Mahabharata: पांडव-कौरव के बीच महाभारत युद्ध से ठीक पहले इन दो महारथियों ने बदल लिया था पाला
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 2, 2020 10:09 AM2020-01-02T10:09:49+5:302020-01-02T12:47:29+5:30
Mahabharata: महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले दो ऐसे पात्र हैं जिन्होंने अपना पाला बदल लिया था। इसमें पांडवों के मामा शल्य भी हैं।
Mahabharata: महाभारत से जुड़े कई ऐसे प्रसंग हैं जो बेहद दिलचस्प हैं। इसके पात्र और उनसे जुड़ी कहानियां भी कम हैरानी पैदा नहीं करतीं। ये तो हम सभी जानते हैं महाभारत का युद्ध कौरव और पांडवों के बीच हुआ था। ये युद्ध 18 दिन दिन चला और पांडव इसमें आखिरकार विजयी रहे लेकिन क्या आपको मालूम है कि महाभारत में दो ऐसे भी पात्र हैं जिन्होंने युद्ध शुरू होने से पहले ही पाला बदल लिया था।
दिलचस्प ये भी है कि पाला बदलने वाले दोनों पात्र की कहानी दुर्योधन से ही जुड़ी है। दुर्योधन ने जहां 'धोखे' से नकुल-सहदेव के मामा शल्य को अपने पाले में जोर लिया था। वहीं, उसके ही एक भाई ने भी युद्ध के मैदान में अपना पाला बदल दिया और पांडव के खेमें में शामिल हो गया।
पांडवों के मामा शल्य को बदलना पड़ा खेमा: महाभारत के युद्ध की बात जब ठहर गई तो सभी अपनी-अपनी तैयारियों में लग गये। कौरव और पांडवे दुनिया भर के राजाओं से संपर्क कर उन्हें अपने खेमे से लड़ने के लिए मनाने में जुटे थे। माद्र राज्य के राजा शल्य चूकी नकुल-सहदेव की मां माद्री के भाई थे इसलिए उन्होंने मामा होने के नाते पांडवों की ओर से लड़ने का फैसला किया।
कथा के अनुसार शल्य जब अपने सैनिकों के साथ पांडवों के पक्ष में लड़ने आ रहे थे तो दुर्योधन ने रास्ते में उनके और उनके सैनिकों के स्वागत और विश्राम के लिए कई ठिकाने बना दिये। शल्य को लगा कि स्वागत के ये इंतजाम युधिष्ठिर ने किये हैं। इसलिए उन्हें सभी स्वागत-सत्कारों को स्वीकार किया। आखिरी पड़ाव से भी जब शल्य जाने के लिए तैयार होने लगे तभी दुर्योधन वहां आ गया।
शल्य को आश्चर्य हुआ कि दुर्योधन आखिर पांडवों के शिविर में क्या कर रहा है। हालांकि, जल्द ही उन्हें सच्चाई पता चल गई। इसके बाद दुर्योधन ने भावनात्मक रूप से शल्य को अपने पक्ष में करके अपने खेमे में शामिल होने के लिए तैयार कर लिया।
हालांकि, शल्य ने तब दुर्योधन से कहा कि उनकी सेना तो युद्ध करेगी लेकिन वे अपने भांजों पर बाण नहीं चला सकते। इसके बाद कर्ण ने उन्हें अपना सारथ बनने का अनुरोध किया जिसे शल्य मान गये।
युयुत्सु ने भी बदला पाला: युयुत्सु दरअसल दुर्योधन के भाई थे। वह युद्ध के मैदान में कौरव की ओर से लड़ने के लिए गये थे। हालांकि, इससे पहले वह कई बार दुर्योधन के कई कदमों का खुलकर विरोध कर चुके थे।
युयुत्सु चीरहरण के समय भी दुर्योधन का विरोध किया लेकिन उनकी कोई सुनने वाला नहीं था। युद्ध शुरू होने से पहले जब पाला बदलने का विकल्प आया तो युयुत्सु ने पांडवों के शिविर में शामिल होना बेहतर समझा। इस तरह दुर्योधन का एक भाई महाभारत के युद्ध में पांडवों के लिए लड़ा।