Muharram 2019: जानिए हुसैनी ब्राह्मणों के बारे में, वे हिंदू जो कर्बला की जंग में इमाम हुसैन के लिए हुए कुर्बान
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 3, 2019 03:15 PM2019-09-03T15:15:59+5:302019-09-03T16:12:10+5:30
Muharram 2019: हुसैनी ब्राह्मणों का मानना है कि उनके पूर्वज राहिब दत्त ने अपने बेटों के साथ करीब 1500 साल पहले करबला की लड़ाई में हिस्सा लिया और इमाम हुसैन की ओर जंग लड़ी थी।
Muharram 2019: इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम शुरू गया है। देश भर में शिया मुस्लिम जब इस महीने में इमाम हुसैन की शहादत का शोक मनाते हैं तो भाईचारे के तौर पर कई हिंदू भी इसमें हिस्सा लेते हैं। यह बात कई लोग जानते हैं। हालांकि, क्या आप इस बात से वाकिफ हैं कि ब्राह्मणों का एक तबका ऐसा भी है जिसे 'मोहयाल ब्राह्मण' कहा जाता है। ज्यादातर ऐसे ब्राह्मण खुद को 'हुसैनी ब्राह्मण' कहते हैं।
दो धर्मों का नाम मिलाकर एक किये जाने का मतलब दरअसल ये नहीं है कि ये ब्राह्मण भावना के खिलाफ हैं हालांकि, ये भी सच है कि यह तबका मुहर्रम के शोक महीने में सामाजिक जश्न जैसे शादी वगैरह से खुद को दूर रखता है।
Muharram 2019: 'हुसैनी ब्राह्मण' कौन हैं और क्या है पहचान
हुसैनी ब्राह्मण या मोहयाल समुदाय के लोग हिंदू और मुसलमान दोनों में होते हैं। हुसैनी ब्राह्मणों के बीच कुछ जाने-पहचाने लोगों की बात करें तो फिल्म स्टार सुनील दत्त, उर्दू के बड़े लेखक कश्मीरी लाल जाकिर, सब्बीर दत्त और नंद किशोर विक्रम कुछ ऐसे नाम हैं जो इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। भारत के बंटवारे से पहले ज्यादातर हुसैनी ब्राह्मण सिंध और लाहौर क्षेत्र में रहते थे। हालांकि, बाद के वर्षों में इन्हें बड़ी संख्या में पुणे, दिल्ली, इलाहाबाद और पुष्कर जैसी जगहों पर जाकर बसना पड़ा। ये सभी 10 मुहर्रम के दिन हुसैन की शहादत के गम में मातम करते हैं।
Muharram 2019: कर्बला की लड़ाई से क्या है हुसैनी ब्राह्मणों का ताल्लुक
हुसैनी ब्राह्मणों का मानना है कि उनके पूर्वज राहिब दत्त ने अपने बेटों के साथ करीब 1500 साल पहले करबला की लड़ाई में हिस्सा लिया और इमाम हुसैन की ओर जंग लड़ी थी। कुछ यह दावा करते हैं कि वह चंद्रगुप्त के दरबारी थे जो उस समय लाहौर के राजा थे। कई रिसर्च यह भी बताते हैं कि दो ब्राह्मण थे जो कर्बला की लड़ाई के समय इराक में थे। इनमें एक संभवत: राहिब दत्त थे। वे वहां कपड़े के व्यापारी थे। कहते हैं कि जब इन्हें कर्बला की जंग के बारे में मालूम हुआ तो उन्हें इसे अच्छाई और बुराई के बीच लड़ाई की तरह लिया।
इस जंग में दत्त ने अपने सात बेटों के साथ हिस्सा लिया। इसमें उनके सातों बेटे शहीद हो गये। दत्त इस जंग के बाद इमाम हुसैन के परिवार के एक सदस्य से मिले जिन्होंने उन्हें 'हुसैनी ब्राह्मण' कहकर सम्मानित किया। हुसैनी ब्राह्मणों में एक आम धारणा ये भी है कि इन सभी के गले में एक चिन्ह होता है। ये मानते हैं कि ये इमाम हुसैन और ब्राह्मण भाइयों की शहादत का चिन्ह है जिनके गले उस जंग में काट दिये गये थे।
Muharram 2019: कर्बला की लड़ाई की कहानी
कर्बला की लड़ाई में इमाम हुसैन और उनके परिवार समेत 72 साथियों को मार डाला गया था। इसमें दत्त परिवार के भी 7 बेटे शहीद हुए थे। इमाम हुसैन दरअसल पैगंबर मुहम्मद के नाती थे। इराक में उस समय यजीद नाम के एक क्रूर शासक ने खुद को इस्लामी जगत का खलीफा घोषित कर दिया था। यजीद ने इमाम हुसैन को भी अपने कबीले में शामिल होने को कहा।
इमाम हुसैन ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इसी के बाद यजीद ने हुसैन के खिलाफ जंग छेड़ दिया। करबला के रेगिस्तान में हुए जंग में हुसैन शहीद हुए। यह घटना मुहर्रम महीने के 10वें दिन हुई थी। इसलिए इस दिन उनकी याद में मातम मनाया जाता है। शिया समुदाय के लोग मुहर्रम के दिन काले कपड़े पहनकर सड़कों पर जुलूस निकालते हैं और उनकी शहादत को याद करते हैं।
कहते हैं कि इमाम हुसैन इस्लामिक इतिहास के पहले और शायद आखिरी ऐसे बच्चे हैं, जिनके जन्म पर उनका परिवार रोया था। यहां तक की रसूल खुद रोए थे, जब जिब्राईल अमीन ने इमाम हुसैन के जन्म पर बधाई के साथ ये भी बताया कि उस बच्चे को कर्बला के मैदान में तीन दिन का भूखा प्यासा रहना होगा। यही नहीं, उनके 72 साथियों के साथ उन्हें शहीद किया जाएगा।