Navratri 2019, 6th Day: आज होती है कात्यायनी देवी की पूजा, जानिए पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और कथा
By ज्ञानेश चौहान | Published: October 4, 2019 07:19 AM2019-10-04T07:19:29+5:302019-10-04T07:19:29+5:30
अगर मां कात्यायनी की पूजा अविवाहित कन्याएं करती हैं तो उनके शादी के योग जल्दी बनते है। इनकी अराधना से भय, रोगों से मुक्ति और सभी समस्याओं का समाधान होता है।
नवरात्र के छठे दिन मां दुर्गा के छठे रूप कात्यायनी देवी की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के इस रूप का शास्त्रों में यह बखान किया गया है कि कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में मां दुर्गा ने जन्म लिया था इस कारण उनका नाम कात्यायनी पड़ गया। कहा जाता है कि अगर मां कात्यायनी की पूजा अविवाहित कन्याएं करती हैं तो उनके शादी के योग जल्दी बनते है।
कहते हैं इनकी अराधना से भय, रोगों से मुक्ति और सभी समस्याओं का समाधान होता है। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं। शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए।
सोने जैसा चमकीला है मां का शरीर
दिव्य रुपा कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समान चमकीला है। चार भुजा धारी मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिए हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं।
मां कात्यायनी की पूजा विधि
षष्ठी तिथि 4 अक्टूबर को सुबह 09 बजकर 35 मिनट तक रहेगी। मां कात्यायनी की पूजा गोधूली वेला के समय पीले या लाल वस्त्र धारण करके करनी चाहिए। मां कात्यायनी को पीले फूल और पीला नैवेद्य अर्पित करें। इनको शहद अर्पित करना विशेष शुभ होता है। मां को सुगन्धित पुष्प अर्पित करने से शीघ्र विवाह के योग बनेंगे साथ ही प्रेम सम्बन्धी बाधाएं भी दूर होंगी। मां कात्यायनी को शहद काफी प्रिय है। इसलिए इस दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है।
मां कात्यायनी की कथा
एक कथा के अनुसार एक वन में कत नाम के एक महर्षि थे। उनका एक पुत्र था जिसका नाम कात्य रखा गया। इसके पश्चात कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया। उनकी कोई संतान नहीं थी। मां भगवती को पुत्री के रूप में पाने की इच्छा रखते हुए उन्होंने पराम्बा की कठोर तपस्या की। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया। कुछ समय बीतने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया। तब त्रिदेवों के तेज से एक कन्या ने जन्म लिया और उसका वध कर दिया। कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया।
देवी कात्यायनी का मंत्र
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना|
कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि||