हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष का खासा महत्व माना जाता है। अपने पितृ दोष को दूर करने के लिए इस पितृ पक्ष के समय लोग श्राद्ध करते हैं। इस साल पितृ पक्ष की शुरूआत 25 सितम्बर से हो रही है। मान्यता ये भी है कि सही तरीके से किया गया श्राद्ध आपके जीवन में खुशियां लाता है जबकि गलत तरीके से किए गए श्राद्ध से आपको और आपके परिवार वालों को इसका हर्जाना भुगतना पड़ सकता है। श्राद्ध को सही ढंग से और सही समय पर किया जाना आवश्यक होता है। उत्थान ज्योतिष संस्थान के निदेशक ज्योतिर्विद पं दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली आपको बताने जा रहे हैं पितृ पक्ष की तिथी और श्राद्ध का सही समय।
तिथी के अनुरूप ही करें श्राद्ध
पितृ पक्ष में मध्यान व्यापिनी तिथि का महत्व होता है । जिस तिथि में मध्यान प्राप्त होता है वही तिथि मानी जाती है । पंडित दिवाकर के अनुसार सभी सनातन धर्मी को इस पक्ष में प्रतिदिन मध्यान्ह व्यापिनी तिथि को ध्यान में रखते हुए अपने पूर्वजों की संतुष्टि के लिए श्राद्ध एवं तर्पण जरूर करना चाहिए। हमारी धरती पर मां-बाप और पूर्वजों को देवता का रूप दिया जाता है इसलिए उनकी आत्मा की शांति के लिए आश्विन कृष्ण पक्ष में श्राद्ध को विश्वास के साथ करना चाहिए। पंडित दिवाकर करते हैं कि जिस तिथि को पूर्वजों की मृत्यु हुई हो उसी तिथि को श्राद्ध कर्म किये जाने का प्रावधान शास्त्रो में प्राप्त होता है।
25 को होगा प्रतिपदा का श्राद्ध
इस वर्ष स्नान दान के लिए भाद्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा का मान 25 सितम्बर 2018 दिन मंगलवार को होगा । साथ ही मध्यान्ह काल मे कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि मिलने के कारण प्रतिपदा का श्राद्ध तर्पण आदि दिन में 07 बजकर 41 मिनट से प्रारम्भ हो जाएगा। क्योंकि इस दिन सुबह 07 बजकर 41मिनट तक ही पूर्णिमा तिथि व्याप्त रहेगी तत्पश्चात आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि लग जायेगी। उदया तिथि के दृष्टि से पितृ पक्ष अर्थात आश्विन कृष्ण पक्ष 26 सितम्बर से प्रारंभ हो रही है परन्तु मध्यान्ह काल मे प्रतिपदा मिलने से प्रतिपदा का श्राद्ध 25 को ही होगा।
ये है श्राद्ध करने का सही तरीका
* सुबह उठकर स्नान करना चाहिए, उसके बाद देव स्थान और पितृ स्थान को गाय के गोबर से लीपना चाहिए साथ ही गंगाजल से पवित्र करना चाहिए।* श्राद्ध को सूर्य के उदय से लेकर दिन के 12 बजे तक की अवधि के मध्य ही कर लें। * ब्राह्मण से तर्पण आदि सब कामों को भी दिन के 12 बजे से पहले कर लें। * घर की महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं। * श्रेष्ठ ब्राह्मण को न्यौता देकर बुलाएं और निमंत्रित ब्राह्मण के पैर धोए। * इसके बाद ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि करवाएं।* पिण्ड दान या तर्पण हमेशा एक सुयोग्य पंडित द्वारा ही कराना चाहिए। * उचित मंत्रों और योग्य ब्राह्मण की देख-रेख में किया गया श्राद्ध सबसे अच्छा माना जाता है।* पितरों के निमित्त आग में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर का अर्पण करें।
अगर याद ना हो पितरों की मृत्यु तिथी
पितृविसर्जन, सर्वपितृ श्राद्ध महालय 8 अक्टूबर को होगा। इसका कारण ये है कि 8 अक्टूबर को दिन में 10 बजकर 47 मिनट के बाद अमावस्या तिथि लग जायेगी जो 9 अक्टूबर को दिन में 09:10 बजे तक ही रहेगी। सर्व पैतृ अमावस्या का श्राद्ध मध्यान्ह काल में अमावस्या मिलने के कारण 8 अक्टूबर को हो जाएगा। जिन पितरों के मृत्यु तिथि ज्ञात न हो सबका श्राद्ध 8 अक्टूबर दिन सोमवार को किया जा सकता है।