंश आगे नहीं बढ़ेगा? क्या अयोध्या को उसका उत्ताराधिकारी नहीं मिलेगा?
ऐसे में राजा दशरथ को बताया गया कि वो पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रकामेष्टी यज्ञ करवाएं। उन्हें ये भी बताया गया कि ये यज्ञ सिर्फ और सिर्फ अथर्वेद के पूर्ण ज्ञाता ऋषि श्रृंग मुनि ही करवा सकते हैं।
राजा दशरथ ऋषि श्रृंग के आश्रम में अयोध्या के राजा नहीं बल्कि एक साधारण व्यक्ति बनकर गए थे। उनका मानना था कि वो ऋषि से भिक्षा मांगने जा रहे हैं। इसीलिए राजा दशरथ नंगे पांव, साधारण कपड़ों में ऋषि के आश्रम गए और उनके यज्ञ करवाने का आग्रह किया।
कई दिनों तक चले इस यज्ञ के फलस्वरू नवमी तिथि को राजा की तीनों रानियों कौशल्या, कैकयी और सुमित्रा ने पुत्रों को जन्म दिया। जिनका नामकरण राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न रखा गया।
बता दें प्रसार भारती की ओर से दूरदर्शन पर रामानन्द सागर की रामायण का प्रसारण शुरू कर दिया गया है। सोशल मीडिया से लेकर लोगों के वॉहटसऐप स्टेटस पर रामायण की फोटोज देखने को मिल रही है। बहुत से लोगों ने इसके दोबारा प्रसारण के लिए शुक्रिया भी कहा है।
अब रामायण के अलावा 'महाभारत' को भी मंजूली मिल गई है। पहली बार महाभारत 2 अक्टूबर 1988 को दूरदर्शन पर शुरू हुआ था और 24 जून 1990 तक इसके 94 एपिसोड प्रसारित किए गए थे।रामायण के किरदारों को उस वक्त वाकई में भगवान स्वरूप ही मानने लगे थे। वह जिस भी शहर या गांव-कस्बे में ये कलाकार जाया करते थे उन्हें भगवान सरीखा ही सम्मान दिया जाता था।