यदि आप मां दुर्गा के सच्चे भक्त हैं या आपको रहस्यात्मकता में दिलचस्पी है तो आपको गुवहाटी के कामाख्या मंदिर जरूर जाना चाहिए। यह मंदिर गुवहाटी के भीतर बसे नीलांचल पर्वत पर स्थित है जो रेलवे स्टेशन से महज 8 किलोमीटर दूर है। कामाख्या मंदिर अपनी अनूठी मान्यताओं के बारे में मशहूर है। यह शक्ति की देवी सती का मंदिर है। माता सती का यह मंदिर 108 शक्तिपीठों में से एक है। इस 16वीं शताब्दी में नष्ट कर दिया गया था लेकिन 17वीं शताब्दी में बिहार के राजा नर नारायण ने इसका पुन:निर्माण करवाया था।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी सती ने अपने पिता दक्ष के खिलाफ जाकर शिव से शादी की थी। इस बात से गुस्सा होकर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन कराया। उस यज्ञ के दौरान बेटी और दामाद को नहीं बुलाया। इससे नाराज होकर सती हवन कुंड में कूद गईं। जब इस बात का पता भगवान शिव को चला तो वो सती के जले शरीर को अपने हाथों में लेकर तांडव करने लगे। जिससे ब्रह्माण्ड का विनाश होना तय हो गया लेकिन विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से सती के जले शरीर को काट कर शिव से अलग कर दिया। कटे शरीर के हिस्से जहां-जहां गिरे वहां आज शक्ति पीठ के रूप में पूजा किया जाने लगा। अंग का एक हिस्सा इस जगह गिरा तभी से यहां माता सती की पूजा की जाने लगी।
मंदिर की खासियत
मंदिर में निवास करने वाली देवी को मासिक धर्म होता है जो 3 दिन तक रहता है और भक्तों का मंदिर में जाना मना होता है। मंदिर से लाल रक्त के समान तरल द्रव्य निकलता है। इस दौरान आसपास इलाकों में अम्बुवासी मेला का आयोजन किया जाता है। मंदिर में अवस्थित देवी की अनुमानित योनि के समीप पंडित जी नए साफ-सुथरा कपड़ा रखते हैं जो मासिक धर्म के दौरान स्त्रावित 'खून' से भीग जाता है। यही कपड़ा भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। मां के रज से भीगा कपड़ा प्रसाद में मिलना किस्मत वालों को नसीब होता है। माता के मासिक चक्र के दौरान मंदिर तीन दिनों तक बंद हो जाता है।
मंदिर में अन्य देवी-देवताओं के मंदिर
इस मंदिर में देवी कामाख्या के अलावा देवी काली के अन्य 10 रुप जैसे धूमावती, मतंगी, बगोला, तारा, कमला, भैरवी, चिनमासा, भुवनेश्वरी और त्रिपुरा सुंदरी भी देखने को मिलेंगे। तीन हिस्सों में बने इस मंदिर का पहला हिस्सा सबसे बड़ा है जहां हर कोई को जाने की इजाजत नहीं है। दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं। इस मंदिर में वैसे तो हर वक़्त भक्तों की भीड़ लगी होती है। दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है।